नमस्कार ! आज का दिन बहुत महत्त्वपूर्ण है ........ एक ओर पितृ पक्ष का समापन है तो दूसरी ओर माँ का आगमन ........... कल से ( प्रस्तुति बनाते हुए ) नवरात्रि की धूम ...... आज विश्व बेटी दिवस भी है ........ सभी पाठकों को आज के लिए शुभो महालया .....बेटी दिवस की शुभकामनाएँ और जब आप ये प्रस्तुति पढ़ रहे होंगे तब देवी के नौ रूपों को याद करते हुए नवरात्रि की शुभकामनाएँ .
इतने परब -त्यौहार कि फुरसत ही नहीं मिलती ... दम अलग निकल जाता है , ऊपर से जब किसी ब्लॉग का हैप्पी वाला बर्थडे आने वाला हो तो पूछो ही मत ........ पढ़िए कि ब्लॉग के जन्मदिन का कैसे मिला था न्योता ....... और साथ में एक कहावत चरितार्थ हो गयी थी ...
मार बढ़नी.... ई परव-तिहार के.... ! बाप रे बाप ! दम धरे का भी फुरसत नहीं मिल रहा है। हाह...चलिए कौनो तरह सब व्यवस्था-बात हो गया। अब निकले हैं न्योत-हकार देने। हौ मरदे... ! आप भी भकलोले हैं... ! इधर-उधर पतरा-कलंदर का देखे लगे, अरे कल हमरे ब्लॉग का हैप्पी बर्थ डे है ना.... !
चलिए आपने बानगी देख ली कि उस समय ब्लॉग के जन्मदिन पर कैसे आमंत्रित किया गया था ........खैर अभी मैं आपको ले चल रही हूँ श्राद्ध पक्ष के महत्त्व को कहते हुए या ये कहें कि अपने संस्कारों को हस्तगत करते हुए एक कहानी ........हांलांकि कुछ इस तरह के कार्यों को पाखण्ड ही मानते हैं लेकिन यदि आस्था है तो सब है ....
जब से नीरज ने होश सम्भाला था ,तबसे दादा जी को अपनी हर ख़ुशी और परेशानी में अपने साथ खड़े पाया था |दादा जी उसके लिए सिर्फ उसके दादा जी भर नहीं थे . उसके मार्गदर्शक और दोस्त भी थे |उसकी कोई भी समस्या हो वे उसे चुटकियों में हल कर देते थे |अपने निर्मल स्नेह के साथ मेहनत , लगन और धैर्य का जो पाठ दादा जी ने उसे पढ़ाया था , उसने उसके जीवन को बहुत सरल बना दिया था | पढाई के अतिरिक्त समय में वे उसे अपने साथ रखते और अपने जीवन के अनुभवों और मधुर यादों को उसके उसके साथ साझा करते ....
बच्चों में संस्कार तब ही आते हैं जब बड़े लोग उनको निष्ठा से मानते हों ...... वैसे कौवों को भोजन कराने के पीछे भी एक कथा है .... शायद गूगल करने पर मिल जाए , लेकिन जिसको नहीं मानना तो कथा भी व्यर्थ ही लगेगी ..... यूँ हमारे पूर्वजों ने हर त्यौहार और कार्य का समय बहुत सोच समझ कर निर्धारित किया था ....... ऐसा मैं नहीं कह रही ...... आप स्वयं ही पढ़ें ...
"हिन्दू धर्म" में अनगिनत त्यौहार मनाये जाते हैं। हर त्यौहार के पीछे कोई ना कोई उदेश्य जरूर होता है। अब नवरात्री पूजन को ही लें - "नवरात्री" के नौ दिन में नौ देवियों का आवाहन अर्थात आठ दिन में देवियों के अष्ट शक्तियों को खुद में समाहित करना ( रोजमर्रा के दिनचर्या के कारण हम अपनी आत्मा के असली स्वरूप को खो देते है..उसका जागरण करना )और नवे दिन देवत्व प्राप्त कर दसवे दिन अपने अंदर के रावण का वध कर उत्सव मनाना .
