।। प्रातः वंदन।।
एक अंकुर हुआ भोर का प्रस्फ़ुटित
इक नये रंग में ढल उषा सज गई
राकेश खंडेलवाल
मुझे भी चलना है
तुम्हारे साथ..
तुम से कदम मिलाकर
चल पड़ूँगी
इतना भरोसा तो है मुझे ..
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आओ जीमने
इस दुनिया में तीसरी दुनिया | किन्नर विमर्श की लघुकथाओं का संकलन
श्वेतवर्णा प्रकाशन, नयी दिल्ली से प्रकाशित-
"इस दुनिया में तीसरी दुनिया"
संपादक- डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर', सुरेश सौरभ
(किन्नर विमर्श की लघुकथाओं का संकलन)
संपादकीय से-
■ डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
प्रस्तुत लघुकथा-संकलन "इस दुनिया में तीसरी दुनिया" हमारे अपने समाज की ही एक उपेक्षित गाथा है। सदियों के दंश झेल कर यह गाथा चिल्ला-चिल्ला कर कह रही है कि मेरा दोष क्या? ..
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जीने का सलीक़ा
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।। इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️
ज़रूर सुनें जोश-ओ-जबान
सुंदर अंक
जवाब देंहटाएंएक नए ब्लाग से रूबरू हुई
आभार
सादर
बढ़िया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंविविधताओं से परिपूर्ण सुन्दर सूत्रों से सजी प्रस्तुति में मेरे सृजन को सम्मिलित करने के लिए आपका हार्दिक आभार ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
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