शीर्षक पंक्ति:आदरणीया मीना भारद्वाज जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
रविवारीय अंक
में पाँच रचनाओं
के साथ हाज़िर
हूँ।
विशेष!
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह
'दिनकर' जी कविता
'क़लम, आज उनकी
जय बोल' का
एक अंश-
कलम, आज उनकी जय बोल
जला अस्थियाँ बारी-बारी
चिटकाई जिनमें चिंगारी,
जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर
लिए बिना गर्दन का मोल
कलम, आज उनकी जय बोल।
-रामधारी सिंह
'दिनकर'
आइए अब आपको आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चलें-
वह उलझी रहती दिखावे में
वह है कितनी अलग सबसे
अपने इस सतही व्यवहार में
प्रयत्न अथाह किये उसने |
पहला सोपान थे
तुम्हारे पिता के मजबूत कंधे
जो तुम्हें यहाँ पहुँचाने के प्रयास में
आज इतने अशक्त और जर्जर हो चुके हैं
कि अब और किसीका वज़न
उठाने का उनमें बूता ही नहीं रहा!
राहें कभी
इतनी आसां न होती
जो तुम
साथ चल रहे न होते
माझी पहुँचाता नाव पार कैसे
लहरें ही
होती किनारे न होते
नन्हा शेवचेन्को | कविता | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह
आज एक शेवचेन्को
भर्ती है अस्पताल में
हो चुका अनाथ
शायद अपनी एक टांग भी
खो दे
यह नन्हा बालक
शेवचेन्को है,
तरास शेवचेन्को नहीं
जिसने
होश आते ही पुकारा था -
मां को
पिता को
दादी को
और पौधे को
फिर ढ़ूंढ़ता
वो, ठंढ़े झौंके मलय के,
ठहरे,
वो लम्हे समय के,
ऊंघती
इन वादियों में, गूंजती सी शहनाईयां,
उन संग, गुजारी
हुई तन्हाईयां,
हुआ क्या?
इस उम्र
के उड़ते परिंदों को!
*****
आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
राहें कभी इतनी आसां न होती
जवाब देंहटाएंजो तुम साथ चल रहे न होते..
आभार..
बेहतरीन अंक..
सादर..
बेहतरीन सूत्रों से सजा सुंदर संकलन ।मेरे सृजन को मान देने के लिए हृदयतल से आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह जी । सादर…
जवाब देंहटाएंउम्दा लिनक्स से सजा आज का अंक
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
सुप्रभात
आभार सहित धन्यवाद रवीन्द्र जी मेरी राछाना को आज के अंक में स्थान देने के लिए |
वाह ! बहुत सुन्दर सूत्रों का संकलन आज की हलचल में ! मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार रवीन्द्र जी ! सादर वन्दे !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अंक
जवाब देंहटाएंआभार आपका
सादर..