शीर्षक पंक्ति:प्रोफ़ेसर गोपेश मोहन जैसवाल जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक लेकर हाज़िर हूँ।
पढ़िए आज की पाँच पसंदीदा रचनाएँ-
एक ही थैली के
चट्टे-बट्टे की फ़ोर्जरी राइम
पापा: देश-प्रगति फिर रुकती क्यूँ,
रोज़ गरीबी बढ़ती क्यूँ?
चट्टे: बट्टे चोर बड़ा पापा,
मैं निर्दोष सदा पापा!
बट्टे: चट्टे चीट बड़ा पापा,
दूध-धुला मैं हूँ पापा!
जब भी नीचे
आना चाहा
मेरे पंख
सिमट न पाए
धरा पर आने
में असफल रहा
सूर्य की
तपती धूप से
भूख प्यास से
बेहाल हुआ
कच्ची धूप की पहली किरण
तुम्हारी पलकों पे जब दस्तक दे
हौले से अपनी नज़रें उठाना
नाज़ुक से मेरे ख्वाब
बिखर न जाएँ समय से पहले कहीं...
सुना है तुम चाँद पर रहने लगे हो..
*****
फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
बहुत सुन्दर अंक
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
मेरी रचना को आज के अंक में स्थान देने के लिए धन्यवाद रवीन्द्र जी |
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसुंदर संकलन।
जवाब देंहटाएंसुंदर संकलन
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