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सोमवार, 5 सितंबर 2022

3507 / तू भृंगी , मैं कीड़ा !

 

नमस्कार !  आज जब यह पोस्ट बना रही हूँ तो मन में चल रहा है  कि कल शिक्षक दिवस है ......... सब ही इस दिवस से परिचित हैं ....... फिर भी संक्षेप में आप इस  दिवस  के बारे में इस पोस्ट पर जा कर पढ़ सकते हैं .... 



5 सितम्बर - शिक्षक दिवस---

शिक्षकों द्वारा किए गए श्रेष्ठ कार्यों का मूल्यांकन कर उन्हें सम्मानित करने का दिन है ‘शिक्षक दिवस‘। छात्र-छात्राओं के प्रति और अधिक उत्साह-उमंग से अध्यापन, शिक्षण और जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में संघर्ष के लिए उनके अंदर छिपी शक्तियों को जागृत करने का संकल्प-दिवस है ‘अध्यापक दिवस’। 


अध्यापक दिवस के बारे में तो उचित जानकारी मिल गयी ........ लेकिन क्या अज कल ऐसे शिष्य कहीं मिलते हैं जो अपने गुरुओं से स्वयं के उत्थान  के लिए प्रार्थना करें कि - हे !  गुरुवर  , मुझे ज्ञान की गंगा में   नहला दें ....... एक सुन्दर और भावपूर्ण याचना पढ़ें .....

तू भृंगी, मैं कीड़ा!


ईश-ज्योति दे दे जीवन में,
सोअहं भर दे तू मन में.
निरहंकार, चैतन्य बना दे,
शिशु अबोध मैं, तू अपना ले.

पिता, आ खेलें ज्ञान की क्रीड़ा,
गुरुजी, तू भृंगी, मैं कीड़ा!

इस सुन्दर कविता के बाद देखते हैं की शिक्षक के जीवन में चलता क्या रहता है ........ समाज शिक्षक को किस रूप में देखता है? ... क्या क्या समस्याएं हैं एक शिक्षक के जीवन में .......शिक्षक होने के नाते उसे जो कुछ करना पड़ता है क्या वो सही है ?   इसका जायज़ा  लेते हैं इस रचना में ..... 

शिक्षक


शिक्षा अगर व्यवसाय बन रहा,
गहराई में मथकर वजह तलाशिये।
अव्यवस्थित प्रणाली के कीचड़ से,
शिक्षक के आत्मसम्मान न बांचिये।


इसीलिए सलाह दी जा रही है कि शिक्षक को हमेशा सम्मान की दृष्टि से  देखें ....उनके प्रति आदर भाव रखें ..... और हमेशा उनका वंदन करें ....

गुरु का वंदन ( कुंडलियाँ )


शिक्षक शिक्षा दे भली, अंतर्मन खुल जाय ।
कौन कहे यह कुटुम है, जगत समूल समाय।।
जगत समूल समाय, पशू, पक्षी, नर ।
गोता खूब लगाय, गंग या बहे सरोवर ।।


आप माने या न माने  एक शिक्षक  खवैया ही होता है जो इस  भव  रुपी सागर से पार लगाता है .......  आपके जीवन की नाव की पतवार थाम आपको आगे बढ़ने में मदद करता है ..... इसी भाव की एक रचना पढ़िए ....


थाम चला पतवार हाथ में

नौका पार लगाने को

ज्यों दीपक में जलती बाती

तम को दूर भगाने को।


आज शिक्षक दिवस के उपलक्ष  में ये थीं शिक्षकों से सम्बंधित कुछ नयी  पुरानी रचनाएँ ..... अब आपकी नज़र कर रही हूँ कुछ  ताज़ातरीन रचनाएँ .........आइये  आनंद लेते हैं आज की रचनाओं का ..... 


