।। उषा स्वस्ति ।।
"वे रंग बिरंगे रवि की
किरणों से थे बन जाते
वे कभी प्रकृति को विलसित
नीली साड़ियां पिन्हाते।।
वे पवन तुरंगम पर चढ़
थे दूनी–दौड़ लगाते
वे कभी धूप छाया के
थे छविमय–दृश्य दिखाते।"
हरिऔध
प्रकृति की बदलती तस्वीरे लोगों को सच्चाई बतलाने के साथ सार्थक जीवन जीने के लिए प्रेरित करते शब्दों संग चलिये ,आज की प्रस्तुति यथार्थपरक रचना ...✍️
जहां देखो मकान ही मकान
कहीं घर मिलता ही नहीं अब
कट गए सब पेड़ पल्लव
कहीं छांव अब मिलती नहीं
नहीं रहे वो खेत खलिहान
बन रही सब धरती बंजर...
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ब्लॉग आसमान खुला है की वैचारिक रचना..
वो नही जनना चाहती थी एक लड़की,
इसलिए नही की समाज परिवार में
उसका मान घट जाता,
बल्कि इसलिए कि लड़कियों
के लिए आज़ाद दुनिया का
पर्दा लिए ये नकाबपोश दुनिया मे,...
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तुरपन
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जरूरत है आजकल अनजानी सी कहानियों की..जिसे पढ़ें ब्लॉग वोकल बाबा से...
ऐसे राजा की कथा जो एक शाप के कारण कुल सहित नष्ट हो गया था।
एक ऐसे राजा की कथा जो ब्राह्मणों के शाप के कारण कुटुम्ब सहित नष्ट हो गया था और कुटुम्ब सहित ही अगले जन्म में राक्षस कुल में जन्मा था।
यह महत्वपूर्ण कथा सुनाने से पहले मैं आपसे एक प्रसंग साझा करना चाहता हूँ। एक
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विराम ले रही हूँ अब सुंदर गीतिका ब्लॉग पलाश से..
क्या जगाकर हमें वो, सो सकेगा रात भर
शमा बुझ गई अंधेरा अब, जगेगा रात भर
कर सका ना हौसल वो, कहने का हाले दिल
महफ़िल में ख्वाबों की अब, कहेगा रात..
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।। इति शम ।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️
बढ़िया अंक..
जवाब देंहटाएंआभार..
सादर..
क्या जगाकर हमें वो, सो सकेगा रात भर
जवाब देंहटाएंशमा बुझ गई अंधेरा अब, जगेगा रात भर
बढ़िया अश़आर..
सादर..
सुन्दर संकलन
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिंकों से सजी सुंदर प्रस्तुति के लिए बधाई। मेरी प्रस्तुति को शामिल करने के लिये हार्दिक आभार। सभी रचनाकारों को शुभकामनाएँ। सादर।
जवाब देंहटाएंThank you so much for giving the place in Halchal
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबढ़िया संकलन ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद मवड़ी रचना जननी को स्थान देने हेतु सभी साथियों को हार्दिक अभिनंदन और हलचल मंच का आभार बढ़िया संकलन।।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया मेरी रचना को स्थान देने के लिए
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई
मेरी रचना को साझा करने के लिए बहुत आभार...बढ़िया संकलन...सभी को बधाई.
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