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गुरुवार, 27 अक्टूबर 2022

3559...किंतु अभी है शेष उजाला...

सादर अभिवादन।

गुरुवारीय अंक में सद्यरचित पाँच रचनाओं के लिंक्स के साथ हाज़िर हूँ।

आइए पढ़ें पसंदीदा रचनाएँ-

श्वासों की शुभ दीपावली!...

तब तो तुम मेरे

प्रतिम सुप्रभा से

अप्रतिम चंद्रभा से

रक्तिम आभा में

अकृत्रिम प्रतिभा से

अंतिम प्रतिप्रभा से

प्रकाशित हो रहे हो मुझमें

अणद पिया!

दिवाली की अगली भोर

किंतु अभी है शेष  उजाला

उन दीयों का

जो बाले थे बीती रात

जगमग हुईं थी राहें सारी

गली-गली, हर कोना भू का

चमक उठा था जिनकी प्रभा से

अन्तर प्रवाह--

चंचल समय, हथेलियों
से निकल कर तितलियों के हमराह
उड़ चला है, बहुत दूर, ऊँचे
दरख़्त, जंगल, पहाड़,
ख़ूबसूरत वादियां,
फूलों से लदी
घाटियों,
से हो
कर, अंतहीन है उनका ये अनजान सफ़र,

गिरधर कब अइहैं.. गीत

जब से गए सुधि बिसरि गए हैं

हम उनके बिनु बाँझि भए हैं

ढरक-ढरक दोहज बहे हिय से

अधर खुश्कअनबोल 

राधिकेमधु बोलो कछु बोल


चलते-चलते एक विशेष प्रस्तुति-

दीपोत्सव : लघुकथा नाटिका

"दीवाली की अतिरिक्त सफाई में पुराने झाड़ू खराब हो जाते होंगे तो नए लाने का विधान शुरू हुआ होगा। पुरानी पीढ़ी की मजबूरी नयी पीढ़ी की परम्परा हो जाना स्वाभाविक है।" संध्या ने कहा।

"धनतेरस पुस्तक मेला शुरू हुआ है। तुम कहो तो ऑन लाइन तुम्हारी पसंद की दो चार पुस्तक मंगवा लूँ?" सुबोध ने कहा।

पुस्तक-चर्चा 

काव्य-संग्रह 'टोह' के अवतरण दिवस पर

मेरी मानस पुत्री के जन्म पर मेरी माँ उतनी ही ख़ुश है जितनी पहली बार वह नानी बनने पर थी। क़लम के स्पर्श मात्र से झरता है प्रेम अब हम दोनों के बीच। माँ के हृदय में उठती हैं हिलोरें भावों कीं जो मेरी क़लम में शब्द बनकर उतर आते हैं।

 *****

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 

 

3 टिप्‍पणियां:

  1. इस उज्जवल प्रस्तुति के लिए हार्दिक आभार एवं शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं
  2. हृदय से आभार सर पुस्तक चर्चा में 'टोह 'को स्थान देने हेतु।
    सराहनीय संकलन।
    सभी को बधाई।

    जवाब देंहटाएं

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