हाज़िर हूँ... उपस्थिति स्वीकार हो...
विदेशों में पहले पतझड़ आता है तब वसन्त आता है.... मेरे अनुभव में पहले वसन्त आता है तब पतझड़ आता है... चलो पहले जो आये पीछे जो आये.. एक समय में तो एक ही आएगा.. यह तो ऋतु का चक्र है.. जिससे हमारा मन प्रभावित होता है... यह मन है क्या इसपर लिख लो न
यह कहना निरापद है कि डॉ० नगेन्द्र ने निबन्ध लेखन के क्षेत्र में निम्नस्थ चार शैलियों की सृष्टि की है :
१. गोष्ठी शैली
२. सम्वादात्मक शैली
३. प्रश्नोत्तर शैली तथा
४. आत्मसाक्षात्कार की शैली
सच पूछा जाए तो इस बिन्दु पर डॉ० नगेन्द्र का व्यक्तित्व साहित्य के क्षेत्र में 'अनन्वय' का उदाहरण बन गया है।
आधुनिक मनोवैज्ञानिकों ने अपने अनुभवों के आधार पर यह विचार व्यक्त किया है कि साक्षात्कार विधि में वस्तुनिष्ठ पदों (terms) को सम्मिलित किया जा सकता है। अंक प्रदान करने की विधि भी इसी के सदृश अपनायी जा सकती है। साक्षात्कार में प्रयुक्त पदों के प्रामाणीकरण हेतु प्रत्येक उम्मीदवार से एक ही तरह के प्रश्न किए जायें तो इससे साक्षात्कार का उद्देश्य पूरा नहीं हो पाता है। साक्षात्कार परस्पर मौलिक वार्तालाप की पद्धति है जिसमें बातचीत में नए विचार तथा चिंतन पैदा होते हैं। लेकिन बातचीत की दिशा की पूर्ण भविष्यवाणी करना कठिन होता है। साक्षात्कार को प्रामाणिक बनाने हेतु विवरण सूची (Check list) की एक मानकीकृत प्रति समिति के सदस्यों को दी जाये ताकि उसी के अनुरूप व्यवहार किया जा सके। इस सूची में वांछित शीलगुणों की सूची को अग्रिम बनाकर उम्मीदवार से मिलने वाले गुणों को ही चिह्नित करते हैं। इसे 'साक्षात्कार-कर्मचारी मूल्यांकन प्रपत्र' कहते हैं।
विधा के उद्भव के विषय में भी विद्वानों में मतैक्य नहीं है। कुछ विद्वान इस विधा का आरंभ श्री चन्द्रभान से मानते हैं तो कुछ पं. बनारसीदास चतुर्वेदी से। चतुर्वेदी जी ने ‘रत्नाकर जी से बातचीत' शीर्षक साक्षात्कार सितंबर, १९३१ के ‘विशाल भारत' में प्रकाशित किया था। इसके पश्चात् ‘प्रेमचंद जी के साथ दो दिन' शीर्षक से उनका दूसरा साक्षात्कार जनवरी, १९३२ में ‘विशाल भारत' में ही प्रकाशित हुआ था। ‘हिन्दी इण्टरव्यू : उद्भव और विकास' नामक अपने शोध-प्रबन्ध में डॉ. विष्णु पंकज ने हिन्दी इण्टरव्यू विधा का जन्म सन् १९०५ ई. से मानते हुए श्री चन्द्रधर शर्मा गुलेरी को इसके प्रवर्तक के रूप में स्वीकार करते हैं।
मनुष्य में दो प्रकार की प्रवृत्तियाँ होती हैं। एक तो यह कि वह दूसरों के विषय में सब कुछ जान लेना चाहता है और दूसरी यह कि वह अपने विषय में या अपने विचार दूसरों को बता देना चाहता है। अपने अनुभवों से दूसरों को लाभ पहुँचाना और दूसरों के अनुभवों से लाभ उठाना यह मनुष्य का स्वभाव है। अपने विचारों को प्रकट करने के लिए अनेक लिखित, अलिखित रूप अपनाए हैं। साक्षात्कार भी मानवीय अभिव्यक्ति का एक माध्यम है। इसे भेंटवार्ता, इंटरव्यू, मुलाकात, बातचीत, भेंट आदि भी कहते हैं।
मैं डायरी नहीं लिखता पर यदि लिखता तो पत्नी से छिपाकर नहीं रखता। मैं हिन्दी के उन लेखकों में नहीं हूँ जो अपनी पत्नी को दर्जा तीन पर स्थान देते हैं- पहले मेरा लेखन, फिर मेरे दोस्त, फिर तू। मैं उन लेखकों में भी नहीं हूँ जो यह कहकर गौरवान्वित होते हैं, लेखन तो मेरा अपना है, मेरी पत्नी का इसमें कोई योग नहीं है। ऐसे लोग या तो मुझे सामंती पुरुषाना अहंकार से ग्रस्त लगते हैं या अपनी पत्नी को निर्बुद्धि समझते हैं। संयोग से न तो मुझमें वैसा अहंकार है, न ही साधना वैसी निर्बुद्धि हैं।
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पुन: भेंट होगी...
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ऋतुचक्र पर तो लिखना तब भी सहज होगा पर मानव मन लिखना आसान नहीं... है न दी।
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह बेहतरीन सूत्रों से सजी सुंदर प्रस्तुति।
प्रणाम दी।
सादर नमन...
जवाब देंहटाएंसाक्षात्कार की शानदार विवेचना
आभार..
सादर..
*की/पर
हटाएंकितने गूढ़ विषयों को लिया आपने । बस जिज्ञासा वश पढ़ लिए । यूँ अब अपने जीवन में तो महत्त्व कम ही राह गया है साक्षात्कार का ।
जवाब देंहटाएंआपके इस प्रयास को नमन ।
बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआदरणीय दीदी अभिनंदन और प्रणाम 🙏🙏 एक कथित नीरस विषय पर नायाब और रोचक अंक। साक्षत्कार पर इतनी पठनीय सूत्र पाकर बहुत अच्छा लगा। साहित्य की कथित शिशु विधा और जन संचार पाठयक्रम का महत्वपूर्ण विषय विद्यार्थी हों या सफलता के शीर्ष पर बैठे वरिष्ठ जन, सबके लिए साक्षात्कार अनिवार्य है। किसी को साक्षात्कार लेना होता है तो किसी को देना। जीवन में नई ऊँचाइयों को छूने की लिए साक्षात्कार के लिए aatmvishvaas बहुत जरूरी है। सभी लिंक बहुत बढिया थे। बहुत से साक्षात्कार में केवल दो ही पढ़ पाई। बस मुझे प्रस्तुति में एक कमी लगी, साक्षात्कार के साथ आत्म साक्षात्कार का भी एक अंक और होता तो अच्छा था। आखिर खुद की आत्मा से साक्षात्कार होना ही तो जीवन का अनमोल साक्षात्कार है। श्रम साध्य अंक के लिए आपको ढेरों बधाई और शुभकामनाएं🙏🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंमन के ऋतु चक्र की क्या कहिये!!भीतर बसंत तो बाहर के पतझड़ को देखने का समय किसके पास होता है पर यदि इसका उल्टा हो बाहर बसंत और अंदर मायूसी तो अंदर बाहर पतझड़ है 😊 सादर 🙏🙏
जवाब देंहटाएंपुराने लेख आज भी चमत्कृत कर जाते हैं।
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