शीर्षक पंक्ति:डॉ.(सुश्री) शरद सिंह जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक में पाँच रचनाओं के लिंक्स
व अंश लेकर हाज़िर हूँ।
वो जानते हैं झाँकोगी तुम
खुली खिड़की से
छुओगी नर्म हथेली से वो रेशमी
एहसास ...
ठीक उसी वक़्त मैं भी हो
जाऊँगा धुँवा-धुँवा
घुल जाऊँगा बादलों की नर्म
छुवन में
बंट जाता है जब मन
तितर-बितर हो गये मेघों की तरह
कुंद हो जाती है धार मेधा की
लेंस से निकली किरणों की तरह
एकीभूत हुई चेतना स्रोत है सृजन का
गोमुख से ही झरा करती है गंगा
कविता | तुमने तो | डॉ (सुश्री) शरद सिंह
पर तुमने तो
बादल ही सुखा दिए
मेरे आसमान के!
प्रौढ़ावस्था में सावधान-सतीश सक्सेना
दरबारी कलम लिखेगी जब भी लिखेगी,
हिंद को मानसिक गुलाम मिलता रहेगा।
रोज मरने की आदत पुरस्कृत होती रही,
बाद बेगुनाही के इल्ज़ाम मिलता रहेगा।
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फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
जवाब देंहटाएंशानदार चयन
सादर
सुप्रभात! बेहतरीन रचनाओं का सुंदर संयोजन, आभार आज की हलचल में मुझे भी शामिल करने हेतु!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम
जवाब देंहटाएंसभी लिंक्स बेहतरीन । जो पढ़ने से छुट जाता है वो यहाँ मिल जाता है । आभार ।।
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति!!
जवाब देंहटाएंआभार आपका रविंद्र जी
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