शुक्रवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
---------
घर-घर में दीपावली की तैयारियाँ जोर-शोर से चल रही है। अपने घरों की साफ-सफाई करने में,सभी अपना घर आँगन सबसे सुंदर बनाने में लगे हैं।तो चलिए हम सब
मन के उलझे जाले साफ करें
हृदय भर स्वच्छ विचारों से,
अंतर्मन.का पुनः आकलन करें
भरा है जो मन तम अँधियारा,
उम्मीद के तेल का दीपक जला
मन के आँगन मे उजियारा भरें।
आओ इस दीवाली कुछ नया करें।
----------
दीपों का त्योहार आप सभी के जीवन में
शुभता की उजास फैलाये-
शुभ्र,सत्य और मानवता की विजय हो
स्वार्थ,असत्य,कलुषिता क्रमशः क्षय हो
इक देहरी भी मुस्कान दीप जला पाऊँ
कर्म यह सार्थक दीपावली मंगलमय हो।
-----//-----
आइये आज की रचनाओं का स्वाद लें-
ज़िंदगी की साँसें टटोलने के क्रम में
प्रश्नों का चुभना लाज़िम है-
एक सच के हजार चेहरे
हर आदमी बदहवास है।
मिटाए नहीं मिटती है ये
न जाने कैसी ये प्यास है।
शरद के स्वागत में
वादियों के दामन
सजने लगे,
बहकी हवाओं ने हर शय में
नया राग जगाया है।
महकी कुसुम कली
विहग विराव भली
टपकन तुहिन बिंदु
खुशी की ज्यों लोर है
खु
ख़ुद को दिल में तेरे छोड़ के चले जायेगे एक दिन
तुम न चाहो तो भी बे-सबब याद आयेगे एक दिन
जब भी कोई तेरे खुशियों की दुआ माँगेगा रब से
फूल मन्नत के हो तेरे दामन में मुसकायेंगें एक दिन।
एक दिन
मैं चला जाऊं भी अगर इस बज़्म से,
तुम मुझे फिर से बुलाना एक दिन।
याद मेरी आये तुमको के नहीं,
तुम मेरे ख्वाबों मे आना एक दिन।
आज भोलू सोच रहा है कि वह क्या है क्या कर रहा है क्या करना चाहता है? उसे आश्चर्य हो रहा था कि आज तक उसने कभी अपने बारे में कैसे नहीं सोचा? तभी किसी के हँसने की आवाज आई। पार्क में पेड़ के नीचे एक जोड़ा बैठा था जो किसी बात पर जोर से हँस रहा था। भोलू उन्हें देखकर सोचने लगा वह पिछली बार कब हँसा था? बहुत सोचने पर भी उसे याद नहीं आया कि वह कब हँसा था? उसे तो यह भी याद नहीं आया कि वह रोया कब था? घुड़कियाँ तो उसे रोज ही मिलती थीं वह इनका आदी हो गया था और शायद इसीलिए कोई बात उसे खुशी या दुख नहीं देती थी।
और चलते-चलते
कबूतर भी जुल्म सहने के आदी हो चुके थे। बहेलिए जब किसी एक कबूतर को हांक लगाता, सभी हँसते हुए आपस में गुटर गूँ करते...'आज तो इसके पर इतने काटे जाएंगे कि फिर कभी उड़ने का नाम ही नहीं लेगा!' थोड़ी देर में पर कटा कबूतर तमतमाया, रुआंसा चेहरा लिए गधे की तरह रेंगते हुए साथियों के बीच आता और मालिक को जी भर कर कोसता। यह साथी कबूतरों के लिए सबसे आनन्द के पल होते मगर परोक्ष में ऐसा प्रदर्शित करते कि उन्हें भी बेहद कष्ट है!
-------
आज के लिए इतना ही
कल का विशेष अंक लेकर
आ रही है प्रिय विभा दी।
-----
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंधनवंतरी जयन्ती व धनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएँ
उम्मीद के तेल का दीपक जला
मन के आँगन मे उजियारा भरें।
आओ इस दीवाली कुछ नया करें।
श्रेष्ठ प्रस्तुति
सादर
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंप्रति पल मंगलकारी हो
जवाब देंहटाएंउम्दा लिंक्स चयन
सुप्रभात! अनुपम प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन भूमिका .... मन के जाले साफ करने के बाद पुनः जाले लगते रहते । फिर भी कोशिश निरंतर जारी है ।इस भूमिका पर अपनी लिखी एक रचना याद आयी । 2011 में शायद दीपावली 26 अक्टूबर की होगी । आप चाहें तो यहाँ पढ़ सकते हैं
जवाब देंहटाएंमोहब्बत का दिया जल कर तो देखो
सभी रचनाएँ एक से बढ़ कर एक । कमेंट नहीं कर पाई हूँ । बाद में जाऊँगी ।
जल को जला पढ़ें ।।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और भावपूर्ण प्रस्तुति प्रिय श्वेता।दीपावली पर सकारत्मकता भरे भाव सबके लिए प्रेरक है।सच में मकान,दुकान और आँगन इत्यादि की सफाई के साथ-साथ मन की मलिनता को धोना भी अत्यंत आवश्यक है।मन के जालों में उलझकर मानवीय संवेदनाओं का ह्वास हो जाता है। सभी रचनाओं को पढ़ा बहुत सुन्दर और पठनीय हैं।सभी रचनाकारों का सस्नेह अभिनंदन है।मेरे स्नेही पाठकवृन्द और साथी रचनाकारों को सपरिवार दीपावली की बधाई और शुभकामनाएं ।सभी सकुशल और सानंद रहें यही दुआ है।तुम्हें भी हार्दिक स्नेह और दीवाली की शुभकामनाएँ।♥️♥️🌹🌹
जवाब देंहटाएंमन के उलझे जाले साफ करें
जवाब देंहटाएंहृदय भर स्वच्छ विचारों से,
अंतर्मन.का पुनः आकलन करें
भरा है जो मन तम अँधियारा,
उम्मीद के तेल का दीपक जला
मन के आँगन मे उजियारा भरें।
आओ इस दीवाली कुछ नया करें।
सारगर्भित सार्थक भूमिका के साथ लाजवाब प्रस्तुति सभी उम्दा एवं पठनीय लिंकों के साथ मेरी रचना भी साझा करने हेतु दिल से धन्यवाद श्वेता जी !शीर्षक में अपनी रचना की पंक्ति देख बहुत अच्छा लगा ...अत्यंत आभार ।
सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं ।
बहुत खूबसूरत प्रस्तुति,अनेक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएं