शीर्षक पंक्ति: आदरणीय सुबोध सिन्हा जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
सोमवारीय अंक लेकर हाज़िर हूँ।
आइए अब आपको आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चलें-
देते रहना ही पाना है
ख़ाली दामन ही भरता है,
धरती अंबर मिल लुटा रहे
‘वह’ परिग्रही पर हँसता है!
एक लोकभाषा कविता-खेतवा में गाँव कै परानं
आपस में भी प्रेम नहीं
मेल-जोल गायब
केहू बा कलेक्टर
त केहू भयल नायब
ना कउनो नौटंकी,कुश्ती
नहीं रामलीला
कूकर चढ़ल चूल्हवा प
गुम भयल पतीला
बूढ़वन क घटल
बहुत मान मोरे भइया।
चौपाई - जो समझ आयी .. बस यूँ ही...
आराध्यों को अपने-अपने यूँ तो श्रद्धा सुमन,
करने के लिए अर्पण ज्ञानियों ने थी बतलायी।
श्रद्धा भूल बैठे हैं हम, सुमन ही याद रह पायी,
सदियों से सुमनों की तभी तो है शामत आयी .. शायद...
रीता मन - रीते नयन, भीगे-भीगे पल क्या लिखूँ?
सूना आँगन- सूना उपवन, उल्लास प्रेम का क्या लिखूँ?
वे सावन संग भीगे थे हम, रुत वसंत झूमे थे संग,
मकरंद प्रेम का बिखरा था, बूँदों में तन- मन पिघला था,
तुम संग सब मौसम बीते, पतझड़ का सूनापन क्या लिखूँ ?
जब प्रेम झडने लगता है कवि की कलम से
उठाईगीरे ने भक्तिभाव से परिपूर्ण स्वर में बाबा पापाचार्य से पूछा –
‘भगवन ! छहों दिशाएँ मुझे क्या संकेत कर रही हैं?’
बाबा पापाचार्य ने उत्तर दिया –
‘छहों दिशाएँ चीख-चीख कर कह रही हैं कि तू वह हीरो का हार हमारे चरणों में अर्पित कर दे.
उठाईगीरे ने वह हीरों का हार बाबा जी के चरणों में चढाते हुए उन से पूछा –
‘प्रभो ! आशीर्वाद के रूप में मुझे क्या मिलेगा?’
‘चोर बाज़ार में ये हार हम बिकवाएँगे. कई जौहरियों से हमारे कॉन्टेक्ट्स हैं.
चौथाई माल दरोगा रिश्वत सिंह और उसके साथी पुलिसिये रक्खेंगे
और बाक़ी बचा चौथाई माल तुझको मिल जाएगा.’
सुप्रभात भाई रवींद्र जी।सभी लिंक्स बेहतरीन।हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंव्वाहह
जवाब देंहटाएंबेहतरीन..
आभार..
सादर..
सुप्रभात, सराहनीय रचनाओं के लिंक्स से सज्जित सुंदर अंक, आभार!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लिंक्स से सजी उत्कृष्ट प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर मेरी रचना को स्थान देने के लिए
जवाब देंहटाएंसुंदर संकलन
जी ! नमन संग आभार आपका .. मेरी बतकही को अपने मंच की बहुरंगी प्रस्तुति में स्थान देने के लिए और उस बतकही के एक अंश को शीर्षक बनाने के लिए भी ...
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