पितृ - पक्ष के समापन पर आज ( जब ये प्रस्तुति बना रही हूँ ) माता की स्थापना का भी दिन है .......शायद आज ही घट स्थापना की जाती है ....... तो देवी का एक गीत तो बनता है .....
चुपके चुपके आईं, भवानी मोरे अँगनवाँ
भोर भये रवि आने से पहले,
देख नहीं मैं पाई, भवानी मोरे अँगनवाँ
बाग हँसन लगे, कमल खिलन लगे
कलियाँ हैं लहराईं, भवानी मोरे अँगनवाँ
देवी माँ के प्रति मन की आस्था ही सबसे महत्त्वपूर्ण होती है ....... वैसे तो माँ के प्रति भी प्रेम और आस्था ही महत्त्वपूर्ण है ......कुछ लोग माँ को कितना मान देते हैं वो स्वयं जानें लेकिन हमारे एक ब्लॉगर साथी के मन की बात हम भली भांति जानते हैं ....... माँ के जाने के बाद उन्होंने पूरा वर्ष ही माँ को समर्पित रचनाएँ लिखी थीं ..... एक बानगी फिर से ....
माँ हक़ीक़त में तू मुझसे दूर है.
पर मेरी यादों में तेरा नूर है.
पहले तो माना नहीं था जो कहा,
लौट आ, कह फिर से, अब मंज़ूर है.
ये प्रेम ही है जो आज तक उसी गहराई से माँ को याद करता है ....... वैसे प्रेम के अनेक रूप हैं ......किसी के प्रेम में लोग प्रकृति से भी उतना ही प्यार करते हैं ........ किस तरह अपने प्रेम को अभिव्यक्त करते हैं ... एक नज़र देखिये .
मुझे एक प्रेम पत्र लिखना है
इन पड़े-पौधों के लिए
लहराती सी इस घास के लिए
इठलाते से इस झरने के लिए
अब प्रेम की बात चली है तो ज़रा ध्यान से ...... कहीं ऐसा न हो कि आप जिसे प्रेम समझ रहे हों वो कुछ और ही हो ...... ज़रा संभल कर ......
नोरा कहने लगी वह बहुत प्यारा है और अभी तो बच्चा है घर में इधर उधर घूमता है कभी कभी मैं नींद में रहती हूँ तो बिस्तर में मेरे आ जाता है और मुझ से लिपट जाता है l मुझे बड़ी हैरानी हुई अभी तो अपने देश में गाय भैंस घोडा खरगोश और कुत्ते ही पालतू पशु के रूप में देखा था और मैं उनसे भी डर जाती थी ये कहाँ मैं घने जंगल में आ गयी और ये महारानी तो मुझे मॉडर्न दिख तो रही है पर है अन्दर से भयंकर जंगली l
अभी इसको पढ़ते हुए आश्चर्य की मुद्रा में ही थी कि एक और अजीब औ गरीब किस्सा पढने को मिल गया ......ऐसे ही नहीं अंधविश्वास पैदा होते हैं ....... कुछ तो घटित होता ही है ..... पढ़िए एक घटना ..... और याद कीजिये कि क्या कभी आपके साथ भी ऐसा हुआ है कभी .....
अक्सर सोचती हूँ इंसान अपने कर्मों और बातों से जाने किस- किस को, कब- कब यूँ ही आराम से आहत करता है। इँसान अपने फायदे या गुस्से की खातिर दूसरे का गला काट देता है., अपने कर्मों और जहरीली बातों से किसी का भी दिल तोड़ते जरा नहीं सोचता।
एक बार सोचियेगा ....... बेचारा चाक़ू शर्मसार हो रहा लेकिन हम मनुष्य ??????? आज कल तो सबके अन्दर बस जैसे आग ही लगी हुई है ...... आग भी यदि काम की हो तो अच्छा व्यर्थ ही झुलसने के लिए हो तो व्यर्थ ........ आपके अन्दर की आग की तुलना देखिये किससे की गयी है .....
मैंने तो नहीं कहा था
कि मुझे चढ़ाओ चूल्हे पर,
अब तुमने चढ़ा ही दिया है,
तो मुझे भी देखना है
कि कितना जला सकती हो
मुझे जीते जी तुम.
