कोटि-कोटि वन्दन तुम्हें, पवनपुत्र हनुमान।।
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धार्मिक ग्रंथों में निहित है कि जब प्रभु यीशु को शूली पर चढ़ाया गया तो उनके अनुयायियों में निराशा की लहर दौड़ गई। इसके तीन दिन बाद संडे के दिन वें कब्र से
जीवित हो उठें। प्रभु यीशु के शोक संतप्त अनुयायी अपने घरों में प्रभु यीशु को स्मरण कर रहे थे। तभी उनके पास एक महिला आई और बोली-प्रभु जीवित हो उठें हैं।
यह सुन अनुयायियों में ख़ुशी की लहर दौड़ गई। उन्होंने महिला से विस्तार में सब कुछ बताने को कहा। इसके बाद उस महिला ने कहा-जब वह प्रार्थना करने कब्र पर गई तो
देखा कि कब्र का पत्थर अपने स्थान पर नहीं हैं और प्रभु का पार्थिव शरीर कब्र में मौजूद नहीं था। उस समय कब्र से देवदूत प्रकट होकर बोले-तुम प्रभु की प्रार्थना
करने यहां आई हो। जबकि प्रभु तो जीवित हो उठें हैं। उन्हें कब्र में नहीं अपने आस-पास ढूंढो, वे वहीं मिलेंगे। इसके बाद देवदूत गायब हो गए। यह सुन वह रोने लगी
तभी प्रभु प्रकट होकर बोले-मत रो, मैं जीवित हो
इस दिन से हर साल गुड फ्राइडे के तीन दिन बाद ईस्टर मनाया जाता है। प्रभु यीशु का स्वर्ग प्रस्थान ऐसा कहा जाता है कि प्रभु यीशु जीवित होने के बाद 40 दिनों
तक धरती पर रहे और इसके बाद पुनः स्वर्ग लोक को लौट गए। इस दरम्यान उन्होंने अपने शिष्यों को ज्ञान के उपदेश दिए और उन्हें धर्म, कर्म, शांति एवं मानवता का
पाठ पढ़ाया।
सभी को इनकी महान कृपा प्राप्त हो.....
इस प्रार्थना के साथ पेश है.........
आज के लिये मेरी पसंद......
अब पेश है आज के लिये मेरी पसंद.....
तुम मेरे लाइटहाउस हो! (अब यह थोड़ा पुराना हो गया, शायद.. पर यकीं जानिए,
मार्गदर्शन के शहर में उम्दा नक्काशी वाले मील के पत्थर हैं, आप!)..
बेहद शुक्रिया प्रिय दोस्त, इस शुष्क मन को सींचने का.. मित्रता के पुष्प महकाने का..
लक्ष्य भेदने के उद्बोधन का.. शुक्रिया, आपके होने का!!"
रोते-बिलखते लोगों और
अपने ही जैसे नन्हे बच्चों को देखकर ,
कहीं अस्पतालों
के दरवाजों से दुत्कारे गए
बेसहारा मरीजों को देखकर ,
कहीं फैक्ट्रियों के लिए उजाड़ी गयी
बस्तियों से मेहनतकशों की
उजड़ती ज़िन्दगी को देखकर ,
कहीं अमीरों की ऊँची -ऊँची
आलीशान इमारतों और
कहीं उनके नीचे झुग्गियों में
दिन गुजारते अपने ही जैसे
बच्चों को देखकर ,
प्यार तुम्हारा
खुद पाने के लिए
सोंपा खुद को
सपना देखा
सजाया सवारा है
कोने कोने में
पत्थर तो पत्थर ही रहता शिल्पकार ना मिलता
अनगढ़ पत्थर में जब तक वह रंग-प्राण ना भरता
अपने कौशल कला शक्ति से ऐसे शैल तराशे
बोल उठा करती हैं प्रतिमा जब जब पत्थर गढ़ता
भाषा नहीं कला की कोई भाव-भंगिमा होतीं
जब जब बातें करती हैं आसक्त रहा करते हैं
माँ की ममता का शब्दों से कैसे थाल सजाऊँ ?
या विरहिन के आँसू का मैं दर्द कहाँ कह पाऊँ ?
वो बहन, भाई , या कोई अजनबी हो
अगर ममता से भरा वह दिल
छूटी हुई डोर थाम कर
प्राण फूँक देता है,
तो
ममत्व इस दुनिया में सबसे महान हैं
और
माँ तो
सबसे परे
ईश्वर के समकक्ष रखी जाती है ।
बेटा शाम को लौटते समय
एक फार्म ले आया है
पिता
पिता ही होता है
वे आज खाने की मेज पर नहीं बैठे
भीतर बसी
चुप्पियों को तोड़ते बोले
घर में जगह नहीं बची
वृद्धाश्रम में
बची है
तुम्हें तुम्हारे
सुख की हंसी की शुभकामनाएं
मैं अपने साथ
अपने सपनों को ले जाउंगा
वृद्धाश्रम के
खुरदुरे आंगन में
अपनों के साथ
रेत का घरौंदा बनाउंगा-----
धन्यवाद।
आभार आपका..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अंक
सादर..
पाँच लिंकों का आनंद में,
जवाब देंहटाएंमेरी पोस्ट का लिंक देने के लिए
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद,
आदरणीय कुलदीप ठाकुर जी!
मार्मिक रचनाओं का उम्दा संकलन
जवाब देंहटाएंआभार सहित धन्यवाद कुलदीप जी |तीसरे हाइकु में तीसरी लाइन में 'कौने कौने को 'लिखना था
जवाब देंहटाएंगालर टैप हो गया है |
बहुत सुंदर संकलन।
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