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गुरुवार, 28 अप्रैल 2022

3377...जैसा इतवार, वैसा सोमवार...

 शीर्षक पंक्ति: आदरणीय ओंकार जी की रचना से। 

सादर अभिवादन।

गुरुवारीय अंक लेकर हाज़िर हूँ।

दुनियाभर में 28 अप्रैल को कार्यस्थल पर सुरक्षा और स्वास्थ्य दिवस के रूप में मनाया जाता है। दिन तो 365 /366 ही हैं लेकिन उनके साथ किसी न किसी विचार को जोड़ने का चलन अब ढलान पर है। 

आइए अब आपको आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चलें-

बंद मुट्ठी

मेरा अनुरोध है तुमसे

मत खोलना इस मुट्ठी को तुम कभी भी

मैं नहीं चाहती कि अपार संभावनाओं से भरे

ये बीज तुम्हारी मुट्ठी खुलते ही

निर्जीव हो जाएँ और उनके पनपने की

सारी संभावनाएं ही समाप्त हो जाएँ !

६४७.रिटायरमेंट के बाद

बस एक ही चीज़ खटकती है

कि अब दिनों में कोई फ़र्क़ नहीं रहा,

जैसा इतवारवैसा सोमवार,

सारे दिन एक जैसे.

शब्द रचना - -

जाल हैं खुली
निगाहों के

95. भावनाओं को आलोड़ित करता : लम्हों का सफ़र - डॉ. शिवजी श्रीवास्तव

जेन्नी जी ने बहुत कम वय में अपने पिता को खोया हैये पीड़ा उनकी नितांत निजी हैपर ज्यों ही ये पीड़ा- 'बाबाआओ देखो! तुम्हारी बिटिया रोती हैकविता में व्यक्त होती हैयह हर उस व्यक्ति की पीड़ा बन जाती हैजिसने अल्प वयस में अपने पिता को खोया है। इस खण्ड में प्रबल अतीत-मोह हैबड़ी होती हुई स्त्री बार-बार अतीत में लौटती है और वहाँ से स्मृतियों के कुछ पुष्प ले आती है। समाज मे लड़कियों को अभी भी अपनी इच्छा से जीने की आज़ादी नहीं हैइसीलिए ज्यों-ज्यों लड़की बड़ी होती हैउसका मन अतीत में भागता है। 'जाने कहाँ गई वो लड़कीमें इसी दर्द को देखा जा सकता है- ''जाने कहाँ गईवो मानिनी मतवाली / शायद शहर के पत्थरों में चुन दी गई / उछलती-कूदती वो लड़की''। 'वो अमरूद का पेड़', 'उन्हीं दिनों की तरह', 'ये कैसी निशानी है', 'इकन्नी-दुअन्नी और मैं चलन में नहीं', 'ये बस मेरा मन है', 'उम्र कटी अब बीता सफ़रऐसी ही कविताएँ हैं जिनमे कवयित्री का मन अतीत के भाव-जगत् में डूबता-उतराता रहता है। 

 "एक कप चाय" (लघुकथा)

रात भर के जागरण  के बाद भोर से पूर्व मंदिरों

की आरती की घंटियों ने प्रभात-वेला होने की सूचना दी कि सभी जाने की तैयारी में लग गए । उसने कमरे की दहलीज पर

पहुँच कर पूछा---'एक कप चाय और'… । कई स्नेहिल

आशीर्वाद से भरे ठंडे हाथ उसके ठंडे बालों पर स्वीकृति से

टिके ही थे कि  कानों में एक आवाज गूंजी --'जी हाँ …,चलते

चलते एक कप चाय और …, हो ही  जाए।

*****

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव  


5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर संकलन । मेरे सृजन को मंच पर साझा करने के लिए बहुत बहुत आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह जी । सादर..।

    जवाब देंहटाएं
  2. काफी से बेहतर अंक
    आभार..
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. सुन्दर सूत्रों का संग्रहणीय संकलन आज का अंक ! मेरी रचना को आज की हलचल में सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार रवीन्द्र जी ! सादर वन्दे !

    जवाब देंहटाएं

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