शीर्षक पंक्ति :आदरणीया विभा रानी श्रीवास्तव जी की रचना से।
सादर अभिवादन
गुरुवारीय अंक में आज पढ़िए पसंदीदा रचनाएँ-
शायरी | ज़िंदगी का सफ़र | डॉ (सुश्री) शरद सिंह
सदा सावधान रहिये, जोड़ी रखिये भाय।
वायस से सीखो इसे, 'लाल' कहत समझाय।।1।।
कितने विवश हैं हमझूठ का मुखौटा लगाए
जिंदगी को तिजोरी में बंद कर
कर रहें हैं संग्राम
जिंदगी के लिए
कितने विवश हैं हम
कुछ भी नहीं है...!
01. तमिस्राक्षत और भोर का सपना
उसकी बधाई संवाद ने तो उसके अंतर्मन को पत्तों की भाँति झकझोर दिया ।चोरों की तरह नजरें चुराते हुए वह पुष्कर के बगल में जा बैठा । पुष्कर ! तेरे पास कुछ रुपए हैं ? डबडबाई आंँखों से निहारते हुए पुष्कर से पूछा।भोला पुष्कर जेबें टटोलता हुआ कुछ पैसे निकाल दिखाया। रमेश ने उसका हाथ पकड़कर खींचता हुआ मंत्रीजी के पास ले गया।और हाथ जोड़ते हुए विनय पूर्वक बोला - माननीय मंत्री महोदय ! मैं अपना पुरस्कार अपने इस प्यारे दोस्त को बेच रहा हूंँ। तुम पुरस्कार बेच रहे हो ? मंत्री महोदय ने आश्चर्य- मिश्रित स्वर में पूछा।
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फिर मिलेंगे
रवीन्द्र सिंह यादव
देर रात की मेहनत
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं
आभार
सादर
शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंश्रमसाध्य प्रस्तुति हेतु साधुवाद
शानदार संकलन । हार्दिक आभार आपका
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