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रविवार, 4 जुलाई 2021

3079 ..सवाल ही जन्मते है तर्क, विज्ञान और गणित को

सादर अभिवादन
माह-ए-जुलाई, तेरा स्वागत है

सवाल
सिर्फ सवाल नहीं होते
वे हमारे जिन्दा होने का
सबूत होते है.
सवाल ही जन्मते है
तर्क, विज्ञान और गणित को.
सवाल हमें लोकतंत्र में
मालिक बनाते है.

आज की रचनाएँ..

आत्मघात का दृश्य भले ये
ऋण वध करता किसे दिखे
सेठ बही सब बोल कहेगी
साक्ष्य सभी के पाठ लिखे
ब्याज चढ़े नित मसि की सीढ़ी
सेठ चमकता ज्यूँ चंदा।।


चिंतित होना मानवीय स्वभाव है और कई बार हम छोटी छोटी बातों को ही अपने दिल दिमाग़ में पाल लेते हैं जिससे वह बात या समस्या हमें बहुत बड़ी लगने लगती है, हम फिर हर चीज को बड़ा करके देखने लगते हैं, जिससे हम अपना सुकून खो देते हैं, रातों की नींद ग़ायब हो जाती है, दिन का आराम ग़ायब हो जाता है, हम काम तो कर रहे होते हैं परंतु काम में मन नहीं लगता है, बस वे कुछ दिन या कुछ सप्ताह ऐसे ही बीत जाते हैं, और फिर यकायक ही वह बात अपने आप ही ख़त्म हो जाती है


कई चराग़ बुझे और कई  बुझने  को हैं
देखना है कितने इस तूफान से लड़ पाएँगे
मंज़िल बहुत है दूर , रास्ता मिलेगा कभी ?
और कितने इस चक्रव्यूह से निकल पाएँगे ?


चाहत की गुड़िया थी मेरी
ज़िद्द की आंधी तोड़ गई,
जमा किये थे छुट्टे सारे
तेज़ हवाएं फोड़ गई।
फिर भी "सैल" आज मुझे
शिकवा न कोई गिला है।
हर शै को अलग मंज़िल
अलग रास्ता मिला है।।


ख़ूबसूरत सुबह होती है!
खुशियँ सस्ती हमेशा थी
और नज़दीक भी
वही आज
करीब,
फिर हो रही हैं
...
आज बस
सादर


 

15 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर सराहनीय तथा पठनीय अंक, बहुत शुभकामनाएँ आदरणीय यशोदा दीदी।

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  2. शुभ संध्या..
    आज सभी पाठकों ने
    रविवार की छुट्टी ले रक्खी है शायद
    या अनलॉक को अच्छे से मना रहे हैं
    शायद..
    रचनाएँ तो बेहतरीन है सारी..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  3. उपनिषद का ऋषि कहता है सवाल (प्रश्न )करो -ज्ञान की सनातन धारा प्रश्नों से ही उद्भूत हुई।
    3079 ..सवाल ही जन्मते है तर्क, विज्ञान और गणित को
    'बातों को खत्म करना सीखें ',यदि ऐसा नहीं किया गया तो यह किसी 'आत्मघात' से कम न होगा। बिन बात की बात के चक्रव्यूह से निकलना सीखें। 'चल मैं हारा तू जीता' ,बात ख़तम। देखना हर 'सुबह ..'खूबसूरत होंगे एक नए अहसासात के साथ। 'पांच लिंकों का आनंद 'परमानंद।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. व्वाहहहहह
      कविता में कविता
      आभार वीरेन्द्र भाई...
      सादर..

      हटाएं
  4. बहुत सराहनीय अंक …कुछ रचनाएँ पढ़ ली हैं , कुछ बाकी हैं …पढ़ती हूँ 👌

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर सुखद एहसास से परिपूर्ण प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं

  6. आपका बहुत बहुत धन्यवाद मेरी रचना को शामिल करने के लिए

    जवाब देंहटाएं
  7. आभार..
    वक़्त कहाँ है, बैठ के सोचूं
    क्या खोया क्या पाया है,
    ढल रहा है दिन का सूरज
    मुझसे लम्बा साया है।
    बढ़िया लिखते हैं आप..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  8. आपका धन्यवाद हमारी रचना शामिल करने के लिये

    जवाब देंहटाएं
  9. आपका धन्यवाद हमारी रचना शामिल करने के लिये

    जवाब देंहटाएं

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