शीर्षक पंक्ति: आदरणीया आशा लता सक्सेना जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक
लेकर हाज़िर हूँ।
विशेष!
कविवर अज्ञेय जी की रचना 'पक्षधर' का अंश भाग-
"हमारा जन्म लेना ही पक्षधर बनना है,
जीना ही क्रमशः यह जानना है
कि युद्ध ठनना है
और अपनी पक्षधरता में
हमें पग-पग पर पहचानना है
कि अब से हमें हर क्षण में, हर वार में, हर क्षति में,
हर दुःख-दर्द, जय-पराजय, गति-प्रतिगति में
स्वयं अपनी नियति बन
अपने को जनना है।"
-अज्ञेय
आइए पढ़ते
हैं आज की
पसंदीदा रचनाएँ-
जितनी दूरी बना कर चलोगे
खुद पर नियंत्रण रखोगे
तभी उसे पाने में सफल रहोगे
यही एक तरकीब उसे
तुम तक पहुंचाएगी |
बिना दीवारों के कैद रहा,
वो पिंजर याद आये।
नीलाम करते आबरू ,
वो सिकंदर याद आये।
मुख्तसर न हुई जुर्म की मंजिल
वो नश्तर याद आये।
देखो चंचल हवा सलोना
चिड़िया कलरव करती प्यारी
दूर गगन में सूरज दादा
मंद-मंद मुस्काते रहते
”हाँ…हाँ…हाँ…शांत…सुशील… !” स्मृतियाँ अब अम्मा जी के बुखार की तरह धीरे-धीरे उमड़ती हैं। बहुत देर तक स्थाई रहती हैं। माथे पर ठंडे पानी से भीगी पट्टी रखी जाती है। गहरी साँस के साथ चारों तरफ़ देखती हैं परंतु दिखता नहीं है।स्वयं से संघर्ष कर आजीवन अर्जित किए दो शब्दों का ख़िताब अम्मा जी के होंठ फिर टहलने लगता हैं।
”शांत… सुशील…।”
विविध रचनाओं से सज्जित सार्थक अंक ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार ।
हार्दिक शुभकामनाएं आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी 💐💐
बेहतरीन अंक
जवाब देंहटाएंआभार आपका..
सादर..
वाह!बहुत ही सुंदर भूमिका सराहनीय।
जवाब देंहटाएंइस अंक में वज्राहत मन को स्थान देने हेतु बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय रविंद्र जी सर।
सादर
भूमिका की उद्वेलित करती पंक्तियों के साथ सुंदर सूत्रों से सुसज्जित प्रस्तुति में मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत आभार आपका।
जवाब देंहटाएंसादर।
बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
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