नमस्कार ! गणपति विसर्जन करके आज हम पितृ पक्ष में डूबे हुए हैं ....... बहुत से आधुनिक सोच वाले कहते हैं कि ये सब बेकार की बात है .....हम इस विवाद में न पड़ कर बस इतना ही कहेंगे कि ये आपकी श्रद्धा की बात है ........ कल विभा जी की प्रस्तुति में एक लेख पढ़ा था उससे जाना कि ये श्राद्ध श्रद्धा का ही रूप है .... और पितरों के तर्पण के लिए सबसे आसान उपाय जलांजलि है .......चलिए इस विषय पर आधिक कुछ न कहते हुए बस अपने पितरों को नमन करें .....
सादर सदैव पूजनीय होते
भावनाओं के अनुकूल ही
निर्माण व्यक्तित्व का होता है
ना हो उपेक्षा ना हो अपमान
सहज स्वभाव जिनका होता है.
जहाँ तक मैंने जीवन चक्र के बारे में पढ़ा है तो यही जाना -समझा है कि हमारे दिन - प्रतिदिन के कर्म ही हमारा अगला जन्म निर्धारित करते हैं ........... इसी लिए अपने आचरण पर ध्यान देना चाहिए .... लेकिन हम सब ही इस संसार के माया मोह में पड़े रह जाते हैं ....... फिर भी यदि आप कुछ सीख लेना चाहें तो इस रचना को पढ़ें ....
इतिवृत्त .....
जो ॠण था- चुका दिया
जो अऋण था- लुटा दिया
वो आक्रोश था- जला दिया
वो विद्रोह था- लहका दिया
वो विवशता थी- मुरझा दिया
वो सुलह थी- सुलझा दिया |
कितना ही कुछ अच्छा पढ़ लें ...... समझ भी लें ........ लेकिन जब तक अपने कृत्यों में नहीं ढालते तब तक सब बेकार ..... यही सब देख कर एक असाधारण शिक्षक भी तौबा कर कह उठता है कि भगवान् अब तो तुम ही समझा जाओ ......... पढ़िए ये लेख .....
गणपति बप्पा अगले बरस आकर , इन्हें समझाना .
लगभग दस-ग्यारह दिन की धूमधाम के बाद आज शिव पार्वती के लाड़ले गणपति के उत्सव का समापन हो गया है ..गलियाँ सूनी और शान्त होगई हैं . पर्व और त्यौहार हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग हैं . आस्था व भक्तिभाव के साथ ऐसे आयोजन जीवन की एकरसता को मिटाकर नया उत्साह व ऊर्जा का संचार करते हैं .
हो सकता है भक्त की फ़रियाद सुन कर गणपति अगले वर्ष कुछ समझा पाएँ ......खैर , हो गयी बहुत ज्ञान - ध्यान की बातें ....... आज जब ये पोस्ट बना रही हूँ तब रविवार है और आज सुन्दर , सुहानी सुबह पुकार रही है ......
आज करो कुछ दिल की बातें
गहराई से ध्यान लगाओ,
लंबी तानो सिट आउट में
या फिर कोई खेल जमाओ !
इतवार की सुबह सुहानी
बुला रही है घर आ जाओ !
प्यारी सुबह का एक प्यारा सा आह्वान ......... लेकिन क्या सच ही आज शहरों में ऐसी सुबह मिलती है ? न सुबह मिलती है और न ही खुशियाँ ... दौड़ भाग की सी ज़िन्दगी ........ न खाने का होश और न रिश्तों में कहीं तरावट ...... सुख सुविधाओं से भर पूर घर लेकिन उनको भोगने का समय नहीं ........ एक बानगी देखिये ....
अकेलापन !!!
पर जब मैंने माँगा
उनसे एक पल अपना
जिस में बुने ख़्वाबों को जी सकूँ मैं
तो जैसे सब कहीं थम के रुक गया ..