कोई एसेंस की बात कर रहा है तो कोई वक़्त के साथ बदलते चेहरे की ...... लेकिन वक़्त के चेहरे नहीं होते ......
वक्त
हमारे
चेहरे बदलता है
वक्त
पढ़ा जा सकता है
हमारे चेहरे पर।
वक्त देखा जा सकता है
शब्दों में
उनके अर्थ और भाव में।
अक्सर हम खुद को आईने में नहीं देखते ...... देखते भी हैं तो केवल अपनी सोच के हिसाब से ..... असलियत तो देखना ही नहीं चाहते ....... दूसरों के दुःख तकलीफों पर बस शब्दों से ही ढाढस बंधा कर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेते हैं ...... इसी को काव्य रूप में पढ़िए .....
ठूँठ पसंद हैं इन्हें
वृक्ष नहीं!
वृक्ष विद्रोह करते हैं!
जो इन्हें बिल्कुल पसंद नहीं
समय शांत दिखता है |
यहाँ तो संवेदनशीलता की बात हो रही है लेकिन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर क्या चल रहा है इसका जायजा लेते हैं इस लेख से ......
शुक्रवार और शनिवार दरमियानी रात से चीन में तख्तापलट की खबरों का बाजार गर्म हो गया। शनिवार अर्थात 24 सितंबर 2022 सुब्रमण्यम स्वामी जी ने ट्वीट करके चीन के हालातों पर सवाल खड़े कर दिए।
विश्व का समाचार बाजार इन दिनों सोशल मीडिया के माध्यम से बेहद प्रभावशाली बन गया है। आज ट्विटर पर नंबर एक पर शी जिनपिंग और नंबर दो पर बीजिंग शब्द सर्वाधिक बार प्रयोग में लाया जा रहा था।
अभी तो बस कयास ही लगाये जा रहे हैं ...... असलियत क्या है ये तो बाद में ही पता चलेगा ...आज की प्रस्तुति को समापन की ओर ले जाते हुए एक रचना पर नज़र पड़ी ....जिसमें बेटियों को पढ़ाने के क्या क्या नुकसान उठाने पड़ सकते हैं इस पर प्रकाश डाला गया है ......अरे ! आप गलत सोच रहे हैं ....... कोई बेटियों को पढ़ाने के विरुद्ध नहीं है .....अप्रत्यक्ष रूप से बताया जा रहा है कि सबको अपनी मानसिकता बदलनी होगी ...... आप पढ़ ही लीजिये न ......
आप ब्लॉग पर ही पढ़ें ....... क्योंकि ताला मजबूत है ....... खैर ...... ताला मजबूत है तो क्या ...... यहाँ हर बेटी को मजबूत होने का मन्त्र दिया जा रहा है ..... आज के अंतिम पड़ाव पर .....
अपना परचम यश के फलक पर
तो खुद शक्ति बनो तुम
किसी अन्य की शक्तिपूजा से
फल नहीं मिलेगा तुम्हें ।
अपने मनमंदिर में
अपनी मूर्ति स्थापित करो,
इसके साथ ही पुनः नवरात्रि की शुभकामनाएँ ....... फिर मिलते हैं ... अगले सोमवार कुछ नयी - पुरानी रचनाओं के साथ ......
नमस्कार
संगीता स्वरुप ..
आदरणाय दीदी
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अंक
नवरात्रि की शुभकामनाएँ
सादर
हार्दिक धन्यवाद यशोदा ।
हटाएंसादर प्रणाम
जवाब देंहटाएंआपकी प्रस्तुति का क्या कहना
🙏🙏 हार्दिक आभार विभा जी ।
हटाएंमेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंमेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत धन्यवाद , आप यहाँ तक आये ।
हटाएंनिश्चय ही सुंदर अंक होगा । पढ़ती हूं। नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई 💐💐
जवाब देंहटाएंआराम से समय निकाल कर पढ़िए ।
हटाएंअरे वाह ! बहुत ही सुन्दर सार्थक सूत्रों से सुसज्जित आज की हलचल ! मुझे भी सम्मिलित किया आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार संगीता जी ! सप्रेम वन्दे !
