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शनिवार, 26 सितंबर 2015

चांदनी



सभी को यथायोग्य
प्रणामाशीष

आज इस साल का 269 वां दिवस है

गर्मी उमस बर्दाश्त के बाहर होती जा रही है
दिल ढूंढता है
कब शाम हो और चांदनी मिले

झरोखा पे चांदनी

चांदनी की शीतल छांव
ताल में डूबा रहे पाँव
कंकरों की चक्करघिन्नी
कुंठा मिटाने का मिले दांव


मेरासागर पे चांदनी

खोये-खोये से चांद पर,
जब बारिश की बूंदे बैठती,
और बादल की परत,
घूंघट में हो, उसे घेरती,



ये चाँद भी क्या हंसी सितम ढाता है

बचपन में चंदा मामा और
जवानी में सनम नजर आता है
एक शाम मेरे नाम पर अक्सर कोई गीत, कोई ग़ज़ल या रिकार्डिंग आपको सुनवाता रहा हूँ।
पर आज इन सबसे अलग एक ऐसी धुन सुनवाने जा रहा हूँ
जो मूलतः तो एक तमिल गीत के लिए बनाई गई थी पर
पिछले एक हफ्ते से मेरे दिलो दिमाग पर कब्ज़ा जमाए बैठी है।
किसी धुन के अंदर बहते संगीत पर किसी सरहद की मिल्कियत नहीं होती।


कविता पे चांदनी

वो चांदनी रात हम और तुम
फूलों से सजी बगिया उपवन
वो सपनो का झूला वो सजन का साथ
उन यादों को भूल न पाया ये मन !!


सच में पे चांदनी

खुशनुमा माहौल में भी गम होता है,
हर चांदनी रात सुहानी नहीं होती।
भूख, इश्क से भी बडा मसला है,
हर एक घटना कहानी नहीं होती।


फिर मिलेंगे
तब तक के लिए
आखरी सलाम



विभा रानी श्रीवास्तव


5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर । चाँदनी से चाँदनी तक की हलचल ।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति
    आभार!

    जवाब देंहटाएं
  3. चांदनी में चमकती हुई सुंदर हलचल....

    जवाब देंहटाएं
  4. चाँदनी
    आदि से
    अंत तक
    चाँदनी ही
    चाँदनी....
    सर्वोत्तम प्रस्तुति
    .......दीदी आप तो माहिर हैं
    शरद पूर्णिमा के दिन
    सौवीं पोस्ट की प्रक्रिया
    प्रारम्भ करें....
    सादर...

    जवाब देंहटाएं

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