शीर्षक पंक्ति: आदरणीया अलकनंदा सिंह जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
सोमवारीय अंक लेकर हाज़िर हूँ।
विशेष!
लीजिए आज प्रस्तुत है
कविवर शिवमंगल सिंह 'सुमन' जी की कविता 'चलना हमारा काम है' का अंश-
"साथ में चलते रहे
कुछ बीच ही से फिर गए
गति न जीवन की रूकी
जो गिर गए सो गिर गए
रहे हर दम,
उसी की सफलता अभिराम है,
चलना हमारा काम है।"
-शिव मंगल सिंह 'सुमन'
आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
छलकी
तेरी गागर
जल से भरी
सर पर
धरी।
सपेरे,
तुम्हें लगता है
तुम साँप को नचा रहे हो,
पर ध्यान से देखो,
तुम उसे नहीं,
वह तुम्हें नचा रहा है.
पगुराना वो सीख गईं
दूध की नदियाँ सूख गईं
लिए कमंडल खड़े हुए हम
लेरुआ की मिट भूख गई
थैला बोतल बिके धकाधक
पड़रू दूध विहीन।।
*****
फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
बहुत सुन्दर आगाज...
जवाब देंहटाएंआभार..
सादर..
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसुप्रभात !
जवाब देंहटाएंबहुत ही रोचक और पठनीय ।
सारे सूत्र पर गई और पढ़ा, बहुत सुंदर अंक ।
श्रमसाध्य कार्य हेतु साधुवाद ।
शुभकामनाएं और बधाई।
सुन्दर सूत्र पढ़ने के लिए
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार सहित धन्यवाद रवीन्द्र जी |
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंपठनीय रचनाओं से सजा अंक
बधाई!
शुभकामनाओं और सस्नेहाशीष के संग हार्दिक आभार आपका
जवाब देंहटाएंश्रमसाध्य प्रस्तुतिकरण हेतु साधुवाद
बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर.मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंसुंदर संकलन
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर संकलन।
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएं