शीर्षक पंक्ति: आदरणीया नीतू ठाकुर 'विदुषी' जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक में आपका स्वागत है।
आइए अब आपको आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चलें-
लहूलुहान संवेदनाएँ...संगीता स्वरुप (गीत)
फ़िर मैं उठी, विदा में तुम्हारी ओर देखा,
अचानक तुमने थाम ली मेरी उंगली....
तुम्हारी आँखों में भर आया जल,
और मैं नेह के सागर में डूब गई...
पत्र-पेटी...सुजाता प्रिये 'समृद्धि'
सरकारी दफ्तर में बनी हुई है,
संदेश-प्रेषण में डाक की महत्ता ।
आज भी सभी जन को होती है,
पत्र पाने की व्याकुलता।
नेह का गणित...नीतू ठाकुर 'विदुषी'
अरुण गाड़ी का म्यूज़िक ऑन करते हुए बोलता है।
तभी रति भूख से छटपटाती हुई बोलती है -
"जल्दी चलाओ अरुण, आज ऑफिस में भी कुछ खाने का टाइम नही मिला।"
*****
आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे अगले गुरुवार।
रवीन्द्र सिंह यादव
बहुत सुन्दर..
जवाब देंहटाएंआभार..
सादर..
👌👌उम्मदा
जवाब देंहटाएंसभी लिंक्स शानदार , चिट्ठियों का ज़माना याद आया ..भूला बिसरा गणित दोहराया , एक अजनबी से प्यारी से मुलाकात रही , यमराज से थोडा दूरी बनाने कि प्रेरणा मिली .
जवाब देंहटाएंबाकी तो मैं और मेरी संवेदनाएं :) :)
कुल मिला कर चर्चा बढ़िया लगी .
सादर नमन आदरणीया दीदी.
हटाएंसुंदर प्रस्तुति, लाजवाब लिंक्स।
जवाब देंहटाएंसभी को बधाई एवं शुभकामनाएं।
मेरी रचना को स्थान देने हेतु हार्दिक आभार आदरणीय सर।
सभी को सादर प्रणाम 🙏