जवाब देंहटाएंसराहना हेतु हार्दिक आभार ।
हटाएंअलग ही बानगी है ...प्रस्तुति की।नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ।बधाई।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया पम्मी ।
हटाएंबहुत सुंदर मनोरम प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंदुर्गा पूजा की हार्दिक शुभकामनाएं
हार्दिक आभार भारती ।।
हटाएंB
जवाब देंहटाएंकैसे मनोरंजक तरीके से करती हैं लिंक लगाना और फिर कड़ियों में कड़ी जोड़ते हुए ताल मिलाती, बहलातीं हाथ पकड़कर कुशलता से बातों की चाशनी में लपेट , तिलिस्म सा रचती घुमा लाती हैं जाने किस किस के ब्लॉग पर नायाब लिंकों तक…अद्भुत…!
*गई बात बहू के हाथ - मनोरंजक पोस्ट
*आओ देवता आओ-रेणु जी ने श्राद्ध पर बहुत सुन्दर पोस्ट लिखी है सच है श्रद्धा के बिना कोई मतलब नहीं श्राद्ध का।
* वसुधैव कुटुम्बकम्-कामिनी जी ने त्योहारों का बहुत सटीक वैज्ञानिक व मनोवैज्ञानिक लाभ बताए।
*देवी गीत-जिज्ञासा जी ने बहुत भावपूर्ण देवी गीत लिखा।
* माँ- दिगम्बर जी की बहुत भावपूर्ण रचना * प्रेम पत्र-प्रकृति प्रेम पर सुन्दर अभिव्यक्ति
*नोरा और वो-…"वो आपको निगलना चाहता है..”😜श्वेता जी का मज़ेदार किस्सा
*भगोने में दूध-ओंकार जी की दूध व आग के बीच सुन्दर संवाद…करती रचना ।
*चेहरों के आइने में- संदीप जी की सुन्दर रचना।
*दायित्व - अनीता जी की मार्मिक रचना । *मिलिट्री तख्तापलत…-गिरीश जी का विचारणीय आलेख…।
* बेटियों को पढ़ाने से पहले..-बेटियों को पढ़ाने से पहले अपनी संकुचित सोच को बदलो…देवेन्द्र जी की सुन्दर कविता
* शक्तिपूजा- …साधन भी तुम हो साधक भी तुम…साधना जी की सुन्दर कविता।
बहुत पठनीय सामग्री। सभी लिंक्स बहुत सुंदर।पितृ- पक्ष, नवरात्रि व बेटी दिवस इत्यादि सभी को समेटते हुए बहुत सुँदर अँक प्रस्तुत किया संगीता जी आपने…आपको व सभी को नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ 💐
हार्दिक आभार प्रिय उषा जी।आभारी हूँ कहानी पर आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया के लिए 🙏🌺🌺🌹🌹
हटाएंउषा जी , आप तिलिस्म को तोड़ती हुई सारे लिंक्स भेद आती हैं । और यही बात मुझे हर बार लिंक्स ढूँढ़ कर लगाने की प्रेरणा देती रहती है । हर लिंक पर आपकी संक्षिप्त प्रतिक्रिया मेरी प्रस्तुति को सार्थक कर रही है । बहुत बहुत हार्दिक आभार ।
हटाएंनमस्कार दी,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रस्तुति अपने आप में एक कहानी कह जाती है। इस श्रमसाध्य प्रस्तुति के लिए आपको हार्दिक बधाई,
अभी तक किसी रचना पर गई तो नहीं हूँ,मगर अंदाजा है आप चुनकर लाई है तो लाजबाब ही होगा।
कल सारी रचनाओं का आनंद जरूर उठाऊंगी।
इस शृंखला में मेरी रचना को भी स्थान देने के लिए हृदयतल से धन्यवाद दी
आप सभी को नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें
प्रिय कामिनी ,