वैसे देखा गया है कि बहुत बार घर और बहुत बार बाहर भी स्त्रियों को आज़ादी से बोलने नहीं दिया जाता , 

 अपने मन की बात वो नहीं कह पातीं ........ लेकिन भले ही कोई सुने या न सुने वो अपनी भड़ास निकाल तो लेती हैं ..... नहीं विश्वास ? ......... चलिए फिर पढ़िए इस रचना को ..... 

स्त्रियाँ   ........  अजीब हैं ......सब कुछ गा देती हैं ........

वो तो सही है लेकिन ये  ब्लॉगर भी  अजीब हैं जो  ताला  लगा लेते हैं ..... खैर आप लोग रचना तो पढ़ ही सकते हैं ....विवश हो कर ऐसे ब्लॉग छोड़ देने पड़ेंगे जहाँ से कोई पंक्ति न उठायी जा सके .....खैर आगे बढ़ते हैं .......इन बेकार की बातों में क्या अफ़सोस करना ....... सोचिये कि अगर वक़्त निकल जाए और आप किसी से बात करना  चाह  रहे हों और न कर पाएँ तो क्या  होगा ....

अफसोस


क्या पता कल फिर वक्त मिले  मिले

हो सकता है किसी को तुम्हारा इंतजार हो

हो सकता है तुमको किसी का इंतज़ार है

पर वक्त तो तुम्हारा इंतजार नहीं करता


अब आ गया होगा आप सबको भी समझ  कि किसी से बात करनी है , मिलना है तो आज ही मिलें .... कल वक़्त मिले या न मिले .......चलिए हम ले चलते हैं आपको एक गणपति की भक्त के पास ....... जिसने गणेश चतुर्थी पर गणेश जी को घर में स्थापित किया है ..... आप सोच रहे होंगे कि इसमें क्या विशेष है ....... तो आप स्वयं ही जा कर देखें  न ..... 

अतिथि


मालिक से नज़रें बचा कर,
कुछ डरे और कुछ सकुचा कर,
धरती का एक छोटा टुकड़ा,
मैं चुरा ले आयी हूँ।


जिसके अन्दर इतना आतिथ्य भाव हो  वो कभी भी हृदय ने निर्धन नहीं हो सकता ..... असल में निर्धन कोई भी नहीं .... बस हमारी सोच ही ऐसी होती है की हमें लगता है कि  गरीब हमेशा ही लालची या  स्वार्थी होता है ........इस बात को स्पष्ट कर रही है ये रचना .... 

भीख माँगती छोटी सी लड़की



वह छोटी सी लड़की उस दुकान पर
     हाथ फैलाए भीख माँगती....
आँखों में शर्मिंदगी,सकुचाहट लिए,
      चेहरे पर उदासी ओढे......
ललचाई नजर से हमउम्र बच्चों को
       सर से पैर तक निहारती.......
वह छोटी सी लड़की ,खिसियाती सी,
         सबसे भीख माँगती.......

अक्सर होता है कि जो हम मन में  सोचते हैं उसके उलट  ही देखने को मिल जाता है और हम   हतप्रभ  हो  कर रह जाते हैं ......और ऐसा ही अनुभव  ऊपर की रचना को पढ़ते हुए हुआ ....... कभी कभी लम्बी कवितायेँ वो नहीं कह पातीं जो  क्षणिकाएँ कह जाती हैं.......... एक नज़र इन क्षणिकाओं पर ..... 

“क्षणिकाएँ”


भावनाएँ सोते सी 

बहती बहती रूक जाती हैं 

यकबयक..

बड़े ताकतवर हैं

अनचीन्हे अवरोध के पुल ।


कोई कविता  ,  कोई लेख ,  लघु कथा या कहानी किसी को पसंद आती है तो वो अपने  ब्लॉग  पर साझा करता है ....... ऐसे ही एक कविता पढ़िए दुई बात ब्लॉग पर ......


गाँव को सब समझें - जाने, 

अब  मैं  ऐसे  दांव  चलूँगा! 

