शीर्षक पंक्ति:आदरणीय ज्योति खरे जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
सोमवारीय अंक
लेकर हाज़िर हूँ।
कल विश्व गौरैया दिवस पर प्यारी गौरैया को शिद्दत के साथ याद किया गया।
आइए पढ़ते
हैं आज की
पसंदीदा रचनाएँ-
शायद उसने धीरे धीरे
समझ लिया
आँगन आँगन
जाल बिछे हैं
हर घर में
हथियार रखे हैं
तब से उसने
फुदक फुदक कर
आना छोड़ दिया है---
गौरैया विलुप्त हो रही है
और इसे बचाने के लिए
आप लिख रहे हैं नारे
बना रहे हैं विज्ञापन
जैसे कि आप करते हैं छद्म, प्रपंच
जल बचाने के लिए
वृक्ष बचाने के लिए
बेटी बचाने के लिए
*****
फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
शानदार अंक..
जवाब देंहटाएंआभार..
सादर..
वाह ! श्रेष्ठ सूत्रों का सुन्दर सार्थक संकलन ! मेरी रचना को भी इसमें सम्मिलित किया आपका बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार रवीन्द्र जी ! सादर वन्दे !
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसुंदर,सराहनीय सूत्रों का चयन, शानदार प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंरवीन्द्र जी, गौरैया को समर्पित आज का अंक बहुत मन भाया । गौरैया की जीवन में एक ख़ास जगह रही है हमेशा से । कई कविताएँ लिखी गौरैया पर । स्मृति और कल्पना का अंग रही हैं । एक-एक रचनाकार का अनंत आभार । गौरैया पर लिखी हर बात अपनी लगती है ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लिंक्स।
जवाब देंहटाएंबहुत बढियां संकलन
जवाब देंहटाएंगौरैया पर केंद्रित यह महत्वपूर्ण अंक है आपने सुंदर लिंकों को इस अंक में समाहित किया है.
जवाब देंहटाएंसाधुवाद आपको
सभी रचनाकारों को बधाई
म7झे सम्मलित करने का आभार