मुश्किल नहीं…
फिक्र तब होती है जब…
खामोशी भी बोलना छोड़ दें…।
सादर अभिवादन......
चलें आनन्द लेनें......
डाल से बंधा झूला तो
पूरी पाबंदी और विनम्रता
के साथ आज भी लटका है
अपनी जगह पर
जिस तरह सालों पहले
बांधा था आपने बाबा !
खुली परतें
चेहरा बेनकाब
झूठ ही झूठ
झूला ,भुजरिया,' भेजा', और ' डढ़ैर'
इन चार शब्दों में कम से कम दो नाम अटपटे और आपके लिये अपरिचित होंगे शायद . लेकिन इनमें रक्षाबन्धन के साथ बचपन की उजली स्मृतियाँ उसी तरह पिरोई हुई हैं जैसे धागा में मोती .
मैं जानती हूँ जो
खूबसूरती ढूंढती हैं
तुम सब की नज़रें
वो नहीं मिलती मुझमे.....
और ये अंतिम सूत्र....
नहीं किया जिक्र तुमसे
अपनी नासाज़ तबीयत का,..
नहीं की साझा तुमसे
अपने मन की बातें,.
अब विदा दें यशोदा को..
एक पुराना गीत सुनवाती हूँ
बहुत सुन्दर लिंक्स का चयन किया है आज के लिये यशोदा जी ! कठपुतली फिल्म का यह सदाबहार गीत सुन कर आनंद आ गया ! आज मुझे भी सम्मिलित करने के लिये हृदय से आपका आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर गीत और उतनी ही सुंदर हलचल ।
जवाब देंहटाएंपहले तो इस बहुत खूबसूरत गीत के लिये और फिर मेरी रचना के चयन के लिये धन्यवाद यशोदा जी
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