अब मन लगता नहीं शहर में, 

अब मैं यारों गाँव चलूँगा! 

मखमल जैसी हरी घास पर, 

नंगे -  नंगे  पाँव   चलूँगा!


गाँव के साथ ही बात प्रकृति की हो तो बात ही क्या ....क्यों कि जो थोड़ी बहुत हरियाली गाँव में मिलती है .... स्वच्छ  हवा और झूमते वृक्ष  दिखाई देते हैं वो शहर में कहाँ ? ..... तो आइये पढ़ते हैं एक ऐसी ही खूबसूरत रचना .....

प्रकृति के रूप


आसमान अब झुका धरा भरी उमंग से।

लो उठी अहा लहर मचल रही  तरंग से।।

शुचि रजत बिछा हुआ यहाँ वहाँ सभी दिशा।

चाँदनी लगे टहल-टहल रही  समंग से।।

प्रकृति के रूप के साथ ही आज  इस प्रस्तुति को केवल काव्य रूप देते हुए समाप्त कर रही हूँ ........ अपवाद है कविता रावत जी का लेख ....... तो  आप  सब काव्यमय रहिये .... फिर मिलते हैं विभिन्न सूत्रों के साथ ......... तब तक के लिए विदा ......

नमस्कार .

संगीता स्वरुप . 




31 टिप्‍पणियां:

  1. शिक्षक दिवस पर शुभकामनाएं
    अप्रतिम प्रस्तुति
    सादर प्रणाम

    जवाब देंहटाएं
  2. अत्यंत सुन्दर सूत्रों से सजा अप्रतिम संकलन । प्रत्येक रचना से पूर्व आपकी सारगर्भित टिप्पणी संकलन की रोचकता को द्विगुणित कर देती हैं । शिक्षक दिवस की शुभकामनाओं सहित हार्दिक आभार । सादर सस्नेह वन्दे आ. दीदी ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रस्तुति की सराहना हेतु हार्दिक आभार । ये दिन हमारे लिए त्योहार की ही तरह होता था ।

      हटाएं
  3. शिक्षक दिवस की शुभकामनाएँ! कबीर की दार्शनिक परम्परा में भृंगी और कीड़े की उपमा गुरु और शिष्य से की गयी है।भृंगी किसी उड़ते कीड़े को पकड़कर उड़ता रहता है। उसकी इस पकड़ के दौरान दोनों के पारस्परिक स्पर्श से कुछ ऐसे रासायनिक परिवर्तन होते हैं जिससे पकड़ा गया कीड़ा भी भृंगी में परिवर्तित होने लगता है। जब कीड़ा पूरी तरह से भृंगी में बदल जाता है तो भृंगी इस नए भृंगी को छोड़ देता है जो इसी प्रक्रिया के निर्वाह के पथ पर आगे बढ़ जाता है।ठीक वैसे ही, गुरु अपने पात्र शिष्य को अपने ज्ञान की पकड़ में तब तक जकड़े रहता है जब तक वह शिष्य भी पूरी तरह गुरु ना बन जाए। भारत की सनातन आर्ष गुरु-शिष्य परम्परा भी कुछ ऐसी ही है। आप सबको इस महान परम्परा की स्मृति के इस शुभ दिवस की शुभकामनाएँ और इस अवसर पर आदरणीय संगीता जी की इस अप्रतिम प्रस्तुति का विशेष आभार!!!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. अत्यंत सहज,सुंदर और हृदयग्राही विश्लेषण।
      सादर।

      हटाएं
    2. विश्व मोहन जी ,
      आपने भृंगी के विषय में विस्तृत जानकारी दी और इससे कविता के मर्म तक पहुँचने में सबको बहुत मदद मिली होगी । प्रस्तुति की सराहना हेतु आभार ।
      शिक्षक दिवस की शुभकामनाएँ ।

      हटाएं
  4. शिक्षक दिवस के साथ ही सामयिक रचनाओं से सजी सार्थक सामयिक हलचल प्रस्तुति में मेरी ब्लॉग पोस्ट सम्मिलित करने हेतु आभार!

