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सोमवार, 4 अप्रैल 2022

3353...देख खेतवा में बदरा बा ठार गोरिया...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीय विश्वमोहन जी की रचना से। 

सादर अभिवादन।

सोमवारीय अंक के साथ हाज़िर हूँ।

आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-

आत्म विश्वास मेरा अटूट

मैं गलत नहीं हूँ जानती हूँ

तभी हर बात किसी की

आँखें बंद कर मानती नहीं

यही कमीं रही मुझ में

नवगीत...उड़ जाऊँगी...

थक हार कर जब कभी

हताश हो कर बैठोगे

धीरे धीरे दबे कदमों से

पास तुम्हारे आऊँगी ,

तुम गाओ प्रेम गीत

विरह गीत मैं गाऊँगी।

कर प्यार गोरिया


मनवा मारे गजबे के धार गोरिया।

छोड़ नखड़ा, ना रुस, रार गोरिया।

हम गइनी  हियवा अब हार गोरिया।

एक ग़ज़ल

सब गए हैं, छोड़ करजाओगे तुम भी ,
महल अपना ले के जाओगे कहाँ  तक ?           

जाग कर भी सो रहे हैं लोग ’आनन’ ,
तुम उन्हें कब तक जगाओगे कहाँ तक ?         

बार बार जिन्दा होता है

चाहे वो जितना भी विकट है,

पर उससे ज्यादा वो जीवट है,

तो कभी किसी से डरता है,

और वो कभी मरता है।

बाद भी वो तवायफ़ ...

बारूदी दहक में पसीजते मासूम आँखों से आँसू,

ये हैं भला यूँ भी कैसे तरक्क़ी पसंदों के क़वायद .. शायद ...

किसी की माँ या बहन या पत्नी होती है औरत,

बनने से पहले या बनने के बाद भी वो तवायफ़ .. शायद ...

*****

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव  

 

13 टिप्‍पणियां:

  1. शानदार अंक..
    बेहतरीन रचनाओं का गुलदस्ता
    आभार..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. इस बेहतरीन संकलन में मुझे भी शामिल करने के लिए आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  3. सुप्रभात
    उम्दा रचनाएं पढने को मिलीं |मेरी रचना को आज के अंक में स्थान देने के लिए आभार सर |

    जवाब देंहटाएं
  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  5. सार्थक रचनाओं से भरपूर अंक है । सभी रचनाएँ बधाई के पात्र ।
    - बीजेन्द्र जैमिनी

    जवाब देंहटाएं
  6. जी ! नमन संग आभार आपका .. आज की अपनी प्रस्तुति में मेरी बतकही को जगह देने के लिए .. वो भी दो-दो मंचों पर ...

    जवाब देंहटाएं
  7. I would maintain that thanks are the highest form of thought; and that gratitude is happiness doubled by wonder.
    college me subject change karne ke liye application

    जवाब देंहटाएं
  8. मेरे ब्लॉग को सम्मान देने के लिये बहुत शुक्रिया।🙏

    जवाब देंहटाएं

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