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शनिवार, 10 सितंबर 2022

3512... श्राद्धपक्ष


हाज़िर हूँ...! पुनः 
उपस्थिति दर्ज हो...

श्राद्धपक्ष से श्रद्धा जीवित रहती है। श्रद्धा को प्रकट करने का जो प्रदर्शन होता है वह श्राद्ध कहा जाता है। जीवित पितरों-गुरुजनों के लिए श्रद्धा प्रकट करने-श्रद्धा करने के लिए उनकी अनेक प्रकार से सेवा, पूजा तथा संतुष्टि की जा सकती है। परन्तु स्वर्गीय पितरों के लिए श्रद्धा प्रकट करने का अपनी कृतज्ञता को प्रकट करने का कोई निमित्त निर्माण करना पड़ता है। यह निर्मित श्राद्ध है।

श्राद्धपक्ष में दें सभी, पुरखों को सम्मान।

वंदन पितरों का करें, उनका धर हम ध्यान।।

पितर लोक में जो बसे, कर असीम उपकार।

बन कृतज्ञ उनका सदा, प्रकट करें आभार।।

पितृपक्ष सारे गाँव को निमंत्रण दे दिया। ऐसा गाँव में पहली बार हो रहा था। बहुत लोग आये सब ने जी भर के खाया और उसके बाद पूरे गाँव में इन दोनों भाइयों की वाह वाही हुई। अब इन दोनों भाइयों की गाँव में और भी इज्जत बढ़ चुकी थी। लोग इनसे बड़े अच्छे से पेश आने लगे। ये सब देख के कुछ दुसरे लोगों ने भी ऐसा करना शुरू कर दिया।

कविता इलाहाबाद से दिल्ली के सफ़र के शुरू में एक आदमी ने सीट को एक्सचेंज करने का प्रस्ताव रखा फिर उसने कहा कि और क्या एक्सचेंज किया जा सकता है मैंने कहा कि मैं किसी को अपना कोहराम नहीं देने वाला जाते-जाते वह कह गया कि झूठ पर फ़िल्म बनाने के बहुत पैसे मिलते हैंमैंने ग़ायब होने के पहले कहा कि जो संरक्षण संविधान में कवि को मिलना चाहिए

कविता काफी दिनों से काम करते कवियों की रचनाओं को उनकी एकांतिकता में नहीं किसी अवधारणात्मक विस्तार में भी देखना चाहिए. लेकिन जनाब, मैं किसी रियायत की माँग नहीं कर रहा. कुछ सूत्र दे रहा हूँ और ले भी रहा हूँ जो यहाँ नहीं भी तो कहीं और काम  आ सकते हैं. यह तो तय है कि यह प्योर पोएट्री नहीं है. शुद्ध कविता का परमौदात्य यहाँ नहीं है. आह्वान में काँपती इबारत नहीं है तो नहीं है. यह हमारे समाज के निरंतर गैरजिम्मेदार होते जाने का लगभग एंटी पोएट्री आख्यान है जिसे जानबूझकर शैली के चलताऊ  ऊबड़खाबड़पन के सहारे बयां करने की कोशिश की गई.

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पुनः भेंट होगी...
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5 टिप्‍पणियां:

  1. सदा की तरह शानदार प्रस्तुति
    आभार..
    सादर नमन

    जवाब देंहटाएं
  2. श्राद्ध के विषय में विस्तृत जानकारी मिली । बढ़िया सूत्र । आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  3. श्राद्ध पक्ष और कविता पर बहुत ही भावपूर्ण प्रस्तुति प्रिय दीदी।सनातन संस्कृति के मूल्यों का निर्वहन का बहुत ही हृदयस्पर्शी पक्ष है पितृ पखवाडा।जिनके अंश रूप में आज हम ढ़ल कर संसार में अपना यथा सम्भव योगदान दे रहे ये उनके अनमोल आशीष का ही फल है।समस्त पितृ सत्ता को सादर नमन।उनका आशीर्वाद संसार के कल्याण हेतु सदा रहे यही कामना है।आज के अंक से बेशुमार जानकारियाँ मिली।सभी को सादर नमन और4आभार 🙏🌺🌺

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