और ज़िन्दगी का एक और रंग ........ कभी हुआ करता था ........ उम्र के साथ कितना कुछ खो देते हैं ....... लेकिन फिर भी मन में तो यादें जुडी रहती हैं ......चलिए हम भी जोड़ते हैं तार अपनी यादों के अपने अपने मायके से .....
मायका
मायके की देहरी पर गाड़ी रुकते ही पैर कब रुकते
गेट पर लटकती छोटी बहन, भाई को देख
दौड़ पड़ती…भींच लेती छाती में जोर से
होंठ हँसते बेशक पर आँखें बरसतीं
धूप और बारिशें एक साथ सजतीं…!
धूप और बारिशें तो एक साथ सजा लीं ........ लेकिन आगे पढ़िए कि ये हजारों फूल क्यों एक साथ खिल रहे हैं ......
कोई भी
मूड,मौसम हो
मग़र हम साथ चलते थे.
यही वो रास्ते
जिन पर
हज़ारों फूल खिलते थे.
यूँ ही सदा फूल खिलते रहें .......... और हम यूँ ही साल दर साल राजभाषा दिवस मनाते रहें .......... और इंतज़ार करते रहें कि कब हम इसे राष्ट्रभाषा कह पायेंगे .......... अंतिम पायदान पर इसी विषय पर आधारित एक प्रस्तुति ....... दो दिन बाद तो ज्यादातर लोग हिंदी की सेवा करेंगे ही ........
फ़ुरसत में … हिन्दी दिवस
फ़ुरसत में … हिन्दी दिवस के अवसर पर लिखा हुआ बहुत कुछ पढने, देखने और सुनने को मिला। कुछ अखबारों के शीर्षक देखिए
“हिंदी अपने घर में प्रवासिनी”, “हाशिए पर हिंदी”, “हिदी को राष्ट्रभाषा बनाने में राजभाषा विभाग का टालू रवैया”, “हिंदी के प्रति कब खत्म होगी लापरवाही”, आदि, आदि।
इस दिन जब ये सब पढता हूं तो एक शे’र बरबस आ जाता है ज़ुबान पर
कोई हद ही नहीं शायद मुहब्बत के फसाने की
सुनाता जा रहा है जिसको जितना याद आता है।
और मुझे गोपाल सिंह नेपाली जी की कविता याद आ रही है ......... हिंदी है भारत की बोली .....
आप भी सुनें ...
इसीके साथ आज की हलचल को विराम देती हूँ ....... फिर मिलते हैं कुछ नए सूत्रों को लेकर .......
नमस्कार !
संगीता स्वरुप .
विभा दीदी ने सही कहा
जवाब देंहटाएंअपनी -अपनी श्रद्धा की बात है
जलाञ्जली ही पर्याप्त है
श्रेष्ठ प्रस्तुति
सादर नमन
आभार
हटाएंएक से बढ़कर एक विशेष लिंक्स के साथ अपनी कलम को पाना मेरा सौभाग्य है और आपकी इनायतें हैं ...
जवाब देंहटाएंरश्मि जी ,
हटाएंआपकी कलम से लिखा कहीं साझा करती हूँ तो आंतरिक खुशी होती है कि कुछ सार्थक लेखन लोगों तक पहुँचा पा रही हूँ । आभार
बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार कविता जी ।
हटाएं"ये न पूछे मिला क्या है हमको
जवाब देंहटाएंहम ये पूछें किया क्या है अर्पण"
जब अर्पण स्वयं ही प्रमाण बन जाता है तो अतिरिक्त कथन की कोई आवश्यकता नहीं होती है। बस- साधु गुन गाहा। हृदयग्राही संकलन एवं सार्थक प्रस्तुति के लिए हार्दिक आभार एवं शुभकामनाएँ।
यहाँ तो तेरा तुझको अर्पण , क्या लागे मेरा .... चरितार्थ हो रहा है .....
