शुक्रवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
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दिनकर जी का जन्मदिन है आज।
हिंदी साहित्य के ऐसे सूर्य जिनके तेज से संपूर्ण साहित्य जगत दैदीप्यमान है।
दिनकरजी की काव्यात्मक प्रतिभा ने उन्हें अपार लोकप्रियता प्रदान की। उन्होंने सौन्दर्य, प्रेम, राष्ट्रप्रेम, लोक-कल्याण आदि अनेक विषयों पर काव्य-रचना की, किन्तु उनकी राष्ट्रीय भाव पर आधारित कविताओं ने जनमानस को सर्वाधिक प्रभावित किया। दिनकर को क्रान्तिकारी कवि के रूप में भी प्रतिष्ठा मिली।
एक प्रगतिवादी और मानववादी कवि के रूप में उन्होंने ऐतिहासिक पात्रों और घटनाओं को ओजस्वी और प्रखर शब्दों का तानाबाना दिया। उनकी महान रचनाओं में रश्मिरथी और परशुराम की प्रतीक्षा शामिल है। उर्वशी को छोड़कर दिनकर की अधिकतर रचनाएँ वीर रस से ओतप्रोत है। भूषण के बाद उन्हें वीर रस का सर्वश्रेष्ठ कवि माना जाता है।
इनके लेखन के विषय में ज्यादा जानने की रूचि हो
तो इस विश्लेषात्मक निबंध का
रसपान अवश्य करें।
अब आज का अंक -
वर्षा ऋतु और शरद काल के बीच क्वार की छुअन
ऋतुओं के संधिकाल को तरंगित कर देती है।
कास के फूल मन को जाने कैसे इंद्रधनुषी कर देते हैं।
हरी धरती का पवित्र शृगार श्वेत कास और आसमान में अठखेलियाँ करते झक बादल।
आप भी महसूस करिये दूब की नोंक पर ठहरे ओस की मदिर बूँदों को पीते खूबसूरत हरसिंगार के बिछौने पर
उड़ते शरारती भँवरों के झुंड। फुदकती चिड़िया हरे खेतों के मेड़ पर कच्चे धान के पकने की प्रतीक्षा में, दिन-भर धमा -चौकड़ी करती गिलहरियाँ नव ऋतु का स्वागत में दिन कुतरती धूप, शीतल होती हवाओं के संग आँख मिचौली
खेलता मुस्कुराता चाँद क्वार से शरद की यात्रा का
साक्षी बनने को आतुर है।
आज की रचनाओं का आनंद लीजिए
मेरा
आखिरी सम्बल भी विचलित
आंखों में आंसू नहीं
अपितु
मन अग्निमय हो रहा
जाने कहाँ मेरे अतीत
धुंध में खो रहा
तुझे मानसपटल से
कैसे उतार फेकूं
ह्रदय में
स्मृति स्नेह अंकित हो रहा
ये प्रकृति सौ रूप धरती
कब अशुचि कब मोहिनी
मौसमी बदलाव इतने
रूक्ष कब हो सोहिनी
कौन रचता खेल ऐसे
है अचंभे से भरा।।
पलट पलट के किताबे-अतीत थक गया था मै |
जागता रहा रात भर मगर तुझको सुला दिया ||
आहिस्ते से बात कर , सुन धड़क रहा है दिल |
अभी चुप किया था मैंने , फिर तूने रुला दिया ||
बारिश
पागल बूंदें
नहीं जानतीं
कि प्रेम
अब नहीं रहा वैसा
जैसा देखा है उसने
चातक में
चकोर में
चकवा में,
इंसानी प्रेम
ढल गया है अब
जाति में, धर्म में,
ग्रीनकार्ड में
और चलते-चलते पढ़िए
और जो
रह गया
कहाँ तलाश करे उसको
उसको अब किस किताब के
लफ्जों में तलाश करे
प्यार हो जो उम्र भर का
उन लम्हों की कहाँ बात करे ?
आज के लिए इतना ही
कल का विशेष अंक लेकर
आ रही है प्रिय विभा दी।
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पागल बूंदें
जवाब देंहटाएंनहीं जानतीं
कि प्रेम
अब नहीं रहा वैसा
प्यारी सखी
हमारे सभी उपकरण बेकार हो रहे है
कोशिश में हैं कि आज सही काम करे
असंख्य आभार
दिनकर को नमन
जवाब देंहटाएंउम्दा लिंक्स चयन हेतु साधुवाद
रामधारी सिंह दिनकर की यह कविता किसे याद न होगी ????
