शुक्रवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
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हिंदी दिवस पर पिछले कुछ दिनों से निरंतर हमसबने हिंदी प्रेम जीभर प्रदर्शित किया है। हिंदी साहित्य के प्रति सभी लेखकों ने अपनी जिम्मेदारी समझते हुये अपने स्तर पर प्रयास किया, अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त कर।
मुझे लगता है
वर्तमान समय में हिंदी अशुद्धियों और संवाद में बढ़ते 'भदेसपन' से जूझ रही है।
साधारण वाक्यों में मात्राओं की त्रुटियाँ ,लिंग और वचन की गलतियों को सहज रूप से स्वीकार किया जाना हिंदी के भविष्य के लिए घातक है। हम सभी की जिम्मेदारी है गलतियों को इंगित करें।
दूसरी बड़ी समस्या है हिंदी फिल्म के संवाद हो, गीत हो या किसी हिंदी राष्ट्रीय समाचार चैनल का खुला बहस मंच सभी जगह धड़ल्ले से अपशब्दों के प्रयोग ने हिंदी भाषा का चेहरा बिगाड़कर रख दिया है।
साहित्य के पुरोधा तथाकथित झंडाबरदार जब किसी व्यक्ति ,घटना या रचना को न्यायाधीश बनकर उसका विश्लेषण करते हैं तो खूब जमकर गालियों के प्रयोग करते है। लोग सहज रुप से अभिव्यक्ति की आज़ादी या सच कहने वाला प्रतिनिधि बताकर किसी के लिए भी कुछ भी अमर्यादित अपशब्द लिखते और बोलते नज़र आते है यह कितना उचित है इसपर जरूर विचार होना चाहिए।
चलिए पढ़ते है हिंदी पर कुछ समृद्ध वैचारिकी अभिव्यक्ति-
हिंदी साहित्य के उद्भव के मुख्य बिंदुओं को जानने,समझने में अगर रूचि है तो यह अवश्य पढ़े-
साथ दूध मे हिन्दी भी माँ ने मिसरी सी घोली .
संस्कृति की देहरी पर जैसे सजी हुई रंगोली
सरल समर्थ व्यकरण सम्मत नदिया सी बहती है
अन्तर में रच बस जाएं उस बोली में कहती है .
धरा हमारी हिन्दी और गगन हिन्दी का है .
एक दिवस क्या हम सबका हर दिन हिन्दी का है
गंगा सी पावनी है हिन्दी,
सागर सी गुणग्राही ।
हर भाषा बोली के शब्दों को ,
खुद में है समाई ।
सारी भगिनी भाषाओं को,
लगा गले दुलराती।
तत्सम, तत्भव, देशी , विदेशी,
सबको है अपनाती।
भावों को जुटा हिंदी अधरों पर आई
अथाह गहराई हृदय की अकुलाहट
हवा में तैरते मछलियों से शब्द
एक-एक शब्द में प्राण
टहलता जीवन, जीवन जो
स्वयं कहानी कहता है अपनी
बुरा तो लगता है पर हमारी एक जुटता और क्षमता इतनी ही है कि हम इन 70 - 72 वर्षों में हिंदी को सही ढंग से राजभाषा भी नहीं बना सके। राष्ट्रभाषा की क्या कहें। आज हिंदी भाषाई राज्यों में भी सरकारी कामकाज पूरी तरह से हिंदी में नहीं होता है, फिर दक्षिणी राज्यों की क्या कहें। ऐसी तुलना से भाषाओं में आपसी वैमनस्य ही होगा । किसी की भलाई नहीं होने वाली। हर माँ की तरह हमें हर भाषा का सम्मान करना होगा।
और चलते-चलते विषय से कुछ हटकर
पर बेहद जरूरी संस्मरण
अब तक मुझे उन पर दया आने लगी लेकिन तब भी मुझे सच में समझ नहीं आया कि उसके पैसे कैसे वापस करूँ।
" ऐसा करिये कि आप इंदौर आयें तो बता दें मैं कैश में आपके पैसे वापस कर दूँगी "
अब उसने पैंतरा बदला" मैडम हम बैंगलोर में हैं वहाँ से आने में ही हमें तीन हजार रुपये लग जाएंगे।"
"तो आपको ध्यान रखना चाहिए था। मैंने तो आपको कहा नहीं था पैसे डालने के लिए" बार बार एक ही बात दोहराते मेरा धैर्य जवाब देने लगा।
बहुत सुन्दर चयल
जवाब देंहटाएंसही कहा हिन्दी एक दिन की नहीं
आभार
सादर
सामयिक चिन्तन
जवाब देंहटाएंपरिवेश और परवरिश से जो मिला वो बाँटते हैं..
