।।प्रातः वंदन ।।
"आमों की खुशबू में लिपटी गर्मियों की वो दुपहरी
शहद, गुड़, मिसरी से मीठी, गर्मियों की वो दुपहरी।
याद हैं वो धूप में तपती हुई सुनसान गलियां
और सन्नाटे में डूबी गर्मियों की वो दुपहरी।"
राजीव भरोल 'राज'
सहस्त्रचित्त आलौकिक क्षण स्वर और व्यंजनों से
सहस्त्र शब्द सृजन इन्हीं सीमित स्वर और व्यंजनों से
..#तृप्ति
लिजिए आज की पेशकश में मिलीजुली भावों को लेकर आए हैं..जो कह रही है ,मेघों ने छेड़ा जीवन राग... ✍️
अम्बर में घिर आए घन
पछुआ चलती सनन सनन और
मेघों ने छेड़ा जीवन राग
पुष्पों में खिल आए पराग
हर्षित धरती का हर कण
पछुआ चलती सनन सनन
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गमक उठे हैं साल वन
ढाक-साल सब खिल गए, मन मोहे कचनार।
वन प्रांतर सुरभित हुए, वसुधा ज्यों गुलनार।।
गमक उठे हैं साल वन, झरते सरई फूल।
रंग-गंध आदिम लिए, मौसम है अनुकूल..
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तसव्वुर
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न राह है - न चाह है - ना कहीं निगाह है...
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।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️
ढाक-साल सब खिल गए,
जवाब देंहटाएंमन मोहे कचनार।
सुन्दर रचनाओं से सुसज्जित अंक
आभार
सादर..
सुन्दर सूत्रों से सजा बहुत सुन्दर संकलन । “मेघ” को संकलन में सम्मिलित करने के लिए सादर आभार पम्मी जी ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचनाओं का बढ़िया संकलन
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा ब्लॉग मंच🙏
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति ।
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