आज की रचनाएँ..
आज बस
सादर
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सुंदर सराहनीय तथा पठनीय अंक, बहुत शुभकामनाएँ आदरणीय यशोदा दीदी।
जवाब देंहटाएंआभार सखी..
हटाएंअभी-अभी माखनचोर से मिली
सादर..
शुभ संध्या..
जवाब देंहटाएंआज सभी पाठकों ने
रविवार की छुट्टी ले रक्खी है शायद
या अनलॉक को अच्छे से मना रहे हैं
शायद..
रचनाएँ तो बेहतरीन है सारी..
सादर..
आभार, सच में
हटाएंसादर..
उपनिषद का ऋषि कहता है सवाल (प्रश्न )करो -ज्ञान की सनातन धारा प्रश्नों से ही उद्भूत हुई।
जवाब देंहटाएं3079 ..सवाल ही जन्मते है तर्क, विज्ञान और गणित को
'बातों को खत्म करना सीखें ',यदि ऐसा नहीं किया गया तो यह किसी 'आत्मघात' से कम न होगा। बिन बात की बात के चक्रव्यूह से निकलना सीखें। 'चल मैं हारा तू जीता' ,बात ख़तम। देखना हर 'सुबह ..'खूबसूरत होंगे एक नए अहसासात के साथ। 'पांच लिंकों का आनंद 'परमानंद।
व्वाहहहहह
हटाएंकविता में कविता
आभार वीरेन्द्र भाई...
सादर..
बहुत सराहनीय अंक …कुछ रचनाएँ पढ़ ली हैं , कुछ बाकी हैं …पढ़ती हूँ 👌
जवाब देंहटाएंसादर नमन
हटाएंआभार..
बहुत सुंदर सुखद एहसास से परिपूर्ण प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार भारती बहन..
हटाएंसादर..
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत धन्यवाद मेरी रचना को शामिल करने के लिए
आभार..
जवाब देंहटाएंवक़्त कहाँ है, बैठ के सोचूं
क्या खोया क्या पाया है,
ढल रहा है दिन का सूरज
मुझसे लम्बा साया है।
बढ़िया लिखते हैं आप..
सादर..
आपका धन्यवाद हमारी रचना शामिल करने के लिये
जवाब देंहटाएंआपका धन्यवाद हमारी रचना शामिल करने के लिये
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंसादर..