सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक में सद्यरचित पाँच रचनाओं के लिंक्स के साथ हाज़िर हूँ।
आइए पढ़ें पसंदीदा रचनाएँ-
तब तो तुम मेरे
प्रतिम सुप्रभा
से
अप्रतिम चंद्रभा
से
रक्तिम आभा में
अकृत्रिम
प्रतिभा से
अंतिम
प्रतिप्रभा से
प्रकाशित हो रहे
हो मुझमें
अणद पिया!
किंतु अभी है शेष उजाला
उन दीयों का
जो बाले थे बीती रात
जगमग हुईं थी राहें सारी
गली-गली, हर कोना भू का
चमक उठा था जिनकी प्रभा से
जब से गए सुधि बिसरि गए हैं
हम उनके बिनु बाँझि भए हैं
ढरक-ढरक दोहज बहे हिय से
अधर खुश्क, अनबोल ।
राधिके! मधु बोलो कछु बोल॥
चलते-चलते एक विशेष प्रस्तुति-
"दीवाली की
अतिरिक्त सफाई में पुराने झाड़ू खराब हो जाते होंगे तो नए लाने का विधान शुरू हुआ
होगा। पुरानी पीढ़ी की मजबूरी नयी पीढ़ी की परम्परा हो जाना स्वाभाविक है।"
संध्या ने कहा।
"धनतेरस पुस्तक
मेला शुरू हुआ है। तुम कहो तो ऑन लाइन तुम्हारी पसंद की दो चार पुस्तक मंगवा लूँ?"
सुबोध ने
कहा।
पुस्तक-चर्चा
काव्य-संग्रह 'टोह' के अवतरण दिवस पर
मेरी मानस पुत्री के जन्म पर मेरी माँ उतनी ही ख़ुश है जितनी पहली बार वह नानी बनने पर थी। क़लम के स्पर्श मात्र से झरता है प्रेम अब हम दोनों के बीच। माँ के हृदय में उठती हैं हिलोरें भावों कीं जो मेरी क़लम में शब्द बनकर उतर आते हैं।
फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
शानदार अंक
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
इस उज्जवल प्रस्तुति के लिए हार्दिक आभार एवं शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंहृदय से आभार सर पुस्तक चर्चा में 'टोह 'को स्थान देने हेतु।
जवाब देंहटाएंसराहनीय संकलन।
सभी को बधाई।