आज हिंदी को भी...
अपने ही देश में...
पावन सीता की तरह...
अगनी परीक्षा देकर ही...
अपनी श्रेष्ठता का...
प्रमाण देना होगा क्या?...
नहीं नहीं अब नहीं...
हिंदी अब...
रुकमणी बनकर...
अपना पथ खुद...
बनाना जानती है...
अब चलते हैं...
आज के पांच लिंकों की ओर...
manoj sharma जी कह रहे हैं...
अरे बाप रे बाप
हिंदी का महासम्मेलन मध्यप्रदेश में आयोजित हुआ लेकिन सम्मलेन कम विरोधियो पर अपनी भड़ास निकालते हुए , नाकामयाबी और हताशा में चुनावी मंच समझ प्रधानमंत्री
बोलते नज़र आये ।क्या इसी तरह से हिन्दी को सम्मान दे रहे थे प्रधान मंत्री ? देश के गरिमामय पद पर विराजमान प्रधानमंत्री जी चुनावी मोड़ से निकल देश के प्रधानमंत्री
मोड़ में अभी तक नहीं आ पाए हैं ।अभी तक प्रधानमंत्री ने अपने मंत्रियो के बारे में कुछ न बोलने का प्रण लिया हुआ हैं ,बहुत अच्छी बात हैं आरोपी बनने से अच्छा
हैं की आरोपों को स्वीकार ही न करो देश की जनता को ज़बाब देने के बजाये विपक्ष को कोसते रहो पर कब तक चलेगा आप की बात मन की बात कब तक ? प्रजा की बात कब ?
सुशील कुमार जोशी जी कुछ अपने उसी अंदाज में यूं कह रहे हैं...
दसवाँ हिंदी का सम्मेलन कुछ नया होगा सदियों तक याद किया जायेगा
विश्व का है
हिंदी का है
सम्मेलन बड़ा है
छोटी मोटी बात
से नहीं घुमायेगा
छोटा होता होगा
तेरे घर के आसपास
उसी तरह का कुछ
बड़ा बड़ा किया जायेगा
जमाना अंतःविषय
दृष्टिकोण का होना
बहुत जरूरी हो
गया है आजकल
एक विषय पर ही
बात करने से
दूसरे विषय का
अपना आदमी
कहाँ समायोजित
किया जायेगा
शिवम् मिश्रा जी याद दिला रहे हैं...
१२२ साल पहले शिकागो मे हुई थी भारत की जयजयकार
स्पष्ट तौर पर मात्र एक भाषण ने ऐसी ज्योति प्रज्ज्वलित की, जिसने पाश्चात्य मानस के अंतर्मन को प्रकाश से आलोकित कर दिया और ऊष्मा से भर दिया। इस भाषण ने सभ्यता
के महान इतिहासकार को जन्म दिया। अर्नाल्ड टोनीबी के अनुसार- मानव इतिहास के इन अत्यंत खतरनाक क्षणों में मानवता की मुक्ति का एकमात्र तरीका भारतीय पद्धति है।
यहां वह व्यवहार और भाव है, जो मानव प्रजाति को एक साथ एकल परिवार के रूप में विकसित होने का मौका प्रदान करता है और इस परमाणु युग में हमारे खुद के विध्वंस
से बचने का यही एकमात्र विकल्प है।
Madan Mohan Saxena जी सुना रहे हैं...
सुन्दर हिंदी प्यारी हिंदी में प्रकाशित ग़ज़ल
उलझन आज दिल में है कैसी आज मुश्किल है
समय बदला, जगह बदली क्यों रिश्तें आज बदले हैं
जिसे देखो बही क्यों आज मायूसी में रहता है
दुश्मन दोस्त रंग अपना, समय पर आज बदले हैं
Virendra Kumar Sharma जी का कहना है...
अनादिकाल से सूर्य ओम (ॐ )का जाप कर रहा है
वैज्ञानिको का आश्चर्य वास्तव मे *समाधि* की उच्च अवस्था का चमत्कार था जिससे ऋषियों ने वह ध्वनि सुनी अनुभव की और वेदो के हर मंत्र से पहले उसे लिखा और महामंत्र
बताया |
ऋषि कहते है ये ॐ ध्वनि परमात्मा तक पहुचने का माध्यम है उसका नाम है |महर्षि पतंजलि कहते है *तस्य वाचक ? प्रणव * अर्थात परमात्मा का नाम प्रणव है , प्रणव
यानि कि ॐ |
प्रश्न यह उठता है कि सूर्य मे ही ये ध्वनि क्यूँ हो रही है ? इसका उत्तर *गीता * मे दिया गया है | भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते है -*जो योग का ज्ञान मैंने
तुझे दिया ,यह मैंने आदिकाल मे सूर्य को दिया था |* देखा जाए तो तभी से सूर्य नित्य-निरन्तर मात्र ॐ का ही जाप करता हुआ अनादिकाल से चमक रहा है |या जाप सूर्य
ही नहीं , सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड कर रहा है |
धन्यवाद...
वाह....
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया...
शुभ प्रभात कुलदीप भाई
waawaah bht hi utkrisht wa sarahniya
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति कुलदीप जी और आभार 'उलूक' का सूत्र 'दसवाँ हिंदी का सम्मेलन कुछ नया होगा सदियों तक याद किया जायेगा' को जगह देने के लिये ।
जवाब देंहटाएंआप का आभार ... बंधुवर |
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