सैकड़े से मात्र
अट्ठाईस कदम
दूरी पर है..
पाँच लिंको का आनन्द
चलिए चलते हैं आज की रचनाओं की ओर...
अधकचरा यानी अधूरा ज्ञान हमेशा हर जगह नुकसानदायक होता है और यह तब और ज्यादा नुकसान करता है जब अधूरे ज्ञान वाला स्वयंभू ज्ञानी शिक्षक, नेता, साधू के रूप में अपने अधूरे ज्ञान को अपने उद्बोधनों में बांटते फिरते है तथा लेखक आने वाली पीढ़ी के लिए अपने अधूरे ज्ञान के सहारे पुस्तकें लिखकर भ्रांतियां खड़ी कर देते है|
जिन्दा रहे तो हमको कलन्दर कहा गया
सूली पे चढ़ गये तो पैगम्बर कहा गया
जब से तुमसे मिली...
मैं प्रेम को लिखने लगी...
जब तुम्हारी आखों की,
गहराईयों में उतरी तो...
अंतहीन..अद्रश्य...
प्रेम को मैं लिखने लगी...
चलो अच्छा हुआ
आइनों ने ही
तुमको तुम्हारा सच
समझा दिया
जा जा जा बेवफा,
कैसा प्यार कैसी प्रीत रे
तू ना किसी का मीत रे,
झूठी तेरी प्यार की कसम
ढूँढ रही हूँ इन दिनों
अपना खोया हुआ अस्तित्व
और छू कर देखना चाहती हूँ
अपना आधा अधूरा कृतित्व
जो दोनों ही इस तरह
लापता हो गये हैं कि
तमाम कोशिशों के बाद भी
कहीं मिल नहीं रहे हैं,
जब आप बीमार थे
तो कभी सोचा न था
यूँ चले जाओगे
और चले गए तो
आप इतना याद आओगे...
जुखाम बहुत है...
खांसी भी आ रही है
आँसू पोंछने वाले तो
बहुत मिलते हैं....
कंधो को छूते है
पीठ थपथपाते हैं
परन्तु.....
नाक पोंछने को
कोई नहीं आता....
आज्ञा दें यशोदा को
एक गीत आपने ऊपर सुना
एक गीत फिर सुनिए
शुभप्रभात...
जवाब देंहटाएंसुंदर लिंकों का चयन...
सुंदर प्रस्तुति यशोदा जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सार्थक बढ़िया सूत्र चुने हैं आज यशोदा जी ! विलम्ब से आने के लिये क्षमाप्रार्थी हूँ ! मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार आपका !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति यशोदा ! मेरी रचना को यहाँ पर स्थान देने के लिये धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंsundar prastuti....meri kavita ko yahan sthan dene kay liye shukriya
जवाब देंहटाएंsundar prastuti....meri kavita ko yahan sthan dene kay liye shukriya
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति ...धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति यशोदा जी
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