हटाएंमेरे द्वारा चुनी रचना विशेष होंगी , इस विश्वास के लिए आभार । इससे मेरे दायित्व को और बढ़ा दिया है ।
अब और कुछ तो लिख नहीं पाते तो यहीं कुछ गढ़ लें । 😄😄
सराहना हेतु हार्दिक आभार ।
बेहतरीन सूत्रों से सजा सुन्दर संकलन ! नवरात्रि पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति की सराहना हेतु हार्दिक आभार ।
हटाएंप्रिय दीदी,विदा हो गये श्राद्ध पक्ष और नवरात्रों की रचनाओं के साथ एक सुन्दर प्रस्तुति है।यूँ तो सारी रचनाओं पर लिख कर ही यहां लिखती हूँ पर आज पहले यहाँ लिख रही हूँ।मेरी कहानी पर आपके विचारों से सहमत हूँ।श्राद्ध से लिया गया कर्म ही श्राद्ध है।इस विषय में प्रिय कामिनी की एक पोस्ट पर कुसुम जी की बहुत ही अनमोल प्रतिक्रिया साझा कर रही हूँ।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना खासकर मीमांसा की रचना बहुत लम्बे समय के बाद मंच पर आई है।अच्छा लगा आज अपने ब्लॉग पर हलचल देखकर।सभी रचनाकारों को सादर नमन।और सभी साहित्य प्रेमियों को नवरात्रों की ढेरों शुभकामनाएं और बधाई।आपको विशेष आभार और प्रणाम 🙏🙏
Renu Bala
हटाएंप्रिय रेणु ,
जो बात कुसुम जी ने लिखी है वो मैं कामिनी के इस लेख में की प्रतिक्रिया के रूप में पहले भी पढ़ चुकी हूँ । तुम जल्दी जल्दी मीमांसा और क्षितिज पर लिखती रहो तो हम इस मंच पर तुम्हारी रचनाएँ सजाते रहेंगे । 😄
प्रस्तुति की सराहना हेतु हार्दिक आभार ।
जवाब देंहटाएंपोस्ट भी बहुत पठनीय है 🙏🙏
https://dristikoneknazriya.blogspot.com/2019/09/jaane-chale-jaate-hai-kahan.html?m=0
प्रिय कामिनी की पुरानी पोस्ट पर कुसुम जी की भावपूर्ण प्रतिक्रिया----
सखी कामिनी जी आपका लेख बिना किसी पर आघात किये संयत शब्दों में अपने कोमल भावों की अभिव्यक्ति है ।साथ ही जाने वाले प्रिय जनों के प्रति सच्ची श्रद्धा है कि उनके द्वारा अधुरे छोड़े कार्यो को पूरा करना और उनके आदर्शों को निभाना । मुझे बहुत अच्छा लगा आपका ये लेख।
कामिनी बहन श्राद्ध के बारे में हर धर्मावलंबियों का अलग विचार है,और आस्था पर कुछ भी कहना मैं अच्छा नही समझती ,हम लोग श्राद्ध नहीं मानते हमारी मान्यतानुसार आत्मा शरीर त्यागते ही एक क्षण में नया शरीर धारण कर लेती है हमसे उसका कोई लेना देना नहीं होता ,हमने जिस काया के साथ अपने रिश्ते बनाए थे बस वो भर हमारी स्मृति में रहते हैं और जाने वाले जीव को हमसे कोई वास्ता नहीं रहता। अपवाद स्वरूप पूर्व कर्मो के बंधन(अच्छे या बुरे ) स्वरूप वो हमारे आसपास अपना बन कर आ तो सकता है पर सारी स्मृतियों के विहिन ।
रही बात मनाने न मनाने की तो कल मैंने एक अद्भुत लेख पढ़ा जो मैं यहां शेयर कर रही हूं मूझे नहीं पता इसमें कितनी वैज्ञानिकता है पर कुछ अलग से उच्च भाव हैं तो मन को भाये ...
*श्राद्ध किस लिए करना है?*
क्या हमारे ऋषि मुनि पागल थे?
जो कौवौ के लिए खीर बनाने को कहते थे?
