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गुरुवार, 15 सितंबर 2022

3517...हिन्दी कहती- तितली-सी उड़ूँगी नहीं हारूँगी...

शीर्षक पंक्ति: डॉ. जेन्नी शबनम जी की रचना से। 

सादर अभिवादन।

गुरुवारीय अंक लेकर हाज़िर हूँ। प्रस्तुत हैं सद्य प्रकाशित पाँच रचनाओं के लिंक्स व अंश-

749. हमारी मातृभाषा (6 हाइकु)

 
5.

अपनों द्वारा

होती अपमानित

हिन्दी शापित।

 6.

हिन्दी कहती-

तितली-सी उड़ूँगी

नहीं हारूँगी।

 'हिन्दी दिवस' (लघु कविता)

हिन्दी भाषा की जो आन-बान है,

किसी और की कब हो सकती है!

एक बेटी की इच्छा

तलाक के काग़ज़ शायद उड़ जाएं खिड़की से बाहर,

जैसे फेंक दी जाती हैं अनचाही चीजें कबाड़ के साथ,

मां और पिता फ़िर साथ बैठ सपनों में खो जाएं

और मैं

उनके प्रेम की साक्षी बन स्थिर हो जाऊँ उन दीवारों की जगह।।

हिंदी माँगे अधिकार सुनो !

हूँ हिंदी सिद्धा स्वयं सकल

हर भाषा भाषी में व्यापूँ 

अंतर्मन घट-घट में उतरूँ

मग-मग,डग-डग धरती नापूँ ॥

कम्प्यूटर होविज्ञान जगत

नतमस्तक बारम्बार सुनो 

हिन्दी (कृपाण घनाक्षरी)

हम हिन्दी में बोलते।

बोली में मिश्री घोलते।

हर भाषा से तोलते।

हिन्दी को अपनाइए।

*****

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव  


5 टिप्‍पणियां:

  1. क्या बात है.....
    शानदार प्रस्तुति
    आभार.....
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. मेरी छोटी-सी रचना को इस सुन्दर पटल पर स्थान देने के लिए आपका बहुत आभार भाई रवीन्द्र जी! सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई!

    जवाब देंहटाएं
  3. इस पटल पर प्रस्तुत की गई साथी रचयिताओं की सभी रचनाएँ पढ़ीं, मन को बड़ा सुकून मिला! सभी को स्नेहिल बधाई!

    जवाब देंहटाएं

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