शीर्षक पंक्ति: आदरणीय ओंकार जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक में सद्ध्यरचित पाँच रचनाओं के लिंक्स के साथ
हाज़िर हूँ-
सब चाहते सच्चे मित्र
का साथ
जो खुद हो
अपने वादे का पक्का
वख्त पर आकर
खडा हो
गलत को
नजरअंदाज न करे
गलती बताए |
धारो शुचिता
करुणा, प्रेम,
दया
भुला दो बैर
संयम राखो मन में,
उठ जायेगा
परदा धीरे धीरे।
सम्मुख होगी शरद पूनो,
होगी चाल धीरे धीरे।।
मेले में
जाना है,
तो तमाशा
देखने जाना,
यह सोचकर मत
जाना
कि रावण
जलेगा,
भीड़ का क्या
भरोसा
न जाने किसको
जला दे.
सारे अर्थ व्यर्थ हैं,
चहुं ओर रावण समर्थ हैं,
पुतलों पर प्राण प्रतिष्ठा करने के
कर्म काण्ड सब निरर्थक है।
*****
फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
दशहरे की शानदार रिपोर्ट
जवाब देंहटाएंआभार
बेहतरीन प्रस्तुति. मेरे सृजन को सम्मिलित करने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंसराहनीय संकलन।
जवाब देंहटाएंवाह ! बहुत ही सुन्दर सार्थक सूत्रों से सुसज्जित आज का संकलन ! मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार रवीन्द्र जी ! सादर वन्दे !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनाओं का समायोजन, आभार मेरी रचना को शामिल करने के लिए
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर सार्थक रचनाओं का संकलन ।
जवाब देंहटाएंसुविचारित संकलन.मेरी रचना लेने के लिये धन्यवाद.
जवाब देंहटाएं