और कहते थे कि कव्वौ को खिलाएंगे तो हमारे पूर्वजों को मिल जाएगा?
नहीं, हमारे ऋषि मुनि क्रांतिकारी विचारों के थे।
*यह है सही कारण।*
तुमने किसी भी दिन पीपल और बड़ के पौधे लगाए हैं?
या किसी को लगाते हुए देखा है?
क्या पीपल या बड़ के बीज मिलते हैं?
इसका जवाब है ना.. नहीं....
बड़ या पीपल की कलम जितनी चाहे उतनी रोपने की कोशिश करो परंतु नहीं लगेगी।
कारण प्रकृति/कुदरत ने यह दोनों उपयोगी वृक्षों को लगाने के लिए अलग ही व्यवस्था कर रखी है।
यह दोनों वृक्षों के टेटे कव्वे खाते हैं और उनके पेट में ही बीज की प्रोसेसिंग होती है और तब जाकर बीज उगने लायक होते हैं। उसके पश्चात
कौवे जहां-जहां बीट करते हैं वहां वहां पर यह दोनों वृक्ष उगते हैं
पिपल जगत का एकमात्र ऐसा वृक्ष है जो round-the-clock ऑक्सीजन O2 छोड़ता है और बड़ के औषधि गुण अपरम्पार है।
देखो अगर यह दोनों वृक्षों को उगाना है तो बिना कौवे की मदद से संभव नहीं है इसलिए कव्वे को बचाना पड़ेगा।
और यह होगा कैसे?
मादा कौआ भादर महीने में अंडा देती है और नवजात बच्चा पैदा होता है।
तो इस नयी पीडी के उपयोगी पक्षी को पौष्टिक और भरपूर आहार मिलना जरूरी है इसलिए ऋषि मुनियों ने
कव्वौ के नवजात बच्चों के लिए हर छत पर श्राघ्द के रूप मे पौष्टिक आहार
की व्यवस्था कर दी।
जिससे कि कौवौ की नई जनरेशन का पालन पोषण हो जायें.......
इसलिए दिमाग को दौड़ाए बिना श्राघ्द करना प्रकृति के रक्षण के लिए और
घ्यान रखना जब भी बड़ और पीपल के पेड़ को देखो तो अपने पूर्वज तो याद आयेगे ही क्योंकि उन्होंने श्राद्ध दिया था इसीलिए यह दोनों उपयोगी पेड़ हम देख रहे है
सार्थक टिप्पणी ।
हटाएंबहुत ही सुंदर सराहनीय संकलन।
जवाब देंहटाएंदेरी से आने हेतु माफ़ी चाहती हूँ दी कल कुछ व्यस्तता ज़्यादा थी। मेरे सृजन को स्थान देने हेतु हृदय से अनेकानेक आभार।
सादर स्नेह
बहुत बहुत धन्यवाद अनिता ।
जवाब देंहटाएंकल अधिकांश पाठक व्यस्त थे ।
प्रिय दी,
जवाब देंहटाएंविलंबित प्रतिक्रिया के लिए क्षमा।
रेणु दी, उषा जी ने सोमवारीय अंक का सूक्ष्म विश्लेषण कर
विस्तृत एवं विश्लेषात्मक प्रतिक्रिया लिखी है।
आपके द्वारा संकलित सूत्र और उसपर लिखी आपकी विशेष टिप्पणी सदैव लुभाते है और आमंत्रित करते हैं अपने विचार व्यक्त करने के लिए।
त्योहारों का उत्साह और उमंग ढर्रे पर चल रहे जीवन
को खुशियों से भर देता है।
नवरात्र के लिए क्या कहें-
माँ इस सृष्टि का सबसे कोमल,स्नेहिल, पवित्र, शक्तिशाली ,सकारात्मक एवं ऊर्जावान भाव,विचार या स्वरूप है।
चंद्र,अग्नि,वायु,वरूण,यम इत्यादि देवताओं जो प्रकृति का प्रतिनिधित्व करते हैं, के अंश से उत्पन्न देवी का आह्वान करने से तात्पर्य मात्र विधि-विधान से मंत्रोच्चार पूजन करना नहीं अपितु अपने अंतस के विकारों को प्रक्षालित करके दैवीय गुणों के अंश को दैनिक आचरण में जागृत करना है।