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर हलचल प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत बहुत शुक्रिया ज्योति , आपकी रेसिपी की पोस्ट ज़बरदस्त होती हैं ।😊😊

      हटाएं
  6. प्रिय दीदी,
    शिक्षक दिवस को समर्पित एक उत्कृष्ट प्रस्तुति!

    एक अनघढ शिष्य को उत्तम व्यक्तिव में ढालने वाले शिल्पकार शिक्षक की महिमा को शब्दों में सहजता से कहना बहुत कठिन काम है। भले आज का शिक्षक भौतिकवाद की चकाचौंध में खोया है फिर भी समर्पित गुरु और लगनशील शिष्यों की कमी नहीं है। यूँ गुरूजनों के लिये सम्मान प्रदर्शित करने के लिये वर्ष में मात्र एक दिन पर्याप्त नहीं है,हर दिन उनके वंदन का दिन है।चाहे दुनिया कितनी क्यों न बदल जाये, हमारे स्नेही और आदर्श शिक्षक सदैव हमारी स्मृतियों में रहते हैं और अपने नैतिक संस्कारों से हमेशा हमारा मार्गदर्शन करते हैं । शिक्षक दिवस यूँ अपने आप में विशेष है पर भारत के अनमोल रत्न ,दार्शनिक और शिक्षा पद्धति को नई दिशाओं से जोड़ने वाले डाॅ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन् का पुण्य स्मरण इस दिन को और भी गरिमा प्रदान करता है।डाॅ. राधाकृष्णन् जी की पुण्य स्मृति के साथ समस्त गुरु सत्ता को सादर नमन ।सभी रचनाओं को पढ़ा बहुत अच्छा लगा। सभी रचनाएं अपने आप में उत्तम हैं पर 'स्त्री' और गाँव चलूँगा ' विशेष लगीं।सभी रचनाकारों को सादर नमन।आदरनीय विश्वमोहन जी की सुन्दर प्रतिक्रिया प्रस्तुति में चार चाँद लगा रही हैं।आपका हार्दिक आभार इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए।सभी को शिक्षक दिवस की बधाई और शुभकामनाएं।🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय रेणु ,
      प्रस्तुति के साथ तुम्हारी ये विशेष टिप्पणी प्रस्तुति को संपूर्णता प्रदान कर रही है ।
      रचनाएँ तुमको पसंद आती हैं यह जान कर संतुष्टि हुई । हार्दिक आभार ।

      हटाएं
  7. वन्दन

    शिक्षक दिवस के अवसर पर शुभकामनाएँ

    जवाब देंहटाएं
  8. सर्वप्रथम मेरी रचना को शामिल कर के आपने मेरा मान बढ़ाया है।बहुत धन्यवाद।
    शिक्षक दिवस पर यह विशेष प्रस्तुति सराहनीय है...एक से एक रचनाएँ!
    शिक्षक दिवस की शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  9. बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी रचना को चयनित करने के लिए सहृदय आभार आदरणीया सादर।आपको शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  10. गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः ।
    गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥

    अर्थ :
    गुरु ब्रह्मा है, गुरु विष्णु है, गुरु हीं शिव है; गुरु हीं साक्षात् परब्रह्म है; उन सद्गुरु को प्रणाम है।
    आधुनिक शिक्षा प्रणाली में भले ही इस श्लोक की महत्ता
    गौण हो गयी हो किंतु इस श्लोक में निहित अर्थ
    किसी भी छात्र के जीवन में सदैव महत्वपूर्ण हैं।
    सर्वप्रथम सभी शिक्षकों का हृदय से सादर वंदन।

