चांदनी की शीतल छांव
ताल में डूबा रहे पाँव
कंकरों की चक्करघिन्नी
कुंठा मिटाने का मिले दांव
मेरासागर पे चांदनी
खोये-खोये से चांद पर,
जब बारिश की बूंदे बैठती,
और बादल की परत,
घूंघट में हो, उसे घेरती,
ये चाँद भी क्या हंसी सितम ढाता है
बचपन में चंदा मामा और
जवानी में सनम नजर आता है
एक शाम मेरे नाम पर अक्सर कोई गीत, कोई ग़ज़ल या रिकार्डिंग आपको सुनवाता रहा हूँ।
पर आज इन सबसे अलग एक ऐसी धुन सुनवाने जा रहा हूँ
जो मूलतः तो एक तमिल गीत के लिए बनाई गई थी पर
पिछले एक हफ्ते से मेरे दिलो दिमाग पर कब्ज़ा जमाए बैठी है।
किसी धुन के अंदर बहते संगीत पर किसी सरहद की मिल्कियत नहीं होती।
कविता पे चांदनी
वो चांदनी रात हम और तुम
फूलों से सजी बगिया उपवन
वो सपनो का झूला वो सजन का साथ
उन यादों को भूल न पाया ये मन !!
सच में पे चांदनी
खुशनुमा माहौल में भी गम होता है,
हर चांदनी रात सुहानी नहीं होती।
भूख, इश्क से भी बडा मसला है,
हर एक घटना कहानी नहीं होती।
फिर मिलेंगे
तब तक के लिए
आखरी सलाम
विभा रानी श्रीवास्तव
बहुत सुंदर । चाँदनी से चाँदनी तक की हलचल ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार!
चांदनी में चमकती हुई सुंदर हलचल....
जवाब देंहटाएंचाँदनी
जवाब देंहटाएंआदि से
अंत तक
चाँदनी ही
चाँदनी....
सर्वोत्तम प्रस्तुति
.......दीदी आप तो माहिर हैं
शरद पूर्णिमा के दिन
सौवीं पोस्ट की प्रक्रिया
प्रारम्भ करें....
सादर...
सुन्दर हलचल :)))
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