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति की सराहना हेतु हार्दिक धन्यवाद ।।
उपरोक्त पंक्तियाँ फुरसत में.... से उद्धृत किया है। आदरणीय मनोज जी को पढ़कर न जाने कितनी भूली-बिसरी बातें उभर आई है। जैसे बस कल की ही बातें हों। यदि भाव-समय को रोक लिया जाए तो वह कभी भी नहीं बीतता है। आपने कुछ वैसा ही किया है।
हटाएंये पंक्तियाँ फुरसत से ली थीं ये पता था । मैंने तुम्हारी बात को अपनी प्रस्तुति से जोड़ दिया था ।
हटाएंबाकी तो जब भी ब्लॉग की पुरानी पोस्ट्स पढ़ती हूँ ऐसा ही भाव आता है ।
बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया । प्रतिक्रिया लिखने के बाद नाम भी इंगित कर दिया जाता तो बेहतर होता । 🙏🙏
हटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति सभी रचनाएं पढ़ी सादर
जवाब देंहटाएंसराहना हेतु आभार ।
हटाएंसभी लिंक बहुत सुंदर मनभावन और दिल के कुछ तो बहुत करीब लगे। अच्छा लगता है यूं ब्लॉग के लिंक्स को पढ़ना, समझना ,संगीता जी आपका धन्यवाद । यह सब आपकी ही मेहनत है।
जवाब देंहटाएंइस प्रस्तुति के कारण ही सही ,आपको ब्लॉग पढने में पुनः आनंद आ रहा है ये मेरे लिए बहुत संतुष्टि की बात है । सराहना हेतु आभार ।
हटाएंवाह नेपाली जी की कविता सुनकर आनन्द आगया . सभी चयनित ब्लाग पोस्टें पढ़ी . सुन्दर चयन है . मेरी रचना को भी आपने चुना है आभार संगीता जी .
जवाब देंहटाएंगिरिजा जी ,
हटाएंआपकी उपस्थिति ही प्रस्तुति में प्राण फूँक देती है । नेपाली जी की ये कविता मुझे प्रिय रही है । पसंद करने के लिए आभार ।
जी दी,
जवाब देंहटाएंहिंदू परंपरा और संस्कृति के गूढ़ रहस्यों का अध्ययन और मनन कर उसमें निहित मूल तत्वों को ग्रहण कर अपने संस्कारों को सुदृढ़ और स्वस्थ बनाने का आधुनिक पीढ़ी के पास समय है और न रूचि। किसी भी व्रत,त्योहार का गूढ़ार्थ समझे बिना सबसे आसान है विरोध करना,अपनी ही जड़ों को कुतरना।
आज की रचनाओं के विषय में क्या कहें दी हर
रचना विशेष है और खास बात ये है कि एक रचना दूसरे से बिल्कुल भिन्न है किंतु कितनी सुगढ़ता से आपने सबको धागे में पिरोकर खूबसूरत माला बना दिया है।
गणपति बप्पा अगले बरस आकर इन्हें समझाना
आदरणीय सदैव पूजनीय होते हैं
रविवार की सुबह सुहानी
हज़ारों फूल खिलते थे
मायका सै गाड़ी खुलते ही
अकेलापन
एक सच ज़िंदगी के रंग का
फुरसत में हिंदी दिवस
इतिवृत्त...।
नेपाली जी की कविता लाज़वाब लगी बेहद प्रेरक।
अगले विशेषांक की प्रतीक्षा में
सप्रेम प्रणाम दी
सादर।
प्रिय श्वेता ,
जवाब देंहटाएंसही कहा , सबसे आसान है विरोध करना । जिनको कुछ खुद ज्ञान न हो तो उनसे तर्क भी क्या करना ।
सभी रचनाओं को पढ़ उनके शीर्षक से नई रचना का सृजन करना अद्भुत है ।
सराहना करने के लिए आभार ।