जवाब देंहटाएंहठ कर बैठा चाँद एक दिन, माता से यह बोला,
सिलवा दो माँ मुझे ऊन का मोटा एक झिंगोला ।
सन-सन चलती हवा रात भर जाड़े से मरता हूँ,
ठिठुर-ठिठुर कर किसी तरह यात्रा पूरी करता हूँ ।
आसमान का सफ़र और यह मौसम है जाड़े का,
न हो अगर तो ला दो कुर्ता ही कोई भाड़े का ।
बच्चे की सुन बात, कहा माता ने 'अरे सलोने`,
कुशल करे भगवान, लगे मत तुझको जादू टोने ।
जाड़े की तो बात ठीक है, पर मैं तो डरती हूँ,
एक नाप में कभी नहीं तुझको देखा करती हूँ ।
कभी एक अँगुल भर चौड़ा, कभी एक फ़ुट मोटा,
बड़ा किसी दिन हो जाता है, और किसी दिन छोटा ।
घटता-बढ़ता रोज़, किसी दिन ऐसा भी करता है
नहीं किसी की भी आँखों को दिखलाई पड़ता है
अब तू ही ये बता, नाप तेरी किस रोज़ लिवाएँ
सी दे एक झिंगोला जो हर रोज़ बदन में आए !
चाँद का कुर्ता !
हटाएंआज की प्रस्तुति रामधारी दिनकर से प्रारम्भ हो कर प्रकृति का मनोहर विहंगम दृश्य दिखाते हुए .... कह उठी है ....तुम्हें उजालों की कसम कि ये अबूझ प्रकृति है ...लेकिन शिकायतें मगरूर हैं मगर बारिश की बूँदें .... सबको भिगो कर मन को ठंडक देते हुए ढाई आखर पर अटक गई हैं ।
जवाब देंहटाएंदिनकर जी को नमन 🙏🙏🙏
मुझे इनके दो प्रबंध काव्य कुरुक्षेत्र और रश्मिरथी बेहद प्रिय हैं ।
कालजयी रचनाकार दिनकर जी को सादर नमन
जवाब देंहटाएंप्रभावी और अर्थपूर्ण भूमिका के लिए आपको साधुवाद
कमाल का सूत्र संयोजन
सभी रचनाकारों को बधाई
मुझे सम्मलित करने का आभार
सादर
आदरणीया श्वेता सिन्हा जी ,
जवाब देंहटाएंआपके इस आशीर्वाद के लिए बहुत बहुत साधुवाद !
सादर वन्दे !
शानदार प्रस्तुति शीर्ष से अंत तक।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई,सभी रचनाएं उत्तम पठनीय।
मेरी रचना को प्रस्तुत करने के लिए हृदय से आभार।।
श्वेता आपका क्वार का वर्णन और ऋतुओं की छुअन आनंदित कर गई बहुत सुंदर लिखा है आपने, गद्य में पद्य का आनंद, मंजुल भाषा।
दिनकर जी पर कोई एक लेखनी सम्पूर्ण नहीं लिख सकती एक विराट विचार धारा वाले महान कवि, कुछ पंक्तियां मैं भी समर्पित करती हूँ।
कवि शिरोमणि,कवि श्रृंगार
ओज क्रांति विद्रोह भरा था
कलम तेज तलवार सम
सनाम धन्य वो दिनकर था
काव्य जगत में भरता दम
शिरमौर कविता का श्रृंगार।।
कवि शिरोमणि,कवि श्रृंगार
स्वतंत्रता की हूंकार भरी
राष्ट्र कवि सम्मान मिला
आम जन के वो सूर्य बना
हलधर को चाहा हक दिला
नीरस में भर के रस श्रृंगार।।
कवि शिरोमणि,कवि श्रृंगार।
कुरुक्षेत्र सा महा काव्य रचा
प्रणभंग, रश्मिरथी खण्डकाव्य
संग्रह कविता के धार दार
लेखक ,कवि, साहित्यकार,
उर्वशी काव्य नाटक श्रृंगार।।
कवि शिरोमणि,कवि श्रृंगार।
भावों की सुरसरि थे पावन
कलम के धनी अभिराम
वीर ,श्रृंगार रस चरम उत्कर्ष
लिखे अद्भुत से भाव अविराम
नमन तूझे है काव्य श्रृंगार।।
कवि शिरोमणि,कवि श्रृंगार।
कुसुम कोठारी'प्रज्ञा'।
आदरणीय संगीता जी ने फिर से दिनकर जी की सुंदर रचना पढ़वाई सादर साधुवाद।
सादर सस्नेह।
दिनकर जी को समर्पित बहुत सुंदर रचना है कुसुम जी ।
हटाएंआभार ।
कालजयी रचनाकार दिनकर जी को सादर नमन
जवाब देंहटाएंप्रभावी और अर्थपूर्ण भूमिका के लिए आपको साधुवाद
कमाल का सूत्र संयोजन
सभी रचनाकारों को बधाई
मुझे सम्मलित करने का आभार
सादर
आज तो रचना संकलन और सबके कथन का अद्भुत समन्वय ! अति आनंददायक है । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएं