सादर अभिवादन
आज भाई कुलदीप जी कहीं व्यस्त है
सो आज मेरी पसंद की रचनाओं का आस्वादन कीजिए
अब देखिए रचनाएँ....
न आकाश में न धरती पर
न अस्त्र से न शस्त्र से
न दिन में न रात में
न घर में न घर से बाहर
न मनुष्य,न पशु,
न देव, न दैत्य
कोई नहीं मार सकता
आज भी हिरण्यकशिपु को,
सुन सको तो कभी सुनना ध्यान से
चुप्पियों से भरी कितनी ही आवाज़ हैं ।
मैंने कहा कि प्यार है तुमसे बेइंतहां
बस इतनी सी बात पर हुज़ूर नाराज़ हैं।
सुखासीन की मदिरा,नीर आचमन हो जाती है।
एक गरीब बेबस की पीड़ा प्रहसन हो जाती है।
षडयंत्र के कंचनी मदमस्त वहशी दरबारों में
मजलूम की लाज निर्मम निर्वसन हो जाती है।
"बड़ी अम्मा! बड़ी अम्मा, आपको दादी बुला रही हैं।"
"क्यों बुला रही हैं तेरी दादी? चल भाग! मैं तेरी बड़ी अम्मा नहीं हूँ।
जाकर कह दे मैं नहीं आ रही हूँ।"
"क्यों नहीं आयेंगीं जीजी। जरा अम्मा के बारे में सोचिए,
कुछ दिनों के अन्तराल में उन्होंने अपने दोनों बेटों को खो दिया।"
उड़द की दाल को सात-आठ घंटे तक पानी में भिगो कर रखा जाता है। उसके टमाटर को उबालकर और पीस कर मसालों और मक्खन में मिलाकर धीमी आंच पर पकाया जाता है। इस प्रक्रिया में करीब सत्रह से अठारह घंटे लगते हैं। धीमी आंच पर पकाने की वजह से दाल बुखारा बेहद स्वादिष्ट बन जाता है। दाल बुखारा को पुदीना पराठा के साथ खाने का अपना अलग ही मजा है। कई लोग दाल बुखारा को खस्ता रोटी के साथ खाना पसंद करते हैं। बुखारा की एक और विशेषता है वहां एक बहुत बड़े साइज का नान परोसा जाता है। बड़े आकार का एक नान चार पांच लोगों के लिए काफी होता है।
आज के लिए बस
सादर
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