।। उषा स्वस्ति ।।
"स्वस्तिवाचन कर रहे हैं
सामध्वनि से कंठ कूजित
नवल पल्लव नव कुसुम औ
नव किरण से पंथ पूजित।
माँग कुंकुम से सजाये
दिपदिपाती भोर आई। "
अनिता सिंह
सच ही तो है.. सुबह की किरणें ,प्रत्येक के अंदर अनंत प्रकाश विधमान है जो छुपायें हुए सृष्टि के अनछुए पहलुओं को ..तो फिर चलिये आज नज़र डालते हैं लिंकों पर..सच कहूँ तो चुनना भी मग़जमारी सी है..सब लिख ही रहें बहुत बढ़िया अलग अलग शैली में.. बातों को पूर्ण विराम देते हुए लिजिए...✍️
" कलम से गुजारिश "
हक है तुम्हें
एक जीत नजर आती है... ......
अन्याय की दीवारों में ,
जख्मो की बेड़िया पड़ी हुई है
परवशता के विचारो में ।..
बहुत सुन्दर..
जवाब देंहटाएंआभार..
सादर..
धन्यवाद
हटाएंनहीं फायदा यहाँ समझाने का कि अमर सपूत हक़ है तुम्हे कि कलम से गुज़ारिश है ,एक जीत नज़र आती है ।
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिंक्स । पम्मी बढ़िया चर्चा ।
धन्यवाद आ०
हटाएंपठनीय रचनाओं क सुंदर संकलन दमदार भूमिका के साथ।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया अंक पम्मी दी।
सादर।
शुक्रिया श्वेता..
हटाएंअच्छी रचनाएं और शानदार लिंक हैं सभी। बधाई
जवाब देंहटाएंसादर
हटाएंबेहतरीन रचनाओं का संकलन आदरणीय पम्मी जी,सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंजी,धन्यवाद
हटाएंबेहतरीन रचनाओ का संकलन,सभी को बहुत बहुत बधाई हो, पम्मी जी हार्दिक आभार, बहुत बहुत धन्यबाद
जवाब देंहटाएंप्रतिक्रिया हेतु आभार
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