शीर्षक पंक्ति: आदरणीय विश्वमोहन जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
सोमवारीय अंक
के साथ हाज़िर
हूँ।
आइए पढ़ते
हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
मैं गलत नहीं हूँ जानती
हूँ
तभी हर बात किसी की
आँखें बंद कर मानती नहीं
यही कमीं रही मुझ में
थक हार कर जब कभी
हताश हो कर बैठोगे
धीरे धीरे दबे कदमों से
पास तुम्हारे आऊँगी ,
तुम गाओ प्रेम गीत
विरह गीत मैं गाऊँगी।
मनवा मारे इ गजबे के धार गोरिया।
छोड़ नखड़ा, ना रुस, न रार गोरिया।
हम गइनी इ हियवा अब हार गोरिया।
चाहे वो जितना भी विकट है,
पर उससे ज्यादा वो जीवट है,
न तो कभी किसी से डरता है,
और न वो कभी मरता है।
बारूदी दहक में पसीजते मासूम आँखों से आँसू,
ये हैं भला यूँ भी कैसे तरक्क़ी पसंदों के क़वायद .. शायद ...
किसी की माँ या बहन या पत्नी होती है औरत,
बनने से पहले या बनने के बाद भी वो तवायफ़ .. शायद ...
शानदार अंक..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनाओं का गुलदस्ता
आभार..
सादर..
इस बेहतरीन संकलन में मुझे भी शामिल करने के लिए आभार ।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंउम्दा रचनाएं पढने को मिलीं |मेरी रचना को आज के अंक में स्थान देने के लिए आभार सर |
सुंदर संकलन। बधाई और आभार!!!
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसार्थक रचनाओं से भरपूर अंक है । सभी रचनाएँ बधाई के पात्र ।
जवाब देंहटाएं- बीजेन्द्र जैमिनी
बहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंजी ! नमन संग आभार आपका .. आज की अपनी प्रस्तुति में मेरी बतकही को जगह देने के लिए .. वो भी दो-दो मंचों पर ...
जवाब देंहटाएंI would maintain that thanks are the highest form of thought; and that gratitude is happiness doubled by wonder.
जवाब देंहटाएंcollege me subject change karne ke liye application
मेरे ब्लॉग को सम्मान देने के लिये बहुत शुक्रिया।🙏
जवाब देंहटाएंthanks for sharing this one
जवाब देंहटाएंPushpa Movie Hindi Mein
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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