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गुरुवार, 6 अक्टूबर 2022

3538...भीड़ का क्या भरोसा न जाने किसको जला दे...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीय ओंकार जी की रचना से। 

सादर अभिवादन।

गुरुवारीय अंक में सद्ध्यरचित पाँच रचनाओं के लिंक्स के साथ हाज़िर हूँ-

दहन किसका होगा

सब चाहते  सच्चे मित्र का साथ

जो खुद हो अपने वादे का पक्का

वख्त पर आकर खडा हो

गलत को नजरअंदाज न करे

गलती बताए |

मनेगा दशहरा पूर्ण श्रद्धा से

धारो शुचिता

करुणा, प्रेम, दया

भुला दो बैर

दशमी का चाँद

संयम    राखो   मन     में,

उठ जायेगा परदा धीरे धीरे।

सम्मुख   होगी   शरद  पूनो,

होगी   चाल   धीरे      धीरे।।

६६८. दशहरा

मेले में जाना है,

तो तमाशा देखने जाना,

यह सोचकर मत जाना

कि रावण जलेगा,

भीड़ का क्या भरोसा

न जाने किसको जला दे.

उस रावण का दहन

सारे अर्थ व्यर्थ हैं,

चहुं ओर रावण समर्थ हैं,

पुतलों पर प्राण प्रतिष्ठा करने के

कर्म काण्ड सब निरर्थक है।

*****

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 

 

9 टिप्‍पणियां:

  1. दशहरे की शानदार रिपोर्ट
    आभार

    जवाब देंहटाएं
  2. बेहतरीन प्रस्तुति. मेरे सृजन को सम्मिलित करने के लिए आभार

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह ! बहुत ही सुन्दर सार्थक सूत्रों से सुसज्जित आज का संकलन ! मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार रवीन्द्र जी ! सादर वन्दे !

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहतरीन रचनाओं का समायोजन, आभार मेरी रचना को शामिल करने के लिए

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत ही सुंदर सार्थक रचनाओं का संकलन ।

    जवाब देंहटाएं
  6. सुविचारित संकलन.मेरी रचना लेने के लिये धन्यवाद.

    जवाब देंहटाएं

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