डूब न जाए कहीं सूरज कई सालों के लिए.
- दुष्यंत कुमार
सादर आभिवादन....
सीधे चलते हैं रचनाओं का ओर.....
हर अदा तेरी
अधिक समीप लाती
तू ही तू नज़र आती
स्वप्नों में सताती |
जुम्बिश अलकों की
गंध-मुग्ध मृगी एक निज में बौराई,
विकल प्राण-मन अधीर भूली भरमाई .
कैसी उदंड गंध मंद नहीं होती,
जगती जो प्यास ,पल भर न चैन लेती .
प्याज में मात्र
भोजन की सीरत सूरत स्वाद सुगंध
बदलने की कूबत ही नहीं
सत्ता परिवर्तन की भी क्षमता है.
प्याज और सरकार
एक दूसरे के पर्याय हैं.
नाम चरणामृत का लेकर
विष पिला डाला किसी नें
जब सुमिरनी हाथ में ली
तोड़ दी माला किसी नें
पर्यूषण दोहे
पर्यूषण का पर्व है ,रोज भजो नवकार |
अंतरमन को शुद्ध कर ,होंगे दूर विकार ||
महामंत्र नवकार है ,सुनना सुबह शाम |
सबसे अच्छे पर्व का, पर्यूषण है नाम ||
दो दिनों से तबियत में कुछ नरमी सी है
फिर भी ठीक हूँ...
अपनी आगाज से आज तक..
'जिंदगी' तेरे हीं याद में गुम रही ...
फिर भी जाने क्यूँ ये एहसास है ,
जैसे चाहत मेरी कम रही .....!!
--सोनू अग्रवाल--
आज्ञा दें यशोदा को...
फिर मिलते हैं न...
शुभप्रभात...सुंदर अंदाज के साथ उत्तम हलचल....
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंपांच लिंक्स का आनंद बहुत अच्छा लगा |
मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार सहित धन्यवाद यशोदा जी |
स्वास्थ लाभ हेतु शुभकामनाऐं । सुंदर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंपूरी तरह स्वस्थ न होते हुये भी आपने विश्राम न ले कर रचनायें चुनने का श्रम किया हम उपकृत हैं पर अपने स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखें - ये सब काम तो चलते रहेंगे थोड़ी देर ही सही .
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति हेतु आभार
जवाब देंहटाएंसुंदर हलचल. मेरी रचना को स्थान देने हेतु धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंसुप्रभात बहना
जवाब देंहटाएंहमेशा स्वस्थ्य रहें
प्रस्तुति लाजबाब बनाती हैं