एक बार एक कवि हलवाई की दुकान पहुँचे,
जलेबी और दही ली और वहीं खाने बैठ गये।
इतने में एक कौंआ कहीं से आया और
दही की परात में चोंच मारकर उड़ चला।
हलवाई को बड़ा गुस्सा आया
उसने पत्थर उठाया और कौंए को दे मारा।
कौंए की किस्मत ख़राब,
पत्थर सीधे उसे लगा और वो मर गया।
कवि महोदय के हृदय में ये घटना देख दर्द जगा।
वो जलेबी, दही खाने के बाद पानी पीने पहुँचे
तो उन्होने एक कोयले के टुकड़े से वहाँ एक पंक्ति लिख दी :-
"काग दही पर जान गँवायो"
कवि ने सही लिखा..
एक अन्य ने ऐसा पढ़ा..
"कागद ही पर जान गँवायो"
और एक असफल प्रेमी ने कुछ यूँ पढ़ा
"का गदही पर जान गँवायो"
यहाँ पर एक अधिक लिंक है....
चलिए चलते हैं लिंक्स की ओर....
"बड़े मियां बिल्ली तो आपने बेच दी। अब इस पुराने कटोरे का आप क्या करोगे? इसे भी मुझे ही दे दीजिए। बिल्ली को दूध पिलाने के काम आएगा। चाहे तो इसके भी 100-50 रुपए ले लीजिए।'
.........
जुम्मन मियां ने जवाब दिया, "नहीं साहब, कटोरा तो मैं किसी कीमत पर नहीं बेचूंगा, क्योंकि इसी कटोरे की वजह से आज तक मैं 50 बिल्लियां बेच चुका हूं
आम बच्चों की तरह
कागज की कश्ती बनाना
उसे पानी में तैराना
तैरते देखना
खुश होना
तालियाँ बजाना
मैंने भी किया था
सुनते हैं कि बुढ्ढे के कुर्ते में एक कागज भी मिला है।"
- "ओह!"
- "हाँ भाई, सिर्फ एक पंक्ति लिखी हुई थी - दवाईयों और इलाज में काफी पैसे खर्च होते हैं, पर एक पुड़िया जहर तो २ रूपये में आता है ना!!!"
तोहरे साथ हमेशा
धोखा होला गंगा माई |
सिर्फ़ तमाशा देखत हौ
हर टोला गंगा माई |
और ये आज का अंतिम सूत्र...
सूखे खेत चिंघाड़ते ही हैं
निर्विवाद सत्य है ये
फिर क्यों शोर मचा रही हैं
आकाश में चिरैयायें
आज्ञा दें....
फिर मिलेंगे और मिलते रहेंगे
यशोदा
सुंदर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंपठनीय लिंक संयोजन
जवाब देंहटाएंआभार
सुंदर लिंक चयन... आभार आप का...
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