जय मां हाटेशवरी.....
आज विश्व गौरैया दिवस मनाया जा रहा है. गौरैया दिवस मनाने का उद्देश्य इसका संरक्षण और संवर्धन करने का है. लेकिन पिछले दो दशकों से खासकर शहरी क्षेत्र से गौरैया
विलुप्त होती नजर आ रही है. अक्सर घर के मुंडेर पर और आंगन में गौरैया को दाना चुगने आपने देखा होगा. लेकिन बढ़ते शहरीकरण, रसायनिक प्रदूषण और रेडिएशन के चलते
हमारे और आपके बीच से यह सुंदर सी चिड़ियों की संख्या में लगातार कमी आ रही है.
घरों के आसपास चहचहाने वाली गौरैया के विलुप्ती का मुख्य कारण इंसान की बदलती दिनचर्या है. जानकारों की मानें तो आने वाले कुछ सालों में गौरैया खत्म होने की
कगार पर है. इस मामले में शोध कर चुके पशु चिकित्सक और शोधकर्ता डॉ. रमेश कुमार प्रजापति का कहना है कि शहरों में लगातार हो रहे प्रदूषण, अनाजों में रासायनिक
दवाइयों के इस्तेमाल और रेडिएशन के वजह से गौरैया पर इसका बुरा असर पड़ा है. डॉ. रमेश कुमार प्रजापति का कहना है कि पिछले 10 सालों में गौरैया की संख्या में
60 से 70 फीसदी की गिरावट आई है. अगर जल्द इस विलुप्त हो रहे पक्षियों को संरक्षित और संरक्षण करने का काम नहीं किया गया तो एक दिन यह पक्षी नजर नहीं आएंगे.
आओ हम सब मिलकर इस के संरक्षण के लिये प्रयास करें.....
अब पढ़िये मेरी पसंद.....
नहीं आता ( ग़ज़ल
डूब जाते है लोग साहिर के कलामों में
इमरोज़ सा अमृता को चाहना नहीं आता ।
अंधेरों में ज़िन्दगी के भटकते हैं दरबदर
क्यूँ आस का दिया " गीत " जलाना नहीं आता ।
सिया पुकारे हे रघुनंदन
सजे सपने तुषार-कणों से
गूँथ जीवन के मुक्ताहार ।
कुसुम खिला है मन-उपवन में
मधुकर गुंजन मधुर मल्हार।
यादें हुई तिरोहित सहचर
अंतर कंपित सोहे स्पंदन ।।
नारी की पीड़ा
रईश-रसूल वाले गणिका,आम्रपाली,
नगरवधु, मल्लिका के रूप में भोगते रहे
मगर नारी सदा आदर्श पत्नी बनने
के लिए तड़पती ही रही
धर्म के नाम पर देवदासी, रुद्रगणिका,
रूपाजिवा के रूप में भोगते रहे
मगर नारी सदा जीने के भ्र्म में
बार-बार मरती ही रही। #
मित्रता
रावण मुस्कुराते हुए बोला,
"राम, मैं सिर्फ महादेव के प्रति ही मित्रता के भाव से भरा हुआ हूँ । महादेव के अलावा किसी भी अन्य का मेरे मित्रभाव में प्रवेश निषिद्ध है, फिर वह भले ही महादेव को ही क्यो न प्रिय हो इसलिये तुम्हे कभी भी रावण की मित्रता नहीं मिलती। मेरे निदान के लिये महादेव ने
तुम्हारा चयन किया है राम,क्योंकि महादेव अपने इस अतिप्रिय शिष्य को मृत्यु नहीं, मुक्ति प्रदान करना चाहते हैं।"
आस अभी भी कश्मीर की..
फिर भी सभी खामोश हैं, ना हलचल कोई सदन में है
शरणागत के भांति फिरते, अब तलक हम वतन में हैं
हक हमें भी अपना चाहिए, जमीं अपनी कश्मीर में
बहुत सह लिए ज़ख़्म, बेवजह आए मेरे तकदीर में
अब कोई तो निर्णय करो, फैसले जो हक मे हो
मुस्कान सिर्फ चेहरे पे नहीं, खुशी हर रग रग मे हो
फिर से वही घर चाहिए, और वहीं बसेरा हो
अब नफरतों की शाम ढ़ले, अमन का सवेरा हो
है नाम जिंदगी इसका
माना कांटे भी होंगे
साथ कई पुष्पों के
दे जाएगे कभी चुभन भी
इस कठिन डगर पर |
फिर भी ताजगी पुष्पों की
सुगंध उनके मकरंद की
साथ तुम्हारा ही देगी
तन मन भिगो देगी |
होगा हर पल यादगार
कम से कमतर होगा
कष्टों का वह अहसास
जो काँटों से मिला होगा |
सारा बोझ उतर जाएगा
धन्यवाद।
सुन्दर अंक..
जवाब देंहटाएंआभार आपका
सादर..
विलुप्त हो जाएगी गौरैया.. लिखने वाले लिखते रहें दिवस मनाते रहें
जवाब देंहटाएंउम्दा लिंक्स चयन
शानदार अंक
जवाब देंहटाएंआभार आपका
सादर
सुंदर सराहनीय अंक। पठनीय सूत्रों का चयन ।
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत आभार आपका 🙏
जवाब देंहटाएंनमस्कार । सुंदर संयोजन और प्रयोजन । गौरैया को वापिस घर लाने का ।
जवाब देंहटाएं