शीर्षक पंक्ति: आदरणीय विकास नैनवाल जी की रचना से।
सादर अभिवादन
सोमवारीय अंक लेकर हाज़िर हूँ।
आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
दहशतजदा दीवारों में
जंग लगी
खिड़कियों को बंद कर
देखना पड़ता है
छत की तरफ़
नींद में चौंककर
रोना पड़ता है
बच्चों की तरह
ईंट की दीवारों की जगह
मन-मस्तिष्क की दीवारों पे,
काश ! .. कुछ इस तरह
हो पाते अंकित ये नारे
"स्वच्छ भारत अभियान" के।
अपरिमित ध्रुवों को समेटे
विस्तार धारे अपने अंक में
क्या कुछ नहीं गर्भ में भरा
जगत आधारी है ॥
धारी दिनकर सिंह का, लेखन कार्य महान।
अलख क्रांति की नित जगा, रखा देश का मान।।
रखा देश का मान, खरी खोटी थे कहते।
रहे सदा निर्भीक, झूठ को कभी न सहते ।।
नाटकों के पात्र हैं हम सब,
नही किसी पात्र के दर्शक,
हमारा कर्म है अभिनय,
हमारा धर्म है अभिनय,
हमारे कर्म का,सत्कर्म का,
कभी लड़े-झगड़े, कभी साथ मुस्कराये हम
न जाने कब एक दूसरे की मंजिल
हो गए
*****
सुंदर रचनाओं का गुलदस्ता..
जवाब देंहटाएंआभार..
सादर..
सुप्रभात !
जवाब देंहटाएंविविध रचनाओं का सुंदर अंक ।
मेरी कविता को शामिल करने के लिए आपका बहुत आभार, सभी रचनाकारों को मेरी हार्दिक शुभकामनाएं।
आपको मेरा नमन और वंदन आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी।
सुंदर रचनाओं का संकलन। मेरी रचना को स्थान देने हेतु हार्दिक आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लिंक संयोजन के लिए
जवाब देंहटाएंसाधुवाद
सभी रचनाकारों को बधाई
मुझे सम्मलित करने का आभार
जी ! नमन संग आभार आपका ... मेरी बतकही को यहाँ जगह देने के लिए ...
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