सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक में आपका स्वागत है।
माई हम नाहीं जैहैं पनियाँ भरन-(भजन)
कटि थी तिरीछी कटि में करधन।
माई शोभित मुरली उनके अधरन।
हम भूल गई माई पनियाँ भरन।
राजसी वैभव छले
बज उठी पायल हठी
लो कई सपने पले
मन मयूरा नाचता
आखिरी झंकार तक।।
को
समो लो, रूह की
अथाह गहराइयों
तक, इस के
पहले कि हम और
तुम कालांतर हो जाएं, उम्र
के पल्लव झर जाने से
पहले, आओ इस
सजल निशीथ
में देशांतर
हो जाएं।
वन- उपवन सब महके-महके,
चिड़ियाँ , बुलबुल सब चहकें चहकें,
नीर ही है जीवन दाता,
सावन को मौसम सबको सुहाता।
अक्षर अक्षर जोड़कर
उसने एक वाक्य बनाया
जिसे कोई पढ़ नहीं पाया
फिर उसने कई वाक्य बनाये
और कविताएं रच डाली
पति -'माँ और सास में क्या कोई अन्तर है ?'
स्त्री -'उतना ही जितना जमीन और आसमान में है!
माँ प्यार करती है, सास शासन करती है। कितनी ही दयालु, सहनशील सतोगुणी स्त्री हो, सास बनते ही मानो ब्यायी हुई गाय हो जाती है। जिसे पुत्र से जितना ही ज्यादा प्रेम है, वह बहू पर उतनी ही निर्दयता से शासन करती है। मुझे भी अपने ऊपर विश्वास नहीं है। अधिकार पाकर किसे मद नहीं हो जाता? मैंने तय कर लिया है,सास बनूँगी ही नहीं। औरत की गुलामी सासों के बल पर कायम है।
*****
आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे अगले गुरुवार।
रवीन्द्र सिंह यादव
बेहतरीन अंक..
जवाब देंहटाएंवन- उपवन सब महके-महके,
चिड़ियाँ , बुलबुल सब चहकें चहकें,
नीर ही है जीवन दाता,
सावन को मौसम सबको सुहाता।
सादर..
वैविध्यपूर्ण रचनाओं से परिपूर्ण उत्कृष्ट अंक के लिए आपको हार्दिक शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात व शुभकामनाएँ। ।।।
जवाब देंहटाएंअसीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका
जवाब देंहटाएंश्रमसाध्य प्रस्तुतीकरण हेतु साधुवाद
विविधता पूर्ण संकलन में हमारे भजन को सम्मिलित करने के लिए आप का बहुत बहुत आभार।साधुवाद।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत प्रस्तुति अनुज रविन्द्र जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अंक भाई रविन्द्र जी ,
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई,
सभी चयनित रचनाएं हृदय ग्राही ।
मेरी रचना को पांच लिंक पर रखने के लिए हृदय से आभार।
सादर सस्नेह।