जय मां हाटेशवरी......
सादर नमन.....
हज़ार बर्क़ गिरे
लाख आँधियाँ उट्ठें
वो फूल खिल के रहेंगे
जो खिलने वाले हैं ---Sahir Ludhianvi
अब पेश है मेरी पसंद.....
हर रोज़ हमने देखा घुलती है चाँदनी
अपनी ही कोई कमी है हमें दूसरों में दिखती
जब-जब बहस का मूड करे, अच्छे से सोच लें
जाएँगे जीत खो के चैन, सच इसको मान लें
तब कहीं जा के करें आप ऐसी दिल्लगी
चर्चे जहां में और भी हैं झगड़ों को छोड़कर
उनका ही क्यों न रूख करें, पाएँगे लाभकर
काँटों को छोड़ दीजिए, देखें गुलाब भी
मेरी ही बर्बादी का जश्न क्यों हो रहा है?
मेरी दहलीज़ यूँ वीरान क्यों पड़ी है,
आँसू मुझसे इतनी वफ़ा क्यों कर रहे हैं?
तड़प और तन्हाई बाराती बनकर आये हैं,
मेरी ही बर्बादी का जश्न क्यों हो रहा है?
ख्वाब टूटने से पहले जुड़ क्यों नहीं गए,
बिखरे मोतियों को किसी ने समेटा क्यों नहीं?
मेरी फ़ितरत में तो बेवफ़ाई कभी शामिल ना थी,
फिर किसी को मुझ पर जरा सा भी भरोसा क्यों नहीं?
आईना मुझसे मेरी पहली सी सूरत माँगे-
मैँ भटकता ही रहा दर्द के वीराने में
वक़्त लिखता रहा चेहरे पे हर पल का हिसाब
मेरी शोहरत मेरी दीवानगी की नज़र हुई
पी गई मय की बोतल मेरे गीतोँ की किताब
आज लौटा हूँ तो हँसने की अदा भूल गया
ये शहर भूला मुझे मैँ भी इसे भूल गया
मेरे अपने मेरे होने की निशानी माँगें
तुम्हारी स्मृतियों से
ये रोपती हैं
जीवन राग के साथ
गुमसुम सी यादें
लांघते हुए
उस समय को
कि जिसकी प्रांजल हँसी
समाई हुई है
मेरे अंदर
बहुत गहरे में कहीं पर ।
दोहे "सूरज से हैं धूप"
चन्दा से है चाँदनी, सूरज से हैं धूप।
सबका अपना ढंग है, सबका अपना रूप।।
--
थोड़े से पीपल बचे, थोड़े बरगद-नीम।
इसीलिए तो आ रहे, घर में रोज हकीम।।
धन्यवाद।
व्वाहहहहहह
जवाब देंहटाएंसुंदर अंक
आभार आपका
सादर
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति
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