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मंगलवार, 5 अप्रैल 2022
3354 ...कुर्सी पर बैठे हैं फिर क्यों उखल-बिखल
14 टिप्पणियां:
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बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुन्दर संकलन, सभी पोर्टलों पर गया हूँ, सकारात्मक उर्जा और आशातीत रचनाएं पढने को मिली, सिवाय विमल कुमार जी,
जवाब देंहटाएंविमल जी आपकी बतों से सहमत हूँ कि देश में भ्रष्टाचार अब भी चरम पर है, पर इसमें दोषी कौन है उसे हमें चिन्हित कर किनारा करना होगा, राष्ट्रद्रोह में लिखना तो राष्ट्रद्रोही हो गया, फिर आप खुद की नजर से कैसे उठ सकते हो, फिर आपके पास बचा क्या है,
माफ़ी चाहता हूँ,
संकलन कर्ता ऐसी द्रोही कलम को प्रशय ना दें .
आभार
हटाएंध्यानाकर्षण हेतु
सादर
अडिग जी,प्रोफाइल सही कर लें। भारत में राष्ट्र भाषा नहीं है... हिन्दी भी नहीं।
हटाएंबड़े भाई अडिग जी, मेरी रचना का विषय भ्रष्टाचार कहाँ है? मैंने तो वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य पर कुछ प्रश्न खड़े किये हैं। आज की सत्ता से प्रश्न करनेवाले हर प्रश्नकर्ता को राष्ट्रद्रोही की दृष्टि से देखा जाता है और उसे प्रतिबन्धित करने का प्रयास किया जाता है। आप भी उसी कड़ी में हैं। मुझे परवाह नहीं। इस द्रोह से भय लगता है तो सुधरिये। मेरी रचना का एक एक शब्द आपकी टिप्पणी ने सार्थक कर दिया इसके लिए आप प्रशंसनीय हैं और आपको नमन करता हूँ।
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंसोद्देश्यता कला की आत्मा होती है' इस तथ्य को रेखांकित करती अत्यंत सार्थक और सारगर्भित रचना। बधाई और आभार।
हटाएंबेहतरीन संकलन
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट लिंको से सजी लाजवाब हलचल प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने हेतु तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आ.यशोदा जी !
बहुत ही बेहतरीन लिंक्स के साथ सुसज्जित आदरणीय । मेरी रचना को स्थान देने क्व लिए बहहत बहुत शुकृया !!
जवाब देंहटाएंआज फिर मौका मिला यहाँ आने का। लिंक और रचनाएँ तो अच्छी लगीं पर यहाँ 'अडिग' जी की टिप्पणी ने दिल खट्टा कर दिया। साथी रचनाकार को प्रोत्साहित करने की मंशा होनी चाहिए। वैसे मुझे तो रचना में कोई कमी नहीं दिखी। इतनी सी बात पर राष्ट्र द्रोही कहना कहाँ तक उचित है। दूसरा किसी को राष्ट्र द्रोही कहने का अधिकार कहाँ से मिल जाता है इनको। और तो और यह संकलन कर्ता से भी कह रहे हैं इनको प्रश्रय न दे, फिर भी प्रबंधन चुप है!
जवाब देंहटाएंप्रबंधन को ऐसी टिप्पणियों पर ध्यान देना चाहिए ताकि रचनाकार बेमतलब निराश /परेशान न किए जाएँ।
बड़े भाई नमन आपको, मुझे पता था कि मेरी रचना जब निशाने पर लगेगी तो लोगों को उखल बिखल करेगी। यही तो कविता का मूल उद्देश्य है। ऐसी टिप्पणी से तो लेखन की सार्थकता सिद्ध है। इसमें बुरा मानने की बात नहीं। आपने मेरा पक्ष रखा इसके लिए पुनः आभार।
हटाएंमाननीय अडिग जी, पाँच लिंक मंच के पुराने अंकों में रचनाओं के साथ टिप्पणियाँ देखते वक्त आपकी विवादास्पद प्रतिक्रिया पर बहुत दुख हुआ।आप किसी रचनाकार को उसकी बेबाक अभिव्यक्ति के लिए द्रोही कैसे कह सकते हैं।विमल जी का आशय संभवतः ये है कि यदि सत्य कह दें तो देशद्रोही करार दिए जा सकते हैं पर शायद अराजकता पर ना लिखने से रचनाकार अपनी नजरों में ही गिर जाता है,जो किसी भी दृष्टि से अनुचित नहीं।अपने सम्मानीय सहयोगी के लिए द्रोही कलम जैसा अशिष्ट शब्द नितांत खेदजनक है जिसकी अपेक्षा आप जैसे प्रबुद्ध व्यक्ति से नहीं की जा सकती।इस प्रकार की आपत्तिजनक टिप्पणी रचनाकार का सार्वजनिक मंच पर मनोबल कम करती है।मुझे बहुत दुख हुआ पढ़कर।
हटाएंबहन रेणु जी बिल्कुल यही मन्तव्य था मेरा। रही विवाद की बात तो बड़े भाई अडिग जो को कहने का हक है। विरोधी विचार ही तो लोकतंत्र की ताकत हैं। इस तरह हम एक दूसरे के समकालीन विचारों को जानते समझते हैं।
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