शीर्षक पंक्ति: डॉ. जेन्नी शबनम जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक लेकर हाज़िर हूँ। प्रस्तुत हैं सद्य प्रकाशित पाँच रचनाओं के
लिंक्स व अंश-
अपनों द्वारा
होती अपमानित
हिन्दी शापित।
हिन्दी कहती-
तितली-सी उड़ूँगी
नहीं हारूँगी।
हिन्दी भाषा की जो आन-बान है,
किसी और की कब हो सकती है!
तलाक के काग़ज़ शायद उड़ जाएं खिड़की
से बाहर,
जैसे फेंक दी जाती हैं अनचाही चीजें
कबाड़ के साथ,
मां और पिता फ़िर साथ बैठ सपनों में
खो जाएं
उनके प्रेम की साक्षी बन स्थिर हो
जाऊँ उन दीवारों की जगह।।
हूँ हिंदी सिद्धा स्वयं सकल
हर भाषा भाषी में व्यापूँ ।
अंतर्मन घट-घट में उतरूँ
मग-मग,डग-डग धरती नापूँ ॥
कम्प्यूटर हो, विज्ञान जगत
नतमस्तक बारम्बार सुनो ॥
हम हिन्दी में बोलते।
बोली में मिश्री घोलते।
हर भाषा से तोलते।
हिन्दी को अपनाइए।
क्या बात है.....
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुति
आभार.....
सादर
वाह!शानदार प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनाएँ । आभार
जवाब देंहटाएंमेरी छोटी-सी रचना को इस सुन्दर पटल पर स्थान देने के लिए आपका बहुत आभार भाई रवीन्द्र जी! सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई!
जवाब देंहटाएंइस पटल पर प्रस्तुत की गई साथी रचयिताओं की सभी रचनाएँ पढ़ीं, मन को बड़ा सुकून मिला! सभी को स्नेहिल बधाई!
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