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सोमवार, 14 सितंबर 2015

क्यों बनती है नारी ही नारी की दुश्मन...अंक अंट्ठावन

ये जो तुम 
बार बार हवा देते हो, 
तो ये यादों के 
पन्ने फड़फड़ाते हैं….!!
भूल जाने दो अब, 
क्यों मुझे 
बार बार 
जगा देते हो…..!!!
सादर अभिवादन....


क्यों बनती है नारी ही नारी की दुश्मन?
हम कहते है, नारी शोषित है, नारी पर बहुत अत्याचार होते है! लेकिन क्या नारी अत्याचार के लिए सिर्फ पुरुष वर्ग ही जिम्मेदार है? क्या नारी स्वयं नारी की दुश्मन नही बनती है? वास्तव में स्त्री-पुरुष का रिश्ता परस्पर पूरकता पर आधारित है| 


सुना है गिरना बुरा है 
देखती हूँ आसपास 
कहीं न कहीं, 
कुछ न कुछ 
गिरता है हर रोज़. 


किस्सा-ए-बदतमीज़ शाहज़ादा, पागल लड़की और नीली स्याही
इक दुष्ट शहजादा था...हाँ, वही...जिसने लड़की का दिल चुरा लिया था...इस बार वो उसकी नीली स्याही की दवात लिए भागा है...बताओ, शोभा देता है उसको...शहजादा होकर भी ऐसी हरकतें...उफ़...आपको कहीं मिले तो समझाना उसे...ठीक?


ऐ मेरे मन
किसी के कहने पर कुछ न कहना
किसी दूसरे की भावनाओ में न बहना
अपने भीतर के प्रकाश को कमजोर कर जाता है


चलता रहे सफ़र... !!
एक एक रंग
आपस में मिल कर 
अलग अलग पर्मुटेसन कॉम्बिनेसन में 
रच सकते हैं अनेक रंग


आज्ञा दें दिग्विजय को

आज घर,

घर नहीं बाजार हो गया
छोटी-बड़ी सालियों
और छोटे-बड़े बच्चों से
घर गुल-ए-गुलजार हो गया
सादर...
















9 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर प्रस्तुति दिग्विजय जी ।
    गजब है सालियों के आने से घर बाजार हो गया बता रहे हैं
    गुले ऐ गुलजार होने की बात कह कर कुछ तो छिपा रहे हैं । :)

    जवाब देंहटाएं
  2. दिग्विजय जी, मेरी रचना को शामिल करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद...

    जवाब देंहटाएं
  3. दिग्विजय जी, मेरी रचना को शामिल करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद...

    जवाब देंहटाएं
  4. दिग्विजय जी, मेरी रचना को शामिल करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद...

    जवाब देंहटाएं
  5. दिग्विजय जी, मेरी रचना को शामिल करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद...

    जवाब देंहटाएं
  6. सुंदर लिनक्स का संयोजन. मेरी रचना को स्थान देने हेतु धन्यबाद.

    हिंदी दिवस पर आप सभी को अनेकानेक शुभकामनायें.

    जवाब देंहटाएं

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