तो कोई और वजह होगी..
अब हर ऐब के लिए
कसूरवार इश्क तो नहीं..!!
सादर अभिवादन....
अगर मेंढक को गर्मा गर्म उबलते पानी में डाल दें
तो वो छलांग लगा कर बाहर आ जाएगा
हमारे सारे इंसानी रिश्ते, राजनीतिक और सामाजिक भी, ऐसे ही होते हैं, पानी, तापमान और मेंढक जैसे। ये तय हमे ही करना होता है कि हम जल मे मरें या सही वक्त पर कूद निकलें।
प्रकाश स्तम्भ
नहीं एक मंज़िल,
सिर्फ़ एक संबल
दिग्भ्रमित नौका को,
दिखाता केवल राह
गहन अँधेरों के वासी हो
तुम उजाला क्या करोगे -
भूखा रहने की पड़ी है
आदत तुम निवाला क्या करोगे -
किसी मंदिर सा था...
हमारा प्रेम...
अखंड था...
मंदिर में स्थापित...
मूरत सा था..हमारा प्रेम...
धुनों में गूंजता था...
मंदिर में बजती...
पागलपन में हो गयी, वाणी भी स्वच्छन्द।
लेकिन इसमें भी कहीं, होगा कुछ आनन्द।।
पागलपन में सभी कुछ, होता बिल्कुल माफ।
पागल का होता नहीं, कहीं कभी इंसाफ।।
पर, अजीब होती हैं औरतें
प्रयोरिटीज़ में हर लम्हे रहते हैं
बेबी या बाबू .......!
बच्चो की चिंता
चेहरे पे हर वक़्त शिकन!!
हे गणेश गजानन गौरी नंदन
मेरी आस्था मुझे लौटा दो
मुझ में विश्वास जगा दो
जो कुछ हूँ तुमसे ही हूँ
भक्ति भाव जगा दो
मुझे अपने तक पहुचा दो|
फिर मिलेंगे....
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंआज का अंक सराहनीय |मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |
बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार!
बहुत सुन्दर सूत्र...आभार..
जवाब देंहटाएंशुक्रिया मेरे कविता को शेयर करने के लिए
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