हाज़िर हूँ...! पुनः उपस्थिति दर्ज हो...
सुनो जोगी! तुम्हारा झोला मेरे पास छूट गया है उसमें तीन किताबें हैं पहली किताब ज्ञान की है उसके भारी-भरकम शब्दों को दायें-बायें खिसकाकर मैंने प्रेम की राई पसार दी है। सुनीता जैन के रचनाओं के द्वारा हमें मानवीय संवेदनाओं के विभिन्न पहलूओं को जानने का मौका मिलता है। इस कविता संग्रह में स्त्री-भावों की विभिन्न संवेदनाओं को व्यक्त किया है। इस कविता संग्रह में मानो रस की धारा निरंतर बढ रही है। अपनी समीक्षा में प्रियंका भारद्वाज कहती है “ यह संग्रह स्त्री के स्वानुभूत सत्य का प्रकाष है। यहाॅं स्त्री-प्रेम का वह माध्यम है जिसमें पुरुष के समस्त राग-विराग , समाहित रहते है। पुरुष के जीवन-व्यवहारों, व्यापारों और परिवेषजन्य विसंगतियों-असंगतियों का उदात्त एकीकरण या संग्रहण ही स्त्री-सौंदर्य है जिसे वह प्रेम के द्वारा परिष्कृत करती है। नारी चेतना का ही चरम है, जहाँ वह यह कहती है- ? मैं उन औरतों में नहीं हूँ, जो अपने व्यक्तित्व का बलिदान करती है, जिनकी कोई मर्यादा और शील नहीं होता है। मैं न उनमें हूँ, जिनके चरित्र पर पुरुष की हवा लगते ही खराब हो जाते हैं और न पति की गुलामी को सच्चरित्रा का प्रमाण मानती हैं। मुझमें आत्मनिर्भरता भी है और आत्मविश्वास भी। मुझे स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता है तो पति और परिवार के साथ सामंजस्य बनाने की शक्ति भी। अतः जीवन के यथार्थ को स्वीकार करने में कोई झिझक भी नहीं है। जिस प्रकार एक कुरूपा स्त्री अलंकार धारण करने से सुन्दर नहीं हो सकती उसी प्रकार अस्वाभाविक, भद्दे और क्षुद्र भावों को अलंकारस्थापना सुन्दर और मनोहर नहीं बना सकेगी। महाराज भोज ने भी अलंकार को 'अलमर्थमलंकर्तु' अर्थात् सुन्दर अर्थ को शोभित करने वाला ही कहा है। इस कथन से अलंकार आने के पहले ही कविता ? की सुन्दरता सिद्ध है। जिन्दगी क्या? तब बस देखा करती थी, शायद 6-7 बरस की रही होऊंगी मैं; यही सब कि लौहपीटोंके बच्चों के पैरों में चप्पल नहीं हैं, मेरे पैरों में है या कि कितनी बहुत गर्मी है और मज़दूर धूप में काम कर रहे हैं या कि किस तरह उस मुर्गे को काटा गया था जो अब रात के भोजन में मेरी कटोरी में है। आगे, जब पढ़ना सीखा तो समझिये, पूरी दुनिया को पढ़ डालना चाहती थी ।
व्वाहहहहहहहहह दीदी वाह
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुति
क्या गज़ब लिखा सुनीता जैन ने
आभार इस लाजवाब प्रस्तुति के लिए
सादर नमन
वाह बहुत ही उम्दा
जवाब देंहटाएंसभी लेख सार्थक । संध्या का जोगी और सुनीता जैन की कामकाजी स्त्री दोनों ही नायाब ।
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति ।
बहुत सुंदर प्रसृति।
जवाब देंहटाएंग़ज़ब!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंप्रिय दीदी,लाजवाब अंक के लिए शब्द नहीं हैं मेरे पास।सन्ध्या नवोदिता जी के प्रेम काव्य' सुनो जोगी 'की समीक्षा के बहाने से प्रेम पर भावपूर्ण आख्यान और काव्यांश मन को छू गये। दिग्गजोंकी प्रेम रचनाओं ने विस्मय से भर दिया तो सुनीता जैन के लेखन से परिचय परम सौभाग्य है हमारा। आधुनिक उपन्यासों में नारी विमर्श से आधुनिक नारी विषयक उपन्यासों की लम्बी सूची देखकर अच्छा लगा कि आज लेखन के केंद्र में नारी को इतना महत्व दिया गया है।गाँधी जी सदाबहार हैं।यूँ तो उन्हें outdated करार दिया जाता रहा है पर उन की कलुषता से व्यर्थ चर्चा से उनका महत्व कम नहीं होता अपितु और बढता है।सत्य का प्रयोग करने के लिए दूसरा गाँधी कभी नहीं आया। कविता पर रामचंद्र शुक्ल जी बहाने सरल व्याख्या से बहुत कुछ जाना।अनमोल लिंकों हेत्तू मार्ग प्रशस्त करने के लिए आपका हार्दिक आभार।इतने श्रम से समेटे सुन्दर अंक के लिये बधाई और प्रणाम 🙏🙏🌹🌹
जवाब देंहटाएंसुनो जोगी!
जवाब देंहटाएंतुम्हारी आंखों से चांद बरसता है
तुम्हारी हंसी का समंदर भिगोता है
तुम्हारी आवाज़ गूंजती है
मन की सात तहों के भीतर
जैसे ब्रह्माण्ड में नाद
जैसे एकांत में गूंजती है सांस
जैसे एक अचल स्वर
तुम्हारी धुन से आकार लेती हैं धड़कनें
तुम्हारी मौजूदगी स्पन्दित होती है रगों में
तुम्हारा होना ही जीवन है
कबीर के रास्ते आते हो तुम
सांवरिया को खोजते
राग बरसाते हो
जादू जगाते हो
जोगी, दीवाना किये जाते हो!
वाह नवोदिता जी वाह और सिर्फ वाह 👌👌🙏🙏प्रेम की अंतरंग मनोरम अभिव्यक्ति!!!