व्रत का अर्थ अपनी वृत्तियों को संतुलित करने का प्रयास और उपवास का अर्थ है अपने इष्ट का सामीप्य।
अपने व्यक्तित्व की वृत्तियों अर्थात् रजो, तमो, सतो गुण को संतुलित करने की प्रक्रिया ही दैवीय उपासना है।
सभी रचनाएँ बेहद अच्छी लगी दी।
अगले विशेषांक की प्रतीक्षा में-
सप्रेम प्रणाम दी।
सादर।
प्रिय श्वेता ,
हटाएंपाठकों से विस्तृत प्रतिक्रिया मिलने के बाद भी बहुत कुछ राह जाता है । सबके अपने अपने विचार होते हैं । अपनी दृष्टि होती है । नवरात्रि में सभी व्यस्त हैं ।।इस पर तुमने पूजा और व्रत की जो विवेचना की है वो अत्यंत सार्थक है । व्यस्त होते हुए भी प्रस्तुति के हर लिंक पर जा कर पढ़ना और टिप्पणी करने एक सार्थक प्रयास है ।
आभार ।
बहुत सुंदर रचनाओं, आलेखों, कहानियों से परिपूर्ण उत्कृष्ट अंक में शामिल.. सभी सृजन बहुत ही सुंदर और पठनीय हैं।
जवाब देंहटाएंदेसिल बयना.. मनोज जी की बहुत सुंदर, रोचक पोस्ट ।
मीमांसा.. रेणु जी की श्राद्ध का संदर्भ लेकर अनगिनत संस्कारों और पारिवारिक मूल्यों को संवर्धित करती बहुत ही उत्कृष्ट कहानी।
मेरी नज़र से.. वसुधैव कुटुंबकम्..कामिनी सिन्हा जी का बहुत ही प्रासंगिक और विचारणीय आलेख।
स्वप्न मेरे.. दिगंबर नासवा जी की रचना मां... मां की याद में बहुत ही सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
अदीबहिन्दी.. प्रीति मिश्रा का एक सुंदर सार्थक प्रेम पत्र लिखने की तमन्ना ।
कुछ अनकही सी.. श्वेता मिश्रा .. नोरा और वो.. अजगर पालने का बेहद खतरनाक शौक के ऊपर रोचक आलेख ।
ताना बाना.. में उषा किरण जी का संस्मरण शर्मसार.. बेहद ही संवेदनशील और भावपूर्ण अभिव्यक्ति ।
कविताएं.. ओंकार जी की.. भगोने में दूध... संवाद शैली में सुंदर रचना ।
पुरवाई.. संदीप जी की.. चेहरों के आईने में.. भावपूर्ण रचना ।
गूंगी गुड़िया.. दायित्व. अनीता जी की हृदय स्पर्शी रचना.. ।
मिसफिट.. गिरीश जी का चीन पर सामयिक और सार्थक आलेख मिलिट्री तख्तापलट खबर और ग्लोबल टाइम्स खामोश..?
बेचैन आत्मा.. देवेंद्र पाण्डेय जी की रचना.. बेटियों को पढ़ाने से पहले.. बहुत सार्थक और प्रासंगिक अभिव्यक्ति ।
सुधिनामा.. शक्तिपूजा.. साधना दीदी की स्त्री विमर्श पर सुंदर रचना ।
इस सुंदर प्रस्तुति में मेरे लोकगीत को शामिल करने के लिए हार्दिक आभार दीदी ।
शारदीय नवरात्रि पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई💐💐
हमेशा की तरह बहुत ही लाजवाब प्रस्तुति।एक से बढ़कर एक लिंक्स । देर से आना मेरी आदत में सुमार हो चुका ,फिर माफी भी कैसे माँगू एक बार की बात हो तो........खैर...
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं ।
प्रिय सुधा ,
हटाएंदेर से आये .... लेकिन दुरुस्त आते रहें । प्रस्तुति पसंद करने के लिए आभार ।