गालियों के प्रयोग करने वाले को साहित्यकार नहीं माना जा सकता...
उम्दा संकलन
सुंदर प्रस्तुति..।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंहिंदी भाषा पर। सार्थक चिंतन करती भूमिका ।
जवाब देंहटाएंवर्तनी की अशुद्धता बहुत बार खलती है । आज कल टाइपिंग की गलती मान लिया जाता है ।
इस अंतर्जाल पर गलतियों को इंगित करते मैंने कम से कम अभी तक नहीं देखा । तो कैसे सुधार होगा ,नहीं समझ पाती । शायद सबके सामने मैं ही अपराधी बन जाऊँ , क्यों कि मैं गलतियाँ बता आती हूँ ।
आज इस मंच के माध्यम से सभी से कहना चाहती हूँ कि मेरा केवल यही प्रयास होता है कि भाषा की शुद्धता बनी रहे ।
हिंदी साहित्य का इतिहास सार्थक लेख था , लेकिन वहाँ टिप्पणी करने के लिए व्यवस्था नहीं लगी ।
सभी सूत्र एक से बढ़ कर एक हैं ।
रोचक प्रस्तुति । आभार ।
पूर्णतः सहमति। यदा-कदा त्रुटि हो तो क्षम्य है किन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि आँख बंद कर बस टाइप करना ही ब्लॉगिंग हो। पोस्ट करने से पहले प्रिव्यू का भी विकल्प है तो एक बार देख लेना चाहिए सबों को। शब्दों की शुद्धता के लिए शब्द कोश की सहायता लेने में क्या समस्या है। अशुद्धियाँ देख कर पढ़ने की इच्छा ही क्षीण हो जाती है। सही कहा कि टोकने की भी इच्छा नहीं होती है। कहीं अच्छा न लगे तो....
हटाएंअभी चर्चा मंच पर एक प्रस्तुति कौशल ब्लॉग को देखा। त्रुटि वश ही दो बार लिखा गया होगा। उस पर टिप्पणियाँ भी की गई है किन्तु किसी ने कुछ नहीं कहा। पोस्ट करने के बाद भी अपनी प्रस्तुति को अवश्य देखना चाहिए। इसमें अन्यथा लेने वाली कोई बात नहीं होनी चाहिए।
हटाएंप्रिय दी एवं अमृता जी,
हटाएंसहमत हैं हम भी अक्षरशः।
बहुत बार लोग गलतियाँ इंगित करने पर अपने सम्मान पर ले लेते है जबकि उदार हृदय से अपनी गलतियों को स्वीकार कर उसे सुधारना और सीखना ही हिंदी या स्वयं के उर्ध्व विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है।
एक निवेदन है कृपया मेरी त्रुटियों पर मुझे अवश्य बताये मुझे बेहद खुशी होगी।
सस्नेह
सादर।
बहुत ही सुंदर भूमिका के साथ सराहनीय संकलन श्वेता दी। इस प्रस्तुति का हिस्सा बन अत्यंत हर्ष हुआ। अनेकानेक आभार।
जवाब देंहटाएंहिंदी साहित्य का उद्धगम और विकास दुबारा पढ़कर अच्छा लगा। काफ़ी बार पढ़ा पहले प्रतियोगिता हेतु फिर अपने ही कुछ प्रश्नों हेतु।
परंतु बार -बार यही लगता है जैसे कहीं कुछ छूट रहा है। जिज्ञासा आज भी हृदय में डोलती है।
बहुत ही सुंदर रचनाओं को चयन किया आपने।
बहुत सारा स्नेह
प्रभावक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंइस बार ऐसा आभास हुआ कि इस मंच पर चयनित व प्रकाशित होने लेख पर विषयात्मक गूढ चर्चा संभव हुई। इस चर्चा ने लेख को सार्थक बना दिया। इस लिए मैं इस मंच का और आज की सूत्रधारिणी श्रीमती श्वेता जी सिंहा का तहे दिल से आभार व्यक्त करता हूःँ।
जवाब देंहटाएंसादर आभार और साधुवाद
उत्कृष्ट लिंको से सजी लाजवाब प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने हेतु दिल से धन्यवाद प्रिय श्वेता जी !
सभी रचनाकारों को बधाई जवं शुभकामनाएं ।
बेहद खूबसूरत और सार्थक अंक
जवाब देंहटाएंसुजाता