शीर्षक पंक्ति: आदरणीया कुसुम कोठारी जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक में पढ़िए पाँच पसंदीदा रचनाएँ-
ठूंठ होते पादपों पर
कोंपले खिलने लगी
प्राण में नव वायु दौड़ी
आस फिर फलने लगी
ज्योति हर कण में प्रकाशित
भोर ने ये वर दिए।।
ज़िंदगी किताब कोरी सी
हर रात हो जाती,
हर सुबह नया इक नाम चुनो !
मजरूह दिल ले कर हर क़दम मुस्कुराते हैं,
बारहा शीशा ए दिल को आज़माया न करो,
*****
फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार..
सादर
बढ़िया लिंक्स चयन
जवाब देंहटाएंसुप्रभात! पठनीय रचनाओं से सजा एक और नवीन अंक, आभार मेरी रचना को स्थान देने हेतु रवींद्र जी!
जवाब देंहटाएंवाह!शानदार अंक ।
जवाब देंहटाएंअत्यंत सुंदर रचनाओं से सजा मोहक अंक। सादर।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचनाओं से सजी उत्तम प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुंदर सारगर्भित रचनाएं पढ़ने मिली भाई रविन्द्र जी।
जवाब देंहटाएंअपनी रचना की पंक्ति को शीर्ष स्थान में देख मन प्रफुल्लित हुआ।
हृदय से आभार आपका पांच लिंकों पर रचना को शामिल करने के लिए।
सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।