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सोमवार, 1 मई 2023

3744 ..पत्थरों पर दूब उगाई जा सकती है

 सादर नमस्कार

परसो से देवी जी का मोबाईल तंग कर रहा था
आज रिसेट करवाई,मोबाईल तो सही हो गया
पर पासवर्ड सब गड़बड़ हो गया

खैर सजा तो मिलनी है
उसे मिले या मुझे ...
ये ईश्वर तै करेगा
बहरहाल मज़दूर दिवस की शुभकामनाएँ
..... रचनाएँ..


"हथेली पर सरसों उगाना
इतना असम्भव बात नहीं है।
बदलते ऋतु के संग पत्थरों पर
धूल-मिट्टी जमा होते जाते और
उनमें दूब उगाई जाती है..."





मांग कुछ
थोड़ा सा कोशिश कर
महर लिख दे
सूखे खेत के बीच
जा बड़ी सी एक नहर लिख दे

कुछ तो लिख
रोज नहीं कभी
एक पहर लिख दे
किस को पड़ी है
‘उलूक’ गर गहर लिख दे |





विचलित क्यूं सागर, शायद जानो,
हलचल उसकी भी पहचानो,
तड़पे क्यूं, आहत सा,
लहरें तट पर, क्यूं, बहके-बहके!





जहाँ उतरी थी सांध्या
तुम कुछ मत कहना
एक गीत गुनगुना लेना
छू लेना रंग प्रीत का
हाथों का स्पर्श बहा देना





खोखले रिश्ते में
दम तोड़ता अपनापन..
स्वार्थ की अमा(नत)
उम्मीद की बुनियाद को
चुनती दीमक सी....
नैराश्य के बादलों से
दुख की बरसात...
छीन लेना चाहती है
जीवन का सुकून।
....
आज के लिए बस
सादर

5 टिप्‍पणियां:

  1. व्वाहहहहहहह
    बेहतरीन अंक
    मई दिवस पर शुभकामनाएं
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. मजदूर दिवस पर इतना तो बनता है
    शुभकामनाओं और बधाई के संग हार्दिक आभार आपका

    श्रमसाध्य प्रस्तुति हेतु साधुवाद

    जवाब देंहटाएं
  3. बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति ,सभी रचनाएं उत्तम, रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार आदरणीय सादर

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुंदर प्रस्तुति।
    हार्दिक आभार स्थान देने हेतु।
    सादर

    जवाब देंहटाएं

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