    जी दी,
    समाज को शिक्षित करने का महत्वपूर्ण दायित्व निभाने वाले शिक्षकों को उचित सम्मान के सिवा और कोई उपहार नहीं चाहिए होता है।
    सभी रचनाएँ विशेष लगी दी विशेषतः हर रचना के साथ आपकी अपनत्व भरी टिप्पणियों ने ध्यानाकर्षित किया हमेशा की तरह।
    स्त्री,प्रकृति, गाँव,अतिथि भीख माँगती लड़की, अफ़सोस,क्षणिकाएं जैसी भावनाओं और यथार्थ के मिश्रण से गूँथे हृदयग्राही शब्द -विन्यास से सुसज्जित विविधापूर्ण विषयों पर आधारित सभी रचनाएँ बहुत अच्छी लगी।
    आपके द्वारा संकलित अगले सोमवारीय विशेषांक की प्रतीक्षा में-
    सप्रेम प्रणाम दी
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय श्वेता ,
      इस श्लोक की महत्ता तो कभी भी गौण नहीं हो सकती , भले ही आज के शिक्षक और विद्यार्थी ये संबंध स्थापित न कर पाते हैं ।
      मेरा निजी अनुभव है कि शिक्षक के ऊपर ही ज्यादा निर्भर करता है कि वो बच्चों के मन में अपने प्रति आदर की भावना का संचार कर पाते हैं या नहीं ।
      प्रस्तुति की सभी रचनाओं तक पहुँच प्रस्तुति को सार्थक बनाने के लिए आभार ।।

      हटाएं
  11. शिक्षक दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं।
    आज का विशेष अंक आकर्षक पठनीय सुंदर है।
    सभी रचनाएं बहुत सुंदर और गहन भाव लिए।
    शिक्षक दिवस के साथ दूसरी सभी रचनाएं भी बहुत आकर्षक।
    सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
    मेरी रचना को इस गुलदस्ते में सजाने के लिए हृदय से आभार।
    सादर सस्नेह।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. कुसुम जी ,
      गुलदस्ते के फूल भी आपके और गुलदस्ता भी । सराहने के लिए आभार ।

      हटाएं
    2. आपकी सहज सरस टिप्पणियाँ हर पोस्ट को चार चांद लगा देती है।
      संगीता जी।
      सादर सस्नेह।

      हटाएं
  12. बहुत खूबसूरत रचना संकलन
    शिक्षक दिवस की शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  13. शिक्षक दिवस पर अत्यंत सुन्दर सूत्रों से सजा आज का संकलन । प्रत्येक रचना से पूर्व आपकी सारगर्भित टिप्पणी संकलन की रोचकता को बढ़ा देती है। मेरी रचना शामिल करने का बहुत आभार । सभी को शिक्षक दिवस की शुभकामनाएँ।कुछ लिंक पढ़े पर कुछ बाकी हैं । बाकी कल पढ़ कर बाकी राय देते हैं🙏😊

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. शिक्षक दिवस की आपको भी शुभकामनाएँ । सराहना हेतु हार्दिक धन्यवाद ।

      हटाएं
  14. उत्कृष्ट लिंकों से सजी शानदार प्रस्तुति
    प्रत्येक लिंक पर आपकी सारगर्भित समीक्षा लिंक पर जाने को लालायित करती है और आपकी ये श्रमसाध्यता प्रस्तुति को और भी विशेष बनाती है।
    शिक्षक दिवस पर सामयिक रचनाओं से शुरू कर अद्भुत तारतम्यता के साथ विभिन्न विषयों स्थान दे कर वाकई गुलदस्ता सा सजाया है आपने।
    मेरी रचना को भी यहाँ स्थान देने हेतु तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार ।
    शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏🙏🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय सुधा ,
      आपको भी शुभकामनाएँ । प्रस्तुति पसंद करने के लिए हृदयतल से आभार ।
      वैसे हमारा काम ही है कि आपको किस तरह लिंक तक पहुँचाया जाय । 😄

      हटाएं

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