।।प्रातः वंदन ।।
'रात-रात भर जब आशा का दीप मचलता है,
तम से क्या घबराना सूरज रोज़ निकलता है ।
कोई बादल कब तक रवि-रथ को भरमाएगा?
ज्योति-कलश तो निश्चित हीआँगन में आएगा!"
शिशुपाल सिंह 'निर्धन'
सृजन और विनाश का क्रम तो चलता ही रहता है.. इसी क्रम को आगे बढाते हुए नज़र डालें..✍️
विक्रम बेताल टॉक
विक्रम ने एक बार फिर पेड़ पर लटका शव उतारा और कंधे पर लटका कर चल दिया। शव में स्थित बेताल ने कहा-“हे विक्रम तेरा हठ प्रशंसनीय है। रास्ता लंबा है सो तुझे अधिक थकान न हो इसलिये एक कथा सुनाता हूँ। कथा के आखिर में मैं तुझसे सवाल पूछूंगा, अगर तूने जानते
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साहेब का चीता
कलयुग
दो मुस्कुराते नैन
नैन में जलधार देखा ।
लाल-नीला,श्वेत- श्यामल
सज रहा संसार देखा ॥
नैन में बहता समंदर
काफी अधिक सुन्दर अंक
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
बेहतरीन भावों की अभिव्यक्ति सुन्दर अंक
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर!
जवाब देंहटाएंसुंदर चयन । आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सराहनीय और पठनीय अंक। मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार और अभिनंदन पम्मी जी । सादर नमन और वंदन ।
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