प्रति सप्ताह की भाँति विविध रंगों व भावों से सजे आपके संकलन व प्रस्तुति से एक ही स्थान पर चुने हुए विभिन्न ब्लॉग के लिंक मिल जाते हैं , ये सराहनीय व सुविधाजनक है हमारे लिए…वो कहते हैं न पकी पकाई मिल जाना😂…साथ ही बीच- बीच में आपकी विशेष रुचि लेकर लिखी गईं टिप्पणियों का क्या कहना…रोचकता बढ़ जाती है और इस बार तो प्रतिक्रिया स्वरूप आपकी आशु कविता भी पढ़ने को मिली।
जवाब देंहटाएंइस बार-
सादर सदैव पूजनीय होते हैं।
इतिवृत्त
रविवार की सुबह सुहानी
अकेलापन
एक सच…ज़िंदगी के रंग
हजारों फूल खिलते थे…सुन्दर कविताएं पढ़ने को मिलीं । साथ ही नेपाल सिंह नेपाली की कविता हिन्दी है भारत की बोली…सुनने को मिली। मेरी कविता मायका को भी शामिल करने के लिए बहुत आभार 😊
इसके अतिरिक्त गणपति बप्पा अगले बरस आकर…, फुर्सत में हिन्दी दिवस -दो ज्ञानवर्द्धक आलेख भी पढ़ने को मिले।
सभी रचनाकारों को और आपको हार्दिक बधाई 🌹इसी तरह मेहनत कर हमें कृतार्थ करती रहें🙏😊
मतलब बिना मेहनत कराए नहीं मानेंगी आप । वैसे हर लगाए हुए लिंक को पढ़ आप प्रतिक्रिया देती हैं तो मेहनत तो आप भी करती हैं । प्रस्तुति की सराहना हेतु आभार ।।
हटाएंहमेशा की तरह बहुत ही नायाब प्रस्तुति एक से बढ़कर एक लिंक्स... पहला लिंक खुल नहीं रहा "सादर सदैव पूजनीय होते हैं " वाला...शायद मुझसे ही...
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।
प्रिय सुधा ,
हटाएंआज कल आप कम सक्रिय लग रही हैं । आपकी पोस्ट कम आ रही हैं । आपको यहां दिए दिए लिंक पसंद आये इसके लिए शुक्रिया ।
पहले लिंक के लिए भारती जी को बोला था मैंने , उनके ब्लॉग की सेटिंग में कुछ गड़बड़ है , वैसे आप उसे ओके कर देंगी तो ब्लॉग खुल जायेगा , उसमें एडल्ट कंटेंट होने की बात कही जा रही है ।
पुनः आभार ।
गणपति बप्पा की विदाई की धूम में, स्वर मिलाती प्रस्तुति के लिए आभार प्रिय दीदी। सभी लिंक पढे ।बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचनाएँ हैं,उस पर वरिष्ठ कवि 'नेपाली ' जी की कविता ने प्रस्तुति को और भी रोचक और सुन्दर बना दिया है।आज के सम्मिलित सभी रचना कारों को नमन! आपको भी पुन शुक्रिया और प्रणाम 🙏🙏
जवाब देंहटाएंप्रिय रेणु,
हटाएंगणपति की विदाई के साथ शिक्षिका महोदया ने विनायक जी को होमवर्क दे दिया है कि अगली बार आओ तो लोगों को ऐसा सिखाना है ।😄😄
प्रस्तुति की सराहना हेतु आभार ।
देर से आने के लिए खेद है, वाक़ई स्पैम में चली गयी थी आपकी टिप्पणी संगीता जी, अति स्नेह से बहुत सुंदर गुलदस्ता सजाया है आपने, बहुत बहुत आभार!
जवाब देंहटाएंअनिता जी , बस आपको सूचना देना ही मेरा मंतव्य था । आपके इस स्नेह के लिए आभार ।
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