स्नेहिल अभिवादन-
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लेखन आत्मसंवाद होता है मन के भावों का प्रतिबिंब। आत्मविश्लेषण जितना ज्यादा होता है विचारों की उज्ज्वलता उतनी ही मुखरित।
लेखन के बाज़ारवाद के सम्मोहन, कुछ पा लेने की होड़ से अलग भावनाओं को महसूसकर शब्द देने का प्रयास,जिससे शांति और सुख का अनुभव हो, स्वांतःसुखाय लेखन है शायद...।
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विचारों की सघनता और समझिए
कुछ कही-अनकही भावनाओं को-
समसामयिक घटनाओं को महसूसकर बिना किसी को सीधा इंगित किये सारी बातें कहने की कला सुशील सर की
क़लम बखूबी जानती है। उनकी नयी रचना में पढ़िए
मुखौटाधारियों के लिए विशेष संदेश-
तुम्हैं भी
जमाने के हिसाब से
बदलना जरूरी है
मेमने के बारे में किसलिये सोचते हो
भेड़िये को देखो
ध्यान मत भटकाओ
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मनोभावों को सलीकें से पेश करने का हुनर नासवा सर की गज़लों की पहचान है। नज़ाकत,नफ़ासत और रूहानियत को महसूस कीजिए, पढ़िए उनकी नयी ग़जल-
तीरगी के शह्र आकर छूट,परछाई गई
आसमां का चाँद, मैं भी, रूबरू तुझसे हुए,टकटकी सी बंध गई, चिलमन जो सरकाई, गई. यक-ब-यक तुम सा ही गुज़रा, तुम नहीं तो कौन था,दफ-अतन ऐसा लगा की बर्क यूँ आई, गई.-----////----प्रकृति से जुड़ाव जीवन में नवीन उत्साह एवं सकारात्मकता का संचरण करते हैं। अपने स्पष्ट विचार रखते हुए हर विषय पर गगन सर के लेख तर्क और तथ्यों के साथविषयों को स्पष्ट रखते हैं। पशु-पक्षियों से जुड़े उनके अनुभव मानवीय संवेदना का सुंदर रूप है पढ़िये उनके नये लेख में-
इतने दिनों के इनके साथ से इनकी आदतें, इनके खाने का अंदाज, खाते समय की सतर्कता सब धीरे-धीरे समझ में आने लगी हैं। जैसे की मैना खिलंदड़ी स्वभाव की होती है ! टिक कर नहीं खाती ! खाते-खाते कभी-कभी कुछ आवाज भी करती है ! ऊपर खाते हुए कुछ गिर जाता है तो नीचे आ चुगना शुरू कर देती है ! एक बार में ज्यादा नहीं खाती। कबूतर मस्त-मौला लगता है ! संगिनी खाती है तो कभी-कभी गर्दन फुला अलग खड़ा देखता रहता है ! खाता कम है, गिराता ज्यादा है ! औरों की बनिस्पत देर तक खाता है ! शायद खुराक ज्यादा होती हो ! कौवा झटके से आ कुछ खा, कुछ दबा झट से उड़ जाता है ! बेहद चौकन्ना रहता है। मिट्ठू मियाँ की बात ही अलग है। कम आते हैं, हरी मिर्ची का लालच देने के बावजूद ! टिंटियाते भी खूब हैं। पर उनसे ही सबसे ज्यादा रौनक लगती है।------/////-----मन की वेदना को प्रभावशाली भावों में पिरोये हैं हरीश जी ने चिट्ठा जगत में स्वागत है आप जैसे नये क़लमकारों का।आप भी पढ़िए और उनकी रचना और उत्साह बढ़ाइये।
मेरे ख्वाब याद सांसो तक मे समाया था वो.. पल भर में ही बेवजह अलविदा कह गया
लड़ रहा था खुदा तक से भी जिसे पाने के लिए खुदा कसम उसी के लिए सबकुछ चुपचाप सह गया-----////---- अपने पूरे जीवन में हम सभी के लिए बचपन की स्मृतियाँ सबसे अमूल्य होती है। आधुनिक जीवन शैली में अनायास ही मन पीछे मुड़-मुड़कर उन नन्हें पाँवों के निशान दुलराता है। आप भी पढ़िए कितने कोमल भाव लिखे है ज्योति सिंह जी ने-
मन में तर्क-वितर्क चलते हैं राम की भक्ति, संसार से विमुख नहीं करती, लौकिक जीवन के लिये एक कसौटी बन जाती है. सांसारिकता से कोई अंतर्विरोध नहीं. गृहस्थ के लिये तो राम-भक्ति ही ग्रहणीय है संयम और संतुलन रखते हुए आदर्शों के निर्वाह का संकल्प. राम की भक्ति सदाचार और निस्पृहता का सन्देश देती है. सांसारिक संबंधों रमणीयता ,नैतिकता का उत्कर्ष भावों की उज्ज्वलता, परस्पर निष्ठा और विश्वास और भी कितनी कोमल संवेदनाएँ समाई है ..
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और चलते-चलते
सड़ी गली मानसिकता एवं परंपराओं से अलग और भ्रममुक्त
दृष्टिकोण प्रदान किया जा सके वहाँ सुबोध सर की लेखनी की धार देखते ही बनती है।
स्त्री पुरूष की समानता पर उनके विचार अगर आत्मसात किया जाए तो शायद स्त्रियों की दशा इतनी दयनीय न हो, उनकी विचारणीय रचना के भाव स्पष्ट हैं-
यदि हो जो बँटना जरुरी।
ऊर्ध्वाधर बँटने में तो आस
होती नहीं पुनः पनपने की।
है नारी संबल प्रकृति-सी,
सार्थक पुरुष-जीवन तभी।
फिर क्यों नारी तेरे मन में
है भरी हीनता मनोग्रंथि ?
बस
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हर दिन से अलग
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अंक..
आभार ..
सादर अभिवादन..
आज की चर्चा कुछ अलग रंग लिए हुए । हर लिंक के साथ चर्चाकार की अपनी विशेष टिप्पणी प्रभावित कर रही है । इस चर्चा से हर लिंक पर जाने की जिज्ञासा हो रही है । चर्चाकार को मेरी शुभकामनाएँ । जाते हैं सभी लिंक्स पर । ।
जवाब देंहटाएंआभार श्वेता जी।
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति का एक अलग अंदाज़ प्रिय श्वेता जी,सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनायें एवं सादर नमस्कार
जवाब देंहटाएंसर्वप्रथम नमन संग आभार आपका आज के इस अंक में लिए गए दिग्गज चिट्ठाकारों की कतार में मुझ जैसे बतकही करने वाले बकलोल को स्थान देने के लिए .. बस यूँ ही ...
जवाब देंहटाएंप्रायः अब तक "स्वांतःसुखाय लेखन" पर बुद्धिजीवियों को तंज़ कसते हुए ही देखा है, पर आपने इसकी तरफ़दारी की है। अच्छी बात है। आज की भूमिका के सार को बल देती हुई दो पंक्तियाँ :-
होड़ में बनाने के हम सफलता के फर्नीचर ,
करते गए सार्थकता के वन को दर-ब-दर .. शायद ...
आज सबों की विशेषता को सब से रूबरू कराती आपकी आज की प्रस्तुति मंच-संचालन वाली विधा की शैली याद कराती है। वैसे किसी एक दीर्घा में किसी रचनाकार/कलाकार की छवि को बाँधा नहीं जा सकता .. शायद ...
चलते-चलते आज के सभी चिट्ठाकारों को नमन ..
बेहतरीन रचनाएं, बहुत सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसकारात्मकता से भरे अंक के लिए हार्दिक आभार और शुभकामनाएं प्रिय श्वेता | स्नेहिल , बौद्धिकता पूर्ण प्रतिक्रिया के साथ सुंदर सार्थक प्रस्तुतिकरण बहुत मनभावन रहा | तुम्हें पुराने रूप में पाकर अच्छा लगा | सभी शामिल रचनाकारों को शुभकामनाएं|
जवाब देंहटाएंब्लॉग जगत में उदित होती सौहार्द की नव आभा को नमन करते हुए मेरी एक रचना --
जवाब देंहटाएंये सुनकर उमंग जागी है ,
कि बीते दिन लौट रहे हैं ;
उन राहों में फूल खिल गए -
जिनमे कांटे बहुत रहे है !
चिर प्रतीक्षा सफल हुई -
यत्नों के फल अब मीठे हैं ,
उतरे हैं रंग जो जीवन में-
वो इन्द्रधनुष सरीखे हैं
मिटी वेदना अंतर्मन की --
खुशियों के दिन शेष रहे हैं -!!
वो एक लहर समय की थी साथी -
आई और आकर चली गई,
कसक है इक निश्छल आशा -
हाथ अपनों के छली गई ;
छद्म वैरी गए पहचाने -
जिनके अपनों के भेष रहे हैं !!
पावन , निर्मल प्रेम सदा ही -
रहा शक्ति मानवता की ,
जग में ये नीड़ अनोखा है -
जहाँ जगह नहीं मलिनता की ;
युग आये - आकर चले गए ,
पर इसके रूप विशेष रहे हैं !!
उन राहों में फूल खिल गए
जिनमे कांटे बहुत रहे हैं !!!!!!!
साहित्यिक भाईचारे की ये महफ़िल यूँ ही आबाद रहे | इसी कामना के साथ आभार और प्यार |
बीते दिनों की लगता है
हटाएंहल्की सी कसक बाकी है
फूलों के साथ शूलों की
कोई तो चुभन बाकी है है ।
फल भी मीठा होता है
जब मौसम आता है
इंद्रधनुष भी दिखता है
जब बादल मेह बरसाता है ।
नेह से होंगीं आसान राहें
बस मन में धैर्य बाकी है
वेदना की लहर चली गयी तो
अब सुख की ही तो बाकी है ।
प्रिय रेणु के लिए , उसकी उपर्युक्त रचना पर आए मन के भाव ।
वाह आदरणीय दीदी, एकदम सटीक रचना 👌👌👌👌
हटाएंनेह से होंगीं आसान राहें
बस मन में धैर्य बाकी है
वेदना की लहर चली गयी तो
अब सुख की ही तो बाकी है ।
बहुत खूब!! मेरी रचना पर आपके त्वरित भाव अनमोल हैं। इस स्नेह के लिए कृतज्ञ हूँ 🙏🙏🙏🌹🌹
भावों से तारतम्य बैठाने के लिए शुक्रिया ।
हटाएंसुंदर
जवाब देंहटाएंलाजवाब, बेहतरीन रचनाएँ, शानदार लिंक, हार्दिक आभार, आपकी मेहनत रंग ले आई, बहुत बहुत बधाई हो, धन्यबाद श्वेता जी, संगीता जी रेणु जी ने भी खूब